गुरुवार, 26 मई 2022

मिलोगे कभी क्या मुझे तुम, बता दो ?

 मिलोगे कभी क्या मुझे तुम, बता दो ?

सज़ा मुझको दोगे यूं कब तक, बता दो 


यहां अब सवेरे आते नहीं है 

अंधेरे यहां से जाते नही है 

न चांद यहां है 

सितारे न कोई 

रातें यहां पर न सदियों से सोई 

ये पल कब तलक हो 

समय को बता दो 


कोई लफ्ज़ बोले न अपनी कहानी

कोई आंख खोले न अपनी ज़ुबानी

न शिकवा किसी को 

शिकायत न कोई 

बेसबब बेवजह हो कब तक यूं कोई 

उदास ये गम कब तलक हो

दिल को बता दो 


ये धड़कन थोड़ी  थमी सी हुई है 

बदन में भी कोई आहट नही है 

न सांसों  में गर्मी 

न होंठों में नर्मी 

मर मर के जिए कब तक यूं कोई 

 बेवजह ज़िंदगी  कब तलक हो 

 हमें अब बता दो 


क्या मिलोगे मुझे तुम कभी ये बता दो ?

सज़ा मुझको दोगे यूं कब तक बता दो ?


सोमवार, 23 मई 2022

कब तक यूं ही

 कब तक यूं ही बात न हो 

साथ तो हो पर साथ न हो 

धरती अंबर से न बोले 

ऐसे तो कभी हालात न हो 


धूप भले फिर लाख जला ले 

छांव का सर पे हाथ न हो 

उखड़े उखड़े  दिन हो चाहे 

मायूस मगर ,  ये रात न हो 


#बस_यूँ_ही

Okamfo Anokye

 


ओ ईश्वर की ताकतों 

ओ स्वर्ग  देवता

सुना है 

Ashanti कबीले के 

मुख्य पुजारी ओकाम्फो अनोयेचे ने 

वहां के अन्य पुजारियों और

उपासकों और

धर्मावलंबीयों संग

अनगिनत मंत्र पढ़े थे

पूजा की थी तुम्हारी

मंत्रोच्चारण के साथ


तुम्हारी कृपा पाने के लिए 

आत्ममंथन चिंतन 

जप और तप किया था

तब तुमने 

प्रसन्न होकर 

उनके  राजा ओसेई टुटू के दामन में

एक छोटी सी अनोखी

सोने की मेज़ दी थी 

ये मेज़

प्रजा को 

नेक और एक 

अथाह और असीमित 

शक्ति  समृद्धि और शांति 

देती  थी 

सुना है 

छुपा दी थी 

वो सोने की मेज़

कबीले के सुख 

और समृद्धि के लिए...

कि कोई ढूंढ न पाए 



आज जब कि

 पूरे विश्व में 

द्वेष है अशांति फैली है 

लोगो के बीच कलह मचा है 

देशों के बीच 

गदर मचा है 

युद्ध है 

चीत्कार है 

लाशों के 

अंबार लगे है 

सुनो ओ आसमानी देवता

ओ ओकाम्फो अनोयेचे

फिर ले आओ 

वो सुनहरी मेज़ 

कहीं से ढूंढ कर लाओ


आओ 

ओ ओकाम्फो अनोयेचे

अमन चैन का परचम 

सारे जहां में दर दर फहराओ

आओ कि दुनिया में 

अमन  सुकून 

कुछ सुख चैन 

दरो दीवार में 

रगो में सबके 

भर जाओ 




रविवार, 15 मई 2022

Life of hope

 When the brain though said 

That I am all  dead 

While the heart kept pumping 

Ample blood 


In the blood 

Lived somewhere a tiny   hope 

That there was a life

When all said - nope !


Few traces of prayers 

Lived in those weary eyes 

When Tonnes of wishes 

Were sent in guise


And one fine day when 

All Thought the battle was lost

Specks of life  fluttered 

In the last  breathes that fought 


I breathed to life 

With all my might 

Gave all it took 

As it was worth a fight 


Since,

 when the dusk, the dawn 

When all will be gone 

My good deeds 

Will be my eternal song 


~Sandhya






गुरुवार, 12 मई 2022

कुछ अनुभूतियाँ

 कुछ अनुभूतियाँ 


1

मेरे मन की इक दुनिया में

एक तुम्हारी भी दुनिया थी

आज वहाँ बस राख बची है

जहाँ कभी अपनी बगिया थी ।


2

सौ सौ जतन किए थे मैने

फिर भी रोक न पाया तुम को

आख़िर तुम ने वही किया जो

ग़ैरों ने समझाया तुम को ।


3

क्या तुम भी तारे गिनती हो

सूनी सूनी सी रातों में ?

