रविवार, 11 जुलाई 2021

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल 


रिश्तों की बात कौन निभाता है आजकल 

वह बेग़रज़ न हाथ मिलाता  है आजकल


यह और बात है उसे सुनता न हो कोई

फिर भी वो मन की बात सुनाता है आजकल


कहना तो चाहता था मगर कह नहीं सका

कोई तो दर्द है ,वो छुपाता  है आजकल


लोगों के अब तो तौर-तरीक़े बदल गए

किस दौर की तू बात सुनाता है आजकल 


मौसम चुनाव का अभी आने को है इधर

वह ख़्वाब रोज़-रोज़  दिखाता है आजकल


सच बोल कर भी देख लिया ,क्या उसे मिला ?

वह झूठ की दुकान चलाता है आजकल 


’आनन’ बदल सका न ज़माने के साथ साथ

आदर्श का वो कर्ज़ चुकाता है आजकल ।


-आनन्द पाठक-

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ,लोगों के अब तो तौर-तरीक़े बदल गए

    किस दौर की तू बात सुनाता है आजकल

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  2. रिश्तों की बात कौन निभाता है आजकल

    वह बेग़रज़ न हाथ मिलाता है आजकल

    बहुत ही उम्दा गजल सर

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