बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

एक ग़ज़ल : चढ़ते दर्या को इक दिन

 


एक ग़ज़ल 


चढ़ते दर्या को इक दिन है जाना उतर,

जान कर भी तू अनजान है बेख़बर


प्यार मे हम हुए मुब्तिला इस तरह ,

बेखुदी मे न मिलती है अपनी खबर ।


यूँ ही साहिल पे आते नहीं खुद बखुद,

डूब कर ही कोई एक लाता  गुहर ।


या ख़ुदा ! यार मेरा सलामत रहे ,

ये बलाएँ कहीं मुड़ न जाएं उधर ।


अब न ताक़त रही, बस है चाहत बची,

आ भी जाओ तुम्हे देख लूँ इक नज़र ।


ये बहारें, फ़ज़ा, ये घटा, ये चमन ,

है बज़ाहिर उसी का कमाल-ए-हुनर ।


उसकॊ देखा नहीं, बस ख़यालात में ,

सबने देखा उसे अपनी अपनी नजर ।


खुल के जीना भी है एक तर्ज-ए-अमल,

आजमाना कभी देखना फिर असर ।


ज़िंदगी से परेशां हो ’आनन’ बहुत ,

क्या कभी तुमने ली ज़िंदगी की खबर ?



-आनन्द.पाठक- 


रविवार, 23 अक्टूबर 2022

कुछ मुक्तक दीपावली पर

 


: दीपावली पर :

:1:

पर्व दीपावली का मनाते चलें

प्यार सबके दिलों में जगाते चलें

ये अँधेरे हैं इतने घने भी नहीं

हौसलों से दि्ये हम जलाते चलें


:2:

आग नफ़रत की अपनी मिटा तो सही

तीरगी अपने दिल की हटा तो सही

इन चराग़ों की जलती हुई रोशनी

राह दुनिया को मिल कर दिखा तो सही


:3:

कर के कितने जतन प्रेम के रंग भर

अल्पनाएँ सजा कर खड़ी द्वार पर

एक सजनी जला कर दिया साध का

राह ’साजन’ की तकती रही रात भर


:4:

प्रीति से, स्नेह से प्राण-बाती जले

दो दिये जल रहे हैं गगन के तले

लिख रहें हैं इबारत नए दौर की

हाथ में हाथ डाले सफ़र पर चले 


:5:

घर के आँगन में पहले जलाना दिये

फिर मुँडेरों पे उनको  सजाना. प्रिये !

राह सबको दिखाते रहें दीप ये-

हर समय रोशनी का ख़जाना लिए ।


-आनन्द पाठक-

शनिवार, 15 अक्टूबर 2022

एक ग़ज़ल : सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता

 

ग़ज़ल



सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता ,

ख़ुदा क़सम कि मैं खुद से जुदा नहीं होता ।       1

 

हमारे इश्क़ में शायद कमी रही होगी-

सितमशिआर सनम क्यों खफा नहीं होता ।        2

 

निगाह आप की जाने किधर किधर रहती,

निगाह-ए-शौक़ से क्यों सामना नहीं होता ।        3

 

निशान-ए-पा जो किसी और के रहे होते,

यक़ीन मानिए सर यह झुका नहीं होता ।         4

 

ख़याल आप का दिन रात साथ रहता है,

ख़याल-ओ-ख़्वाब में खुद का पता नहीं होता ।      5

 

नज़र जो आप की मुझसे मिली नहीं होती,

क़रार दिल का मेरा यूँ लुटा नहीं होता ।          6

 

सफ़र हयात का ’आनन’ भला कहाँ कटता,

सफर में साथ जो उनका  मिला नहीं होता ।       7

 

-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

एक गीत : सुख का मौसम दुख का मौसम ---

 -एक गीत-

सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी-पानी का हो मौसम
मौसम का आना-जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा ।

अगर कभी होना फ़ुरसत में ,उसकी आँखों में पढ़ लेना
जिसकी आँखों में सपने थे जिसे ज़माने ने लू्टे हों ,
आँसू जिसके सूख गए हो, आँखें जिसकी सूनी सूनी
और किसी से क्या कहता वह, विधिना ही जिसके रूठें हो।

दर्द अगर हो दिल में गहरा, आहों में पुरज़ोर असर हो
चाहे जितना पत्थर दिल हो, आज नहीं तो कल पिघलेगा ।

दुनिया क्या है ? जादूघर है, रोज़ तमाशा होता रहता
देख रहे हैं जो कुछ हम तुम, जागी आँखों के सपने हैं
रिश्ते सभी छलावा भर हैं, जबतक मतलब साथ रहेंगे
जिसको अपना समझ रहे हो, वो सब कब होते अपने हैं॥

जीवन की आपाधापी में, दौड़ दौड़ कर जो भी जोड़ा
चाहे जितना मुठ्ठी कस लो, जो भी कमाया सब फिसलेगा ।

जैसा सोचा वैसा जीवन, कब मिलता है, कब होता है,
जीवन है तो लगा रहेगा, हँसना, रोना, खोना, पाना।
काल चक्र चलता रहता है. रुकता नहीं कभी यह पल भर
ठोकर खाना, उठ कर चलना, हिम्मत खो कर बैठ न जाना ।

आशा की हो एक किरन भी और अगर हो हिम्मत दिल में
चाहे जितना घना अँधेरा, एक नया सूरज निकलेगा ।


विश्वबन्धु, सोने की चिड़िया, विश्वगुरु सब बातें अच्छी,
रामराज्य की एक कल्पना, जन-गण-मन को हुलसा देती ,
अपना वतन चमन है अपना, हरा भरा है खुशियों वाला
लेकिन नफ़रत की चिंगारी बस्ती बस्ती झुलसा देती ।

जीवन है इक सख्त हक़ीक़त देश अगर है तो हम सब हैं
झूठे सपनों की दुनिया से कबतक अपना दिल बहलेगा ।

-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 5 अक्टूबर 2022

एक व्यंग्य व्यथा : रावण का पुतला

  एक व्यंग्य व्यथा : रावण का पुतला


डायरी के पन्नों से----
[ नोट : आज रावण वध है। रावण मरता नहीं। रावण व्यक्ति नहीं प्रवृत्ति है और हम प्रवृत्तियाँ नहीं जलाते ,पुतला जलाते हैं। अगर रावणीय प्रवृत्तियाँ
मारनी है तो हमें अपने अन्दर ’रामत्व’ जगाना होगा ।

 ---- आज रावण-वध है ।
40 फुट का पुतला जलाया जायेगा। विगत वर्ष, 30 फुट का पुतला जलाया गया था। इस साल रावण का कद बढ़ गया । पिछ्ले साल से इस साल लूट-पाट, अत्याचार, अपहरण, हत्या की घटनायें बढ़ गई सो ’रावण’ का  कद भी बढ गया है। रावण बलात्कार नहीं करता था क्योंकि वह ’रावण’ था। इसके लिए और लोग हैं आजकल। रामलीला की  तैयारियाँ पूरी हो चुकी है। मैदान में भीड़ इकठ्ठी हो रही है। बाल-बच्चे,  महिलायें , वॄद्ध,  नौजवान सब धीरे धीरे ’राम लीला’ मैदान में आ रहे हैं। रावण-वध देखना है। मंच सजाया रहा है। इस साल का मंच बड़ा बनाया जा रहा है। पिछले साल छोटा पड़ गया था। इस साल वी0आई0पी0 -लोग ज़्यादा आयेंगे। सरकार में कई पार्टियों का योगदान है। सभी पार्टियों के नेताओं को जगह देना है मंच पर । विगत वर्ष ’अमुक’ पार्टी के नेता जी को मंच पर जगह नहीं मिली थी तो बिफ़र गये थे मंच पर ही। धमकी देकर गए थे। ’हिन्दुत्व ’पर, आप का ही एकमात्र ’कापी -राइट’ नही है । हमारा भी है। इसी लिए तो उनका ’हाथ’’ छोड़ कर इधर आये हैं, वरना उधर क्या बुरे थे? इस बार कोई दूसरा नेता न बिदक जाए, तो मंच को बड़ा रखना ज़रूरी है। सबको जगह देनी है। सबको साधना है। सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास बाक़ी बक़वास। पता नहीं यह विश्वास कब तक रहेगा? कब कोई टाँग खींच दे? मंच पर ’सीता-राम-लक्षमण-हनुमान’ के लिए जगह कम पड़ गई। तो क्या हुआ? वो तो सबके दिल में है । उन्हें जगह की क्या ज़रूरत? उन्हें जगह की क्या कमी! हाँ, वी0आई0पी0 लोगो को मंच पर जगह कम न पड़ जाये।