जाओ तुम भी सो जाओ अब

क्यों उलझी हो उन बातों में ?


4

काल-चक्र को चलना ही है

कोई गिरता, उठता कोई ,

जीवन और मरण का सच है

कोई सोता, जगता कोई । 


-आनन्द.पाठक- 


मकरन्द छंद "कन्हैया वंदना"

 मकरन्द छंद


"कन्हैया वंदना"

किशन कन्हैया, ब्रज रखवैया, 
        भव-भय दुख हर, घट घट वासी।
ब्रज वनचारी, गउ हितकारी, 
        अजर अमर अज, सत अविनासी।।
अतिसय मैला, अघ जब फैला,
          धरत कमलमुख, तब अवतारा।
यदुकुल माँही, तव परछाँही,
            पड़त जनम तुम, धरतत कारा।।

पय दधि पाना, मृदु मुसकाना,
         लख कर यशुमति, हरषित भारी।
कछु बिखराना, कछु लिपटाना,
         तब यह लगतत, द्युति अति प्यारी।।
मधुरिम शोभा, तन मन लोभा,
           निश दिन निरखत, ब्रज नर नारी।
सुख अति पाके, गुण सब गाके, 
            बरणत यह छवि, जग मँह न्यारी।।

असुर सँहारे, बक अघ तारे,
            दनुज रहित महि, नटवर  कीन्ही।
सुर मुनि सारे, कर जयकारे,
             कहत विनय कर, सुध प्रभु लीन्ही।।
अनल दुखारी, वन जब जारी,
              प्रसरित कर मुख, तुम सब पी ली।
कर मुरली है, मन हर ली है,
               लखत सकल यह, छवि चटकीली।।

सुरपति क्रोधा, धर गिरि रोधा, 
        विकट विपद हर, ब्रज भय टारा।
कर वध कंसा, गहत प्रशंसा,
         सकल जगत दुख, प्रभु तुम हारा।।
हरि गिरिधारी, शरण तिहारी,
         तुम बिन नहिं अब, यह मन मोहे।
छवि अति प्यारी, जन मन हारी, 
        हृदय 'नमन' कवि, यह नित सोहे।।
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मकरन्द छंद विधान -

"नयनयनाना, ननगग" पाना,
यति षट षट अठ, अरु षट वर्णा।
मधु 'मकरन्दा', ललित सुछंदा,
रचत सकल कवि, यह मृदु कर्णा।।

"नयनयनाना, ननगग" =  नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु

111  122,  111  122,  111  111 11, 1111  22 = 26 वर्ण की वर्णिक छंद, 4 चरण, यति 6,6,8,6,वर्णों पर।

दो-दो या चारों पद समतुकांत।
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

रविवार, 8 मई 2022

एक गीत - माँ मेरे सपनों में आती -----[ मातॄ दिवस पर विशेष----]

 [ मातॄ दिवस पर विशेष ---

एक गीत : माँ मेरे सपनों में आती
माँ मेरे सपनों में आती
सौम्य मूर्ति देवी की जैसी, आकर ममता छलका जाती....
माँ मेरे सपनों में आती ---
कितनी धर्म परायण थी , माँ
करूणा की वातायन थी , माँ
समय शिला पर अंकित जैसे
घर भर की रामायन थी , माँ
जब जब व्यथित हुआ मन भटका जीवन के एकाकीपन में...
स्नेहसिक्त आशीर्वचन, माँ मुझ पर आ कर बरसा जाती....
माँ मेरे सपनों में आती,.....
साथ सत्य का नहीं छोड़ना
चाहे हों घनघोर घटाएँ
दीन-धरम का साथ निभाना
चाहे जितनी चलें हवाएँ
एक अलौकिक ज्योति पुंज-सी शक्ति-स्वरूपा सी लगती है
समय समय पर सपनों में आ कर माँ मुझको समझा जाती माँ मेरे सपनों में आती ---
घात लगाए बैठी दुनिया
सजग तुम्हें ही रहना होगा
जीवन पथ पर बढ़ना है तो
तुम्हें स्वयं ही लड़ना होगा
यहाँ रहे या वहाँ रहे माँ, जहाँ रहे बस माँ होती है अपने आँचल की छाया कर सर पर मेरे फैला जाती
माँ मेरे सपनों में आती
-आनन्द.पाठक-

