शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल


ख़ुशी मिलती है उनको साजिशों के ताने-बाने में,
छ्लकता दर्द है घड़ियाल-सा आँसू बहाने में।

हिमालय से चली नदियाँ बुझाने प्यास धरती की,
लगे कुछ लोग हैं बस तिश्नगी अपनी बुझाने में।

हवाएँ बरगलाती हैं ,चिरागों को बुझाती हैं,
कि जिनका काम था ख़ुशबू को फ़ैलाना ज़माने में।

हमारे आँकड़े तो देख हरियाली ही हरियाली,
उधर तू रो रहा है एक बस ’रोटी’ बनाने में ?

मिलेगी जब कभी फ़ुरसत, तुम्हें ’रोटी’ भी दे देंगे,
अभी तो व्यस्त हूँ तुमको नए सपने दिखाने में।

जहाँ क़ानून हो अन्धा, जहाँ आदिल भी हो बहरा,
वहाँ इक उम्र कट जाती किसी का हक़ दिलाने में।

अँधेरा ले के लौटे है,हमारे हक़ में वो ’आनन,’
मगर है रोशनी का जश्न उनके आशियाने में ।

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

अनुभूतियाँ 04

 

अनुभूतियाँ 04

 

 01

क़तरा क़तरा दर्द हमारा,

हर क़तरे में एक कहानी ।

शामिल है इसमे दुनिया की

मिलन-विरह की कथा पुरानी ।

 

02

जब से छोड़ गई तुम मुझ को

सूना दिल का  कोना कोना ।

कब तक साथ भला तुम चलती,

आज नहीं तो कल था होना ।

  

03

इतना सितम न ढाओ मुझ पर

टूट गया तो जुड़ न सकूँगा ।

लाख करोगी कोशिश तो भी,

चला गया तो मुड़ न सकूँगा ।

 

 04

फूल-गन्ध का रिश्ता क्या है ?

तुम ने कभी नहीं जाना  है ।

जीवन भर का साथ  हमारा

लेकिन कब तुम ने माना है ।

  

-आनन्द.पाठक-

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

एक गीत : सरस्वती वंदना

 [*आज 16-फ़रवरी ,वसंत पंचमी और ’सरस्वती पूजन’ का दिन ।

इस शुभ अवसर पर रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ* । आशीर्वादाकांक्षी हूँ ।

सरस्वती वंदना


हंसवाहिनी ! ज्ञानदायिनी ! ज्ञान कलश भर दे !
माँ शारदे वर दे ।

मिटे तमिस्रा कल्मष मन का
मन निर्मल कर दो जन जन का

वीणापाणी ! सिर पर मेरे,वरद हस्त धर दे!
माँ!वागेश्वरी ! वर दे !

अंधकार पर विजय लिखे यह
सच के हक़ में खड़ी रहे यह

निडर लेखनी चले निरन्तर ,धार प्रखर कर दे !
!माँ भारती ! वर दे !

सप्त तार वीणा के झंकृत
हो जाते सब राग अलंकृत

बहे कंठ से स्वर लहरी माँ, राग अमर कर दे !
माँ सरस्वती ! वर दे ।

-आनन्द.पाठक-

[आप सभी को सपरिवार वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!!]

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

एक व्यंग्य व्यथा : वैलेन्टाइन डे-3

 एक व्यंग्य व्यथा :  वैलेन्टाइन डे -3

 इस 3- से आप ’पानीपत का "तीसरा" युद्ध न समझ लें । हालाँकि नव संस्कृति के नए दौर में  ’वैलेन्टाइन डे" मनाना किसी पानीपत के युद्ध से कम भी नहीं  ,

जहाँ एक तरफ़ नए नए प्रेमी जोड़े लड़के-लड़कियाँ -दूसरी तरफ़ संस्कृति के ठेकेदार. प्रशासन, पुलिस और बीच में पानीपत का मैदान ।

 2-वैलेन्टाइन डे मना चुका हूँ -मगर शहीद न हो सका ]

14-फ़रवरी ।

आज वैलेन्टाइन डे है ।प्रेम का प्रतीक -प्रेम दिवस। दो दिन बाद सरस्वती पूजा है । ज्ञान का प्रतीक, ज्ञान दिवस ।