नेता आयेंगे, अधिकारीगण आयेंगे रावण वध देखने। मंच पर वो भी आयेंगे जिन पर ’बलात्कार’ के आरोप हैं।-वो भी आयेंगे जिनपर ’घोटाले’ का आरोप हैं।-वो भी आयेंगे जो ’बाहुबली’ हैं जिन्होने आम जनता का ’बूँद बूँद खून’ चूस कर अपने अपने अपने ’घट’ भरे हैं-।--रावण ने भी भरा था। वो भी आयेंगे जो कई ’लड़कियों’ का अपहरण कर चुके हैं। वो भी आयेंगे जिन पर ’रिश्वत’ का आरोप है। ’भारत तेरे टुकड़े होंगे’ इंशाअल्ला इंशाअल्ला गैंगवाले भी आयेंगे ।कहते है- आरोप से क्या होता है ? सिद्ध भी तो होना चाहिये। आज सब भगवान को माला पहनायेंगे--

मंच के कोने में सिमटे ’राम’ जी सब सुन रहे हैं।-उन्हें ’रावण वध’ करना है।--इधर वाले का नहीं. सामनेवाले का, पुतले का। उधर रावण का पुतला खड़ा किया जा रहा है -भारी है ।ऐसे लोगो के पुतले भारी होते हैं। अपने पापों के कारण भारी होते है। नगर सेठ जी मोटा चन्दा दे कर खड़ा करवा रहे हैं। कमेटी वालों ने येन केन प्रकारेण ’पुतला’ खड़ा कर के सीना चौड़ा किया और चैन की साँस ली। पुतला खड़ा हो गया मैदान में उपस्थित सभी लोगों ने तालिया बजाई। सब की नज़र में आ गया रावण का पुतला --उसका पाप --उसका ’अहंकार’ --उसका ’लोभ--उसका रूप ’। यही तो देखने आए हैं इस मेला में। अपना तो दिखता नहीं। ऐसे पापियों का नाश अवश्य होना चाहिए। वध में अभी विलम्ब है। राम- लक्ष्मण जी अपना तीर धनुष लेकर तैयार हैं --मगर रावण को अभी नहीं मार सकते। भगवान को इन्तज़ार करना पड़ेगा। मुख्य अतिथि महोदय अभी नहीं पहुँचे हैं।
मैदान में लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं। समय काटना है।