इक चांद उकेरा है मैंने

 अपनी  हथेली पर देखो

इक चांद उकेरा है मैने

कुछ तारें सजाए  है मैने

कुछ ख़्वाब उगाए है मैंने


ये चांद सुबह तक सूखेगा

फिर पतझड़ सा

झड़ जाएगा

टूट गिरेंगे तारें भी

बस ज़ख्म कोई रह जायेगा

सूखेगा माना घाव सही

पर दाग़ कोई रह जायेगा

किस्सा ये अधूरा अपना फिर

दुनिया को सुनाया जाएगा


बुधवार, 4 मई 2022

नई उड़ान अब फलक में भरते है


  

ख़त्म अब राबते सब

आज उसके दर से करते है 

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..


ज़ख्मी है रातें  

रूठे है  दिन ये

शामें  उदास है

कुछ उसके बिन ये...

पर, बीतें लम्हों का चल,

आज कोई गम न करते है ....

हौसला हर घड़ी  हर शाम ,

हर सहर  में भरते है ...

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..

ख़त्म सब राबते चल

आज उसके दर से करते है 


झूठे थे वादें

और झूठे इरादे 

वफ़ा को ऐसी 

भी क्या कोई सजा दे ?

पर, उलझने  चल आज दिल की 

थोड़ी कम  सी करते है ....

ज़िंदगी उड़ान है , उड़ान फिर

खुले अंबर में भरते है ...

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..

ख़त्म सब राबते चल

आज उसके दर से करते है 


~संध्या राठौर






ज़िंदगी..चल आज अपने घर को चलते है ..

  

ख़त्म अब राबते सब

आज उसके दर से करते है 

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..


ज़ख्मी है रातें  

रूठे है  दिन ये

शामें  भी झुरमूट में

बैठी  सुनमुन ये...

बीतें लम्हों का चल,

आज कोई गम न करते है ....

हौसला हर घड़ी  हर शाम ,

हर सहर  में भरते है ...

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..

ख़त्म सब राबते चल

आज उसके दर से करते है 


झूठे वो वादें

झूठे इरादे 

दिल को भी ऐसी क्या 

कोई सजा दे ?

टूटे धागों का चल

आज कोई गम न करते है ....

ज़िंदगी उड़ान है , उड़ान फिर

नए फलक  में भरते है 

चल ज़िंदगी..चल 

आज  अपने  घर को  चलते है ..

ख़त्म सब राबते चल

आज उसके दर से करते है 


~संध्या राठौर




रविवार, 1 मई 2022

सूने अंधेरे

सूने अंधेरें कब तक गुजरेंगे

सन्नाटों को बांचते,

दिन भी  गुजरें, जैसे तैसे

खालीपन को  फांकते...


दीवारें सुनती नहीं अब,

 दरवाज़े खुलते नही ,

टेबल कुर्सी 

जस के तस है 

झूले भी हिलते नही ...

फानूस भी जो 

हवा चले, 

देखो, कैसे   है खांसते....

तन्हा तन्हा रोते  घर ये 

जब खुद की खिड़की से 

खुद को  ये झांकते ....


कोई एक दस्तक तो हो,

 कोई रास्ता खुद तक  हो,

 किसी ख़्वाब की,

 ख्वाहिश की मेरी..

 छोटी सी, पर 

 ज़द तो हो !

 शुरू होकर जो 

 खतम  हो जाए 

ऐसी ही सही, 

कोई हद तो हो ....

कहीं तो, गम की,

किसी खुशी से ,

छोटी सी, खटपट तो हो !

निष्प्राण पड़े इस जीवन में

कोई तो, हरकत सी हो ....

थक गई आंखें

फरियादों की,

फेहरिस्तों को यूं  बांचते...

बेचैनी के फटे लिबास को 

 इंतज़ार के पैबंदों से ढांकते...

 

सूने अंधेरें कब तक गुजरेंगे

सन्नाटों को बांचते,

दिन भी  गुजरें, जैसे तैसे

खालीपन को  फांकते...


~संध्या