वैलेन्टाइन डे हमेशा 14-फ़रवरी को ही पड़ता है । लगता है यह दिन उतना ही अटल है, सत्य है, शाश्वत है, जितना "प्रेम’।

परन्तु ज्ञान दिवस [सरस्वती पूजा] ’14-फ़रवरी से कभी पहले आ जाता है,कभी बाद में । इस साल प्रेम  पहले आ गया.ज्ञान बाद में आएगा।

ज्ञान और प्रेम में कोई न कोई संबंध अवश्य है । ज्ञान होता है  तो प्रेम उपजता है  प्रेम हुआ तो ज्ञान । गोपियों को जब  ज्ञान उपजा,

तो उद्धव जी  फ़ेल हो गए} मगर जब ’प्रेम’ असफल’ होता है तो ज्ञान -चक्षु खुलता है ।मेरा तो कई बार खुल चुका है। मत पूछना कैसे ?

हम" वैलेन्टाईन डे" मनाते है इसलिए कि अंग्रेज  मनाते हैं ।हम उनसे कम है क्या ?  हमारे यहाँ उस स्तर का कोई "वैलेन्टाइन"  पैदा ही नहीं हुआ। लैला- मज़नूँ ,सीरी-फ़रहाद,सोहनी-महीवाल

यह सब तो किस्से है, पढ़ने के लिए  सोनपुर के मएला में  ददरी के मेला में ,नाटक खेलने के लिए , मेला में नौटंकी करने के लिए ।इसीलिए बहुत से लड़कियाँ आज भी  इस स्तर के  प्रेम को ’नौटंकी’ ही मानती  है । 

इन देसी किस्सों में वह उत्सर्ग कहाँ जो वैलेन्टाइन वाले किस्से में है-निस्वार्थ और निश्छल-माडर्न,एडवान्स ,हाइ क्लास का प्रेम। ,

वह तो भला हो पश्चिमी देश वालों का .अंग्रेजों का, जो बता दिया कि वैलेन्टाइन का प्रेम सबसे बढ़ कर-शुद्ध- सात्विक ।तुम लोग भी मनाया करो, सो मनाते है प्रेम भाव से।

इस दिन,  नई फ़स्लों पर ,नई पौध पर बहार आ जाती है। या कहिए छा जाती है ।झूमने लगते है ।आपस में गले मिलने लगते है लड़के-लड़कियाँ।

पहले मैं भी  झूमता था। बाग़ों में ,तितलियाँ पकड़ता था ।एक महीना पहले से ही जुगाड़ में लग जाता था । आने वाले परीक्षा की चिन्ता नहीं करता था। वैलेन्टाईन डे की चिन्ता ज़रूर करता था। अगर इसमे पास हो गए तो

समझो लाइफ़ बन गई ,अगर वह ’वाइफ़’ न बनी तो । नकल कर करा के इक्ज़ाम पास कर के भी  क्या करेंगे--ज़्यादा से ज़्यादा क्लर्की करेंगे। फिर वही जीवन घसीटना।

बाग में  बैठा कर "उसको"  समझा रहा था --- तुम कहॊ तो आसमान से चाँद-तारे तोड़ कर ला सकता हूँ --- तुम कहॊ तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूँ ,-तुम कहो हवा का रुख मोड़ सकता हूँ

तुम कहो तो----तुम कहो तो----हम दोनो का -- एक छोटा सा बँगला बनेगा, न्यारा,कोठी बँगला गाड़ी  होगा --,कुत्ता- होगा --

"कुत्ता" ? -बीच ही में बोल उठी वह।--नहीं जानूऽऽऽऽ  ! तुम्हारे रहते कुत्ते की क्या ज़रूरत ?