कान्वेन्ट स्कूल के एक बच्चे ने रावण के पुतले को देख कर पूछ बैठा -"मम्मा हू इस दैट अंकल"?
"बेटा ! ही इज ’रावना’ --लाइक योर डैडू । रामा विल किल ’रावना’-थोड़ी देर में
बच्चे को -’डैडू’ वाली बात तो समझ में नहीं आई ,पर ’रामा’ किल ’रावना’ वाली बात समझ में आ गई
उधर "हरहुआ’ अपने काका को बता रहा था--’कक्का ! अब की बार का पुतला न बड़ा जानदार बनाया है। महँगा होगा? काका ने अपने अर्थशास्त्र ज्ञान से बताया--- हाँ रे! बड़े आदमी का पुतला भी मँहगा होता है। हम गरीबन का थोड़े ही है कि एक मुठ्टी घास ले कर फूंक  दिया।
रमनथवा की बीबी कान में अपने मरद से कुछ कह रही थी -"सुनते हो जी! हमें तो आजकल महेन्दरा की नीयत ठीक नहीं लग रही है। बोली-ठोली करता रहता है। हमें तो उसकी नज़र में खोट लग रहा है।-"
’अच्छा! स्साले को ठीक करना पड़ेगा"-रामनाथ ने कहा--"बहुत चर्बी चढ़ गई है स्साले को। बड़ा ’रावण’ बने फिर रहा है। तू उसे छोड़, इधर का रावण देख---"
उधर शर्मा जी ने माथुर साहब से कह रहे हैं -" या या पुतला इज वेरी नाइस --बट इट लैक्स ए ’टाई’
माथुर साहब ने हामी भरी ---यस सर ! हम लोग ’टाई ’ में कितना ’नाइस" लगता है- न ,-बेटर दैन ’रावना’।
  भीड़ बेचैन हो रही है। मुख्य अतिथि महोदय अभी तक पहुँचे नही। मोबाइल से खबर ले रहे हैं। -अरे कितनी भीड़ पहुँची मैदान में? नेता जी के चेला-चापड़ खबर दे रहे हैं। बस सर! आधा घंटा और। पहुँचिए रहें हैं लोग। नेता जी भीड़ से ही जीते हैं।-भीड़ पर ही मरते हैं । रावण को क्या मारना? जल्दी क्या है? रावण तो हर साल मरता है। चुनाव तो इस साल है। राम जी उधर अपना डायलाग’ याद कर रहे हैं –’ हे अधम, अधर्मी रावण ! तू –”
--अब रावण भी बेचैन होने लगा। एक तो मरना और उस पर धूप में खड़ा होने की यह सज़ा’। पता नहीं ये मुख्य अतिथि का बच्चा कब आयेगा। रावण का धैर्य जवाब देने लगा। अन्त में बोल उठा---
"हा! हा! हा! हा! मैं ’रावण’ हूँ।
भीड़ उसकी तरफ़ मुड़ गई ।
यह कौन बोला?--रावण कहाँ है? -यह तो पुतला है। सभी एक दूसरे को आश्चर्य भरी दॄष्टि से देखने लगे।यह पुतला कहां से बोल रहा है?
"हा ! हा! हा! हा!’ -पुतले से पुन: आवाज़ आई-- मैं पुतला नहीं, रावण बोल रहा हूँ! सच का रावण। अरे भीड़ के हिस्सों ! मूढ़ों -----!  
तुम लोग क्या समझते हो कि मैं मर गया हूँ? तुम लोग मुझे मार दोगे? वाल्मीकि से लेकर तुलसीदास तक, राधेश्याम से लेकर मोरारी बापू तक, नन्ह्कू हलवाई तक सभी ने मुझे मारा। क्या मैं मरा? हर साल तुम लोगो ने मुझे मारा। क्या मैं मरा? तुम कहते हो कि मैने ’सीता का अपहरण किया? क्या मेरे मरने  के बाद सीता का अपहरण बन्द हो गया? क्या तुम्हारे ’बाहुबली’ लोग अब सीता का ’अपहरण’ नही करते? उन्हें ’फ़ाइव स्टार’ होटल में नही रखते? कहते हो कि मैने छल किया --क्या तुम लोग छल नहीं करते? मैं ’अहंकारी’ था। क्या तुम लोग सत्ता के नशे में ’अहंकारी’ नहीं हो?
हा हा ! हा! हा! -----मैं मरता नही। ज़िन्दा हो जाता हूँ हर साल -----तुम्हारे अन्दर ---। लोभ बन कर ,,,,हवस बन कर,,,, छल बन कर ...अहंकार बन कर ---ईर्ष्या बन कर--परमाणु बम्ब बन कर --हाईड्रोजन बम्ब बन कर। हर देश में ..हर काल में ज़िन्दा रहा हूँ मैं। हर युद्ध मे, हर मार काट में हर दंगा में, हर फ़ित्ना में, हर फ़साद में --कभी सीरिया में ----कभी लेबनान मे—कभी अफ़गानिस्तान में --। तुम विभीषण’ को पालते हो न, क्यों कि वह तुम्हे ’सूट’ करता है।--तुमने कभी अपने अन्दर झांक कर नही देखा ।-तुम देख  भी नही सकते। -तुम देखना चाहते भी नही । तुम्हे मात्र मुझ पर पत्थर फ़ेकना आता है --क्योंकि पत्थर फ़ेंकना तुम्हे आसान लगता है।--तुम अपने आप पर ’पत्थर नहीं फ़ेंक सकते-।- मुझे जलाना तुम्हे आसान लगता है। -तुम अपने अन्दर का लोभ नहीं जला सकते। -मुझे मारना तुम्हे आसान लगता है।--तुम अपने आप का ’अहंकार नही मार सकते। मेरा अहंकार स्वरूप दिखता है। तुम्हे मेरे नाम से नफ़रत है-।-तुम्हें अपने अन्दर की नफ़रत नहीं दिखती। कोई अपने बेटे का नाम ’रावण’ नही रखना चाहता। सब ’राम’ का ही नाम रखना चाहते हैं।-कई ढोंगी बाबा लोग तो राम के नाम की आड़ में क्या क्या कर्म नहीं करते। --मैने तो वह सब नहीं किया। और नाम गिनाऊँ क्या? -ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में लोग ’राम’ का नाम रखने में 2-बार सोचेंगे। मैने  तो राम के नाम का सहारा नहीं लिया। रावण एक प्रवॄत्ति है--उसे कोई नही मार सकता। अगर मुझे कोई मार सकता है तो तुम्हारे दिल के अन्दर का ’रामत्व’ ही मार सकता है। और तुम सब राम नही हो। अपने अन्दर का ’रामत्व’ जगाऒ ---क्षमा जगाओ----करुणा जगाओ--प्यार जगाओ.. आदर्श जगाओ—मर्यादा जगाओ-- मैं खुद ही मर जाऊँगा --।
’या ही इज टाकिंग समथिंग नाइस’-- शर्मा जी ने कहा
माथुर साहब ने हुंकारी भरी--’ जब मौत सामने दिखाई देती है तो ज्ञान निकलता है सर ।-दैट इज व्हाट एक्ज़ैक्टली ही इज टाकिंग’ !
कथावाचक ने जैसे ही अपने हारमोनियम पर तान छेड़ी-

