शनिवार, 10 दिसंबर 2022

एक ग़ज़ल : श्रद्धा हत्याकांड पर----

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एक ग़ज़ल   [ श्रद्धा हत्याकाण्ड पर ------

              ---ख़ला से आती एक आवाज़]




छुपे थे जो दरिंदे दिल में ,जब उसके जगे होंगे,

कटा जब जिस्म होगा तो नहीं आँसू झरे होंगे ।


न माथे पर शिकन उसके, नदामत भी न आँखों में,

कहानी झूठ की होगी, बहाने सौ नए होंगे ।


हवस थी या मुहब्बत थी छलावा था अदावत थी,

भरोसे का किया जो खून, दामन पर लगे होंगे ।


कटारी थी? कुल्हाड़ी थी? कि आरी थी? तुम्हीं जानॊ,

तड़प कर प्यार के रंग-ए-वफा पहले मरे होंगे।


हमारा सर, हमारे हाथ तुमने काट कर सारे,

सजा कर "डीप फ़ीजर" मे करीने से रखे होंगे।


लहू जब पूछता होगा. सिला कैसा दिया तुमने,

कटी कुछ ’बोटियाँ’ तुमने वहीं लाकर धरे होंगे ।


तुम्हारे दौर की यह तर्बियत कैसी? कहो ’आनन’ !

उसे ’पैतीस टुकड़े’ भी बदन के कम लगे होंगे ।



-आनन्द.पाठक- 

शब्दार्थ
ख़ला से = शून्य से
तर्बियत = परवरिश  संस्कार

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