"हें हें हें --तू भी अच्छा मज़ाक कर लेती है" --मैने अपनी बत्तीसी निपोरी।

"जानती हो ! हम लोग स्विटजरलैंड चलेंगे शादी के बाद हनीमून पर " -मैने उसे समझाया-- स्विटजरलैंड देखा है ? मैने सीना चौड़ा कर के पूछा ।

"हाँ जानती हूँ।हर साल कोई न कोई  तेरे जैसा निठल्ला  ’स्विटजर लैंड ले जाता है मुझे ।"

 अभी सपने बुन ही रहा था कि किसी ने  पीठ पर अचानक एक डंडा जमा दिया --बिलबिला कर मुड़ कर देखा  पीछे मूछें ताने पुलिसवाला खड़ा है।

मैं हड़बड़ा कर बोल उठा --"सर कजिन है, मेरी कज़िन सिस्टर  "

स्साले !मुझको चराता है । मैं भी अपनी जवानी में ऐसे ही कज़िन सिस्टर घुमाया करता था ।चल थाने !

एक डंडे से ’रिश्ते’ कैसे बदल जाते हैं ।

ख़ैर ,ले देकर मामला रफ़ा दफ़ा हो गया। मगर वो भाग गई ।

 अब मैं उसे ढूँढने निकला । किधर गई होगी ? किसके साथ भागी होगी? कहीं ’स्विटजरलैंड’ तो नहीं चली गई?

मैं दिन भर उसे ढूँढता रहा । मगर वह न मिली ।

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मिश्रा जी ने आते ही आते पूछा --"अब पीठ का दर्द कैसा है ?"

पीठ? किसकी पीठ ? कैसी पीठ ?-कैसा दर्द ? -मैने आश्चर्य भाव से पूछा। 

"बड़े मियाँ दीवाने ऐसे न बनो !-मिश्रा ने जिगर मुरादाबादी का एक तरमीम शुदा शे’र पढ़ा 

"जिगर" तू ने छुपाया लाख अपना दर्द-ओ-ग़म लेकिन

बयाँ कर दी तेरी सूरत ने सब कैफ़ियतें  दिल की 

"भाग गई न ? साल भर का दिन बर्बाद हो गया न । मियाँ ! बिना ’स्टेपनी’ के गाड़ी चलाओगे तो ऐसा ही होगा। मेरा देखो -मैं दो-दो ’स्टेपनी’  साथ लेकर चलता हूँ । एक भागी ,दूसरी हाजिर।

प्रभु ! आप के चरण किधर है ?-मैने कहा।

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अब तो एक ज़माना हो गया वैलेन्टाइन डे मनाए हुए।


जब से  श्रीमती जी को वैलेन्टाईन डे के पीछे का "खेल" और ’रहस्य’ मालूम हो गया  तब से  आज के वह मुझे कैद-ए-बा मशक़्क़त की सज़ा दे देती हैं। 

आज 14-फ़रवरी है । आज कहीं आने -जाने को नी । नो बाग़-बगीचा ,नो गार्डेन ।सर में जास्ती तेल-फ़ुलेल लगाने को नी ।आज नो रोमान्टिक शे’र-ओ-शायरी ।  घर बैठो --गीता पढ़ो --रामायण पढ़ो ।’राम-धुन ’ गाओ --

आँखें नीची ,आवाज़ ऊँची --

मित्रो ! आज 14-फ़रवरी है और मैं रामायण की चौपाइयाँ पढ़ रहा हूँ ।जोर जोर से पढ़ रहा हूँ ।

बरु भल बास नरक कर ताता। 

दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥

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नाम "लंकिनी’ एक निसचरी । सो कह चलसि मोहिं निंदरी ॥

 स्वामी आनन्दानन्द जी महराज कहते भए- घर में --

’त्रिजटा नाम राक्षसी एका ।--------

 प्रेम से  बोलो ’त्रिजटा’ मइया की जै ! वैलेन्टाइन महराज की जै ।

-आनन्द.पाठक-

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल (हर सू बीमारी नहीं तो)

हर सू बीमारी नहीं तो और क्या है दोस्तो,
ज़िंदगी भारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रोग से रिश्वत के कोई अब नहीं महफ़ूज़ है,
ये महामारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

सर छुपाने को न छत है, लोग भूखे सो रहे,
मुफ़लिसी ज़ारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

नारियाँ अस्मत को बेचें, भीख बच्चे माँगते,
घोर बेकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रहनुमा जिनको बनाया दुह रहे जनता को वे,
उनकी बदकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो। 

जो गया है बीत उसको भूल हम आगे बढ़ें,
ये समझदारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

जो वतन को भूल दुश्मन से मिलाये सुर 'नमन',
उनकी मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

चन्द माहिए

 चन्द माहिए


:1:
दुनिया को दिखाना क्या !
दिल न मिलाना तो,
फिर हाथ मिलाना क्या !

:2:
क्या तुम को ख़बर भी है ?
मेरे इस दिल में,
इक शौक़-ए-नज़र भी है ।

:3:
गुरबत में हो जब दिल,
दर्द कहूँ किस से ?
कहना भी है मुश्किल ।

:4;
अनबन हो भले जानम
तुम पे भरोसा है
रुठा न करो, हमदम !

5
कहता है कहने दो,
बातें ज़ाहिद की
ज़ाहिद तक रहने दो।


-आनन्द पाठक-

बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

एक व्यंग्य व्यथा : सम्मान करा लो----

                                     एक व्यंग्य व्यथा : सम्मान करा लो---

एक लघु व्यथा : सम्मान करा लो---

जाड़े की गुनगुनी धूप । गरम चाय की पहली चुस्की --कि मिश्रा जी चार आदमियों के साथ आ धमके।

-पाठक जी ! इनसे मिलिए --ये हैं फ़लाना जी--ये हैं हिरवाना जी--ये सरदाना जी--और ये हैं--मकवाना जी-’ मिश्रा जी ने परिचय कराया।

मैने भी किसी नवोदित साहित्यकार की तरह 45 डीग्री  कोण से झुक कर अभिवादन किया और आने का प्रयोजन पूछ ही रहा था कि मिश्रा जी सदा की भाँति बीच में  बोल उठे-""ये लोग ’पाठक’ का सम्मान करना चाहते हैं"

’-अरे भाई ,आजकल पाठक का सम्मान कौन करता है-? --सब लेखक का सम्मान करते है।

-यार समझे नहीं ,ये लोग आप का सम्मान करना चाहते है-पाठक जी का -मिश्रा जी ने स्पष्ट किय।

-अच्छा ये बात है  ,मगर ये लोग तुम्हें  मिले कहाँ?-- मन में  उत्सुकता जगी और लड्डू भी फूटे ।

-" ये लोग  मुहल्ले में भटक रहे थे ,पूछा तो पता लगा कि ये किसी मूर्धन्य साहित्यकार का सम्मान करना चाहते हैं तो मैने सोचा तुम्हारा ही करा देते हैं ,सो पकड़ लाया"

’अच्छा किया ,वरना ये लोग न जाने कहाँ कहाँ भटकते।अब अच्छे साहित्यकार मिलते कहाँ हैं और जो हैं वो सभी ’मूर्धन्य हैं ।अच्छा किया कि आप लोग यहाँ आ गए ।समझिए की आप की तलाश पूरी हु॥-’नो लुक बियान्ड फर्दर"- इस बार मैं45 डीग्री के कोण से झुक कर अभिवादन किया ।शायद ’अपना सम्मान’ शब्द सुनकर रीढ़ की हड्डी में 45 डिग्री का और झुकाव आ गया।वह लोग  भले हैं जिनमें रीढ़ की हड्डी नहीं होती।


श्रीमती जी ने चाय भिजवा दिया । श्रीमती जी की धारणा  है कि यदि कोई आ जाए और उसे जल्दी से ’टरकाना’ हो तो जल्दी से चाय पिलाइए कि वो जल्दी से ’टरके’। आजमाया हुआ नुस्खा है ।मगर मिश्रा जी उन प्राणियों में से न थे।

चाय आगे बढ़ाते हुए शिष्टाचारवश पूछ लिया--’जी आप लोग पधारे कहाँ से  हैं’?

’जी हमलोग ,ग्राम पचदेवरा जिला अलाना गंज से आ रहे है । हम लोगो ने गाँव में एक संस्था खोल रखी है ’अन्तरराष्ट्रीय ग्राम हिन्दी उत्थान समिति" और संस्था की योजना है हर वर्ष हिन्दी के एक मूर्धन्य साहित्यकार के सम्मान करने की ।

-पंजीकॄत  है? -मैने पूछा

-जी अभी नहीं ,हो जायेगी ,बहुत से साहित्यकार जुड़ रहें है हम से  --सक्रिय भी--,निष्क्रिय भी---नल्ले भी-ठल्ले भी --निठल्ले भी और ’टुन्ने ’ भी।

-टुन्ने  ? मतलब?

-जी. जो पी कर ’टुन्न’ रहते है और साहित्य की सेवा करते हैं।

-जी, बहुत अच्छा काम कर रहे है आप लोग ,बताइए मुझे क्या करना होगा?

’-आप को कुछ नहीं करना है --आप को बस हाँ करना है ---अपना सम्मान करवाना है --’सम्मान’ हम कर देंगे --  ’सामान’ आप  देंगे । बाक़ी सब ’हिरवाना ’ जी सँभाल लेंगे"---फ़लाना जी ने बताया

हिरवाना  जी ने बात यहीं से उठा ली  --- "सर कुछ नहीं ,हम लोगों  का बस 5-लाख का बजट है। आप को बस कुछ सामान की व्यवस्था करनी होगी -अपना सम्मान कराने हेतु जैसे --चार अदद शाल --चार अदद ’पुष्प-गुच्छ"---चार अदद रजत प्रमाण पत्र--चार अदद  चाँदी के स्मॄति चिह्न--चार अदद चाँदी की तश्तरी--चार अदद फोटोग्राफ़र-- चालीस निमन्त्रण पत्र--- टेन्ट-कुर्सी की व्यवस्था  -चालीस आदमियों के अल्पाहार की व्यवस्था---कुछ प्रेस वालों के लिए स्मॄति चिह्न --- सब 5-लाख के अन्दर हो जायेगा ।

-’अच्छा--- तो आप लोग क्या करेंगे?- मैने मन की क्षुब्धता दबाते हुए पूछा।

-’हम सम्मान करेंगे’ -जवाब फ़लाना जी ने दिया -’हमलोग भीड़ इकठ्ठा करेंगे--आप का गुणगान करेंगे--आप का प्रशस्ति पत्र पढ़ेंगे ...आप को इस सदी का महान लेखक बताएंगे--एइसा लेखक--- न हुआ है और न सदियों तक होगा। आप का नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में लाने के लिए सत्प्रयास करेंगे--जिसे हिंदी साहित्य के इतिहासकारों ने छॊड़ दिया है ! आप की हैसियत देख कर  5-लाख का बजट ज़्यादा नहीं है ,सर! वरना तो यहाँ बहुत से साहित्यकार  सम्मान कराने हेतु दस-दस ,बीस-बीस लाख तक खर्च करने से भी गुरेज नहीं करते और हमें फ़ुरसत नहीं मिलती। अगर कुछ बच गया तो संस्ठा में आप के नाम से  ’योगदान’ में डाल देंगे। साथ में आप की एक पुस्तक  का ’विमोचन’ फ़्री में  करवा देंगे ----

-कोई --रिबेट---डिस्काउन्ट--आफ़-- सीजनल  डिस्काउन्ट ..? -कन्सेशन - कैश बैक ,’गिफ़्ट कूपन ?-मैने जानना चाहा

इस बार मकवाना जी बोले --" सर महँगाई का ज़माना है --गुंजाइश नहीं है  --अगर होता तो ज़रूर कर देते।

-अच्छा-- ये चार अदद--चार अदद --किसके लिए?

-सर एक तो मंच के सभापति जी के स्वागत के लिए --जो फ़लाना जी ख़ुद हैं ।दूसरा मुख्य अतिथि के स्वागत के लिए- जिसके लिए  हिरवाना जी ने अपनी सहमति प्र्दान कर दी है---तीसरा इस संस्था के संस्थापक के स्वागत के लिए जो यह हक़ीर अकिंचन आप के सामने है और चौथा आप के लिए--

-और सरदाना जी ? ---जिज्ञासावश पूछ लिया।

सरदाना जी को कुछ नहीं ,शायर आदमी हैं । वह तो बस भीड़ जुटाएंगे--टेन्ट लगवाएंगे-कुर्सी लगवाएँगे -दरी  बिछाएंगे--जाजिम उठाएँगे --अल्पाहार के प्लेट घुमाएंगे----’ फ़लाना जी ने स्थिति स्पष्ट की

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 कुछ देर तक आँख बन्द कर  मै  चिन्तन-मनन करता रहा --अपनी इज्जत की कीमत लगाई--लेखन का दाम लगाया-कलम की धार देखी- बुलन्दी का एहसास किया - बुलन्दी की शाख टूट भी सकती है --सदी कितनी बड़ी होती है-सदी का साहित्यकार कितना बड़ा होता होगा -मूर्धन्य साहित्यकार क्या होता है । जो मूर्धन्य हैं  क्या वो भी  इसी रास्ते से गए होंगे-- लेखन की साधना का कोई सम्मान नहीं  - यह सम्मान हो भी जाए तो कितना दिन रहेगा---उस सम्मान की अहमियत क्या ---जो संस्था खुद ही अनाम है---कैसे कैसे दुकान खुल गए है  हिन्दी के नाम पर ---लेखन पर ध्यान नहीं  हिंदी के ’उत्थान पर ध्यान नहीं -छपने छपाने पर ध्यान है - सम्मान कराने पर ध्यान है--तभी तो ऐसी कुकुरमुत्ते जैसी  संस्थायें पल्लवित पुष्पित हो रही है। आजकल--- थोक के भाव-सम्मान पत्र वितरित कर रहें है -आप नाम बताएँ और प्रमाण-पत्र पाएँ -चाहे तो अपना नाम खुद ही भर लें ॥ भाग रहे हैं लोग इन्ही  संस्थाऒ के पीछे -- बाद में उसी को एक  नामी और विख्यात -- ,विश्व विख्यात --राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संस्था बताने की एक  नाकाम कोशिश-करेंगे--क्या सोच रहा है आनन्द ..मूढ़्मते ! ---गंगा खुद चल कर तेरे घर आईं है -बहती गंगा में  हाथ धो ले ---उतार यह कॄत्रिमता का लबादा्--- हरिश्चन्द्र बना रहेगा तो ’चांडाल के हाथ बिक जायेगा  - तू पीछे रह जायेगा -दुनिया आगे निकल जाएगी  -धत.-  - घॄणा होती है --हिन्दी के उत्थान के नाम पर क्या क्या तमाशे हो रहे हैं ---जिन्हे उत्थान के लिए कुछ करना नहीं - -लेना देना नहीं -उन्हीं लोगो का तमाशा है --अब तो लोग ’वर्तनी’ भी ठीक से नहीं लिख पा रहे हैं --भाषा विन्यास की तो बात ही छोड़ दें-व्याकरण की बात तो हवा हो गई --सम्मान करवाने की जल्दी है- छपने-छपाने की जल्दी है --कतरन बटोरने की जल्दी है -माला पहनने की जल्दी है-- शाल लपेटने की जल्दी है --- बाबुल मोरा नइहर  छूटल जाय   --

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मैने आँखे खोली या यूँ कहें ’मेरी आँखे खुल गई’,।

हिरवाना जी ने रसीद बुक आगे बढ़ाते हुए ,पूछा--" कितने की ’रसीद’ काट दूँ ,सर!?

हाथ जोड़ कर कहा--"भाई साहब ,माफ़ कीजिएगा --मुझे स्वीकार नहीं कि-मैं --।"

अभी वाक्य पूरा भी नहीं  हो पाया था कि फ़लाना सिंह जी दुर्वासा-सा शाप देते हुए उचानक उठ खड़े हुए--" मालूम था ,आप जैसे नकली लेखको से ही हिन्दी का उत्थान नहीं हो पा रहा है। पता नहीं कहाँ कहाँ से ,कैसे कैसे कंजड़ ’कलम घिसुए’ ’चिरकुटिए’ चले आते है  साहित्य जगत में॥ हम तो शकल से ही पहचान गए थे।--भगवान भला करे इस देश का ।चलो मित्रो !"


-आनन्द.पाठक-