कभी-कभी बहुत कुछ लिखने का मन करता है,लेकिन लिख नहीं पाती। बहुत कुछ कहने का मन करता है, लेकिन कह नहीं पाती। 'मजबूरियां' रोकती हैं ।आखिर क्या है यह- मजबूरी। यह एक ऐसा शब्द है जिसे व्याख्यायित करना बहुत मुश्किल है।मजबूरियों के अनेक रूप हैं। हर व्यक्ति कहीं न कहीं मजबूर अवश्य है। संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो किसी न किसी बात पर मजबूर ना हो। भगवान राम की अपनी अलग मजबूरियां थी, कृष्ण की अपनी अलग। कभी सीता मजबूर थी, तो कभी राधा। कहने का तात्पर्य यह है कि जब देव पुरुष भी इन मजबूरियों से नहीं बच पाए तो हम जैसे साधारण मानव की बिसात ही क्या है? शायद यह मजबूरी ही संसार चक्र का कारण है। सभी एक दूसरे से जुड़े हैं,कभी प्रेम की मजबूरी के कारण तो कभी लोक लाज की मजबूरी के कारण। सभी अपने कार्य के प्रति वफादार हैं, कभी कर्तव्य की मजबूरी का कारण तो कभी आर्थिक हालात की मजबूरी के कारण।जहां मजबूरी खतम वहीं सारे बंधन,मोह- माया भी खतम। शायद गीता में श्रीकृष्ण ने इसी मजबूरी को मोह का नाम दिया हो और इसे त्यागने के लिए अर्जुन को ज्ञान दिया हो।😊🙏🙏🙏
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद
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