--’रावन रथी ,विरथ रघुबीरा—

-उसी समय मुख्य अतिथि महोदय अपने मर्सीडीज़ "रथ’ से पधारते भए।
माईक से घोषणा हुई --- भाइयो और बहनो ! आप के दुलारे और हम सब के प्यारे मुख्य अतिथि महोदय अब  हमारे बीच पधार चुके है ---जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिए।
थोड़ी देर में ’रावण वध’ का आयोजन किया जायेगा
सब ने अपने अपने हाथ में पत्थर  उठा  लिए।
अस्तु
-आनन्द.पाठक-

रविवार, 2 अक्टूबर 2022

चन्द माहिए

 चन्द माहिए


:1:

क्यों ख़्वाब-ए-जन्नत में 

डूबा है, ज़ाहिद!

हूरों की जीनत में?


:2:

ये हुस्न की रानाई,

नाज़, अदा फिर क्या

गर हो न पज़ीराई !


:3:

ग़ैरों की बातों को,

मान लिया सच क्यों,

सब झूठी बातों को?


:4:

इतना ही फ़साना है, 

फ़ानी दुनिया में, 

बस आना-जाना है।,


:5:

तुम कहती, हम सुनते

बीत गए वो दिन,

सपने बुनते बुनते ।


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ

रानाई = सुन्दरता

पजीराई= स्वागत

फ़ानी दुनिया = नश्वर संसार