शनिवार, 26 मार्च 2022

कुछ अनुभूतियाँ

 कुछ अनुभूतियाँ---


1
वह निर्णय था स्वयं तुम्हारा
ग़लत किया या सही किया था ,
अब पछताने से क्या होगा
दिल ने तुम से, सही कहा था ।


2
इतना कर न भरोसा, पगले !
उड़ते बादल का न ठिकाना ,
आज यहाँ, कल और कहीं हो
उसको क्या हमराज़ बनाना ।

3
झूठे सपने मत देखा कर
इन आँखों से जगते-सोते
तू भी जान रहा है, प्यारे!
सपने हैं ,कब पूरे होते ।

4
छुप छुप कर बातें करतीं थी
यादें तेरी तनहाई में -
कितने स्वप्न बुना करती थी
जीवन की नव तरूणाई में ।


-आनन्द.पाठक-
8800927181

मंगलवार, 22 मार्च 2022

चन्द माहिए

 

चन्द माहिए

:1:

जब प्यार भरे बादल,
सावन में बरसें,
भीगे तन-मन-आँचल।

 

 :2:

प्यासी आँखें तरसी,

बदली तो उमड़ी,

जाने न कहाँ बरसी ?

 

:3:

जब जब चमकी बिजली,

डरती रहती हूँ,

उन पर न गिरे, पगली !

 

 :4:

चातक की प्यास वही,

बुझ न सकी अबतक,

इक बूँद की आस रही।

 

5

ये दर्द हमारा है,

तनहाई में ज्यों,

तिनके का सहारा है।

 

-आनन्द.पाठक-

8800927181

मंगलवार, 15 मार्च 2022

एक ग़ज़ल ---होली में


ग़ज़ल --होली में



करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,

बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में   ।


अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती

कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में  ।


इधर कान्हा की टोली है उधर ’राधा’ अकेली है

चलें दोनो तरफ़ से रंग की बौछार होली में ।


कहीं है  थाप चंगों पर, कहीं पायल की छमछम है,

कही पर कर रहा कोई सतत मनुहार होली में ।


किसी के रंग में रँग जा, न आता रोज़ यह मौसम,

किसी का हो गया है जो, वही हुशियार होली में ।


बिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की

खुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।


गुलालों में घुली हैं स्नेह की ख़ुशबू  मुहब्बत की ,

भुला कर सब गिले शिकवे गले मिल यार होली में ।


न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,

चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में ।



-आनन्द.पाठक-

8800927181



बुधवार, 9 मार्च 2022

एक ग़ज़ल

 

एक ग़ज़ल

 

गुमराह हो गया तू बातों में किसकी आ कर ,
दिल राहबर है तेरा, बस दिल की तू सुना कर ।   


किसको पुकारता है पत्थर की बस्तियों में ,
खिड़की नहीं खुलेगी तू लाख आसरा कर ।       


मिलना ज़रा सँभल कर, बदली हुई हवा है ,
हँस कर मिलेगा तुमसे ख़ंज़र नया छिपा कर ।         


जब सामने खड़ा था भूखा ग़रीब कोई ,
फिर ढूँढता है किसको दैर-ओ-हरम में जाकर ।    


मौसम चुनाव का है ,वादे तमाम वादे ,
लूटेंगे ’वोट’ तेरा ,सपने दिखा दिखा कर ।        


मेरा जमीर मुझको देता नहीं इजाज़त ,
सम्मान’ मैं कराऊँ ,महफ़िल सजा सजा कर ।    


आनन’ तेरी ये ग़ैरत अब तक नहीं मरी है,
रखना इसे तू ज़िन्दा हर हाल में बचा कर ।      

 


-
आनन्द.पाठक-

 

मंगलवार, 8 मार्च 2022

तुझे छोड़ कर नहीं आया

 मैं तुझे छोड़ कर नहीं आया,

तेरा दिल तोड़ कर नहीं आया,

ऐसा करना तो रहा कोसों दूर

सपने में भी सोच तक नहीं पाया।

जब चाय का डिब्बा हो खाली

तब उसे फेंकना ही पड़ता है।

वैसे ही साँसें ख़त्म होने पर

नया चोला बदलना पड़ता है ।

तुम मेरे बिना उदास मत होना

तुमको सक्षम बना  के आया हूँ

और बेटों के सशक्त हाथों में

उनकी अम्मा को छोड़ आया हूँ ।

जितनें भी दिन बचें हैं पास तेरे

ख़ुशी के साथ काम करना प्रिये

हर दिन कुछ अच्छा हो तुमसे

ऐसे प्रयत्न ही करना प्रिये ।

जब तुम्हारा काम पूरा होगा यहाँ

तुम भी इसी रेल से निकल लेना

जब तुम्हारी ट्रेन वहाँ पहुँचेगी

तुमको स्टेशन पे ही मिलूँगा खड़ा ।