रविवार, 21 जून 2015

एक मंंजिल दो रास्ते

मैं आ रहा सहसा 
एक ओर से
तुम आ रहे सहसा 
एक ओर से
अधरों पर प्रमुदन लिए
मुख हो जैसे रस बिखरता
मन में बस एक गीत है 
हम तुम एक दुजे के मीत हैं
पर हमारे जो सम्मुख
अडीग खडी जो प्रित है 
वही हमारा पडाव 
वही हमारा लक्ष्य
वही हमारा सर्वत्र
एक मात्र जीवन का अर्थ
बाकी का सब ब्यर्थ
केवल अलग अलग पथ पर चलते हुए आकर 
प्रेमरूपी मंजिल तक पहुँचकर 
भिन्न से अभिन्न हो जाना है 
तुम हमारे वास्ते हो 
हम तुम्हारे वास्ते हैं
सिर्फ एक मंजिल है 
भले ही दो रास्ते हैं............

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें