कब तक यूं ही बात न हो
साथ तो हो पर साथ न हो
धरती अंबर से न बोले
ऐसे तो कभी हालात न हो
धूप भले फिर लाख जला ले
छांव का सर पे हाथ न हो
उखड़े उखड़े दिन हो चाहे
मायूस मगर , ये रात न हो
#बस_यूँ_ही
मित्रों! आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-05-2022) को चर्चा मंच "पहली बारिश हुई धरा पर, मौसम कितना हुआ सुहाना" (चर्चा अंक-4441) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार सर 🙏
हटाएंकोमल भावनाओं को व्यक्त करती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपको छू गई पंक्तियां , लिखना सार्थक हुआ अनिता जी ... हृदय से आभार आपका
हटाएंउखड़े उखड़े दिन हो चाहे
जवाब देंहटाएंमायूस मगर , ये रात न हो
सुंदर...पंक्तियाँ...
तहे दिल से धन्यवाद विकास जी ... आपके इन्ही शब्दों से लेखन को और बल मिलता है। 🙏
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