गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

तपिस

 पतीले में आग पर रखा दूध

ले रहा था उबाल पर उबाल

क्षण भर को ओझल होती नज़र

और एक उबाल ...बिखर गया दूध

ह्रदय पटल पर स्मृतियों का उबाल

उठती गिरती बीती यादों की तरंगे

एक स्मृति की कोर में उलझी स्मृति

एक उबाल और बिखर गया हथेली पर

एक उबाल ही था या फूटी कोई ज्वालामुखी

लावा फूट कर फैला था तपिस बढ़ती रही

मुरझाई आँचल के कोने की एक ठंठी फुहार

तपिस अब भी बाकी है और आग पर पड़ा है बिखरे दूध का निशान !!

$hweta

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