शनिवार, 31 दिसंबर 2022

ऐसे भी न बीते


ऐसे भी न बीत सके
कभी किसी के साल
रीते रीते नयना हो
और भीगे भीगे गाल

पेड़ों को जब जब बढ़ना हो
और शाखों को चढ़ना हो
पत्ता पत्ता टूट गिरे
होवे न ऐसी  डाल

जीवन का जो झरना हो
उसको कलकल जब बहना हो
राह में रोड़े डाल कोई भी
बदले न उसकी चाल

सफ़र में उमर भर रहना हो
दर्द फिर भी सहना हो
ज़ख़्म कुरेदे नमक छिड़क
पूछे कोई न किसी का हाल

ऋण सांसों का भरना हो
किश्तों में मरकर जीना हो
कैसा होगा वो ऋणानुबंधन
आए जब न फिर भी काल !!

मैं जिन्दगी

३१/१२/२०२२

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