रविवार, 17 जुलाई 2022

एक ग़ज़ल : चुभी है बात कोई

 एक ग़ज़ल 


चुभी है बात उसे कौन सी पता भी नहीं ,

कई दिनों से वो करता है अब ज़फ़ा भी नहीं ।


हर एक साँस अमानत में सौंप दी जिसको ,

वही न हो सका मेरा , कोई गिला भी नहीं ।


किसी की बात में आकर ख़फ़ा हुआ होगा,

वो बेनियाज़ नहीं है तो आशना भी नहीं ।


ज़ुनून-ए-शौक़ ने रोका हज़ार बार उसे ,

ख़फ़ा ख़फ़ा सा रहा और वह रुका भी नहीं ।


ख़याल-ए-यार में इक उम्र काट दी मैने ,

कमाल यह है कि उससे कभी मिला भी नहीं ।


तमाम उम्र उसे मैं पुकारता ही रहा ,

सुना ज़रूर मगर उसने कुछ कहा भी नहीं ।


हर एक शख़्स के आगे न सर झुका ’आनन’ 

ज़मीर अपना जगा, हर कोई ख़ुदा भी नहीं ।


-आनन्द.पाठक-

मो0 8800927181


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