शनिवार, 23 जुलाई 2022

एक गीत - किसकी यह पाती है----

आज का गीत 

[डायरी के पन्नों से----]

एक युगल गीत  :किसकी यह पाती है-----

[ बचपन की प्रीति थी, जब  बड़ी हो गई, दुनिया की रस्म ,रिवायात  खड़ी हो गईं। हालात ऐसे की परवान न चढ़ सकीं ।जीवन के सुबह की एक लिखी हुई पाती ,जीवन के शाम में मिलती  गुमनाम ।
जीवन के सारे घटनाक्रम स्मृति पटल पर किसी चलचित्र की भाँति उभरते गए----। उस पाती में कुछ बातें नायक ने कही---कुछ नायिका ने कही। आप स्वयं समझ जायेंगे।

किसकी यह पाती है ,जीवन के नाम 
मिलती है शाम ढले , मुझको गुमनाम  ?

 पूछा है तुमने जो मइया का हाल   
 खाँसी से , सर्दी से रहतीं बेहाल
 लगता है आँखों में है ’मोतियाबिन’
 कैसी हो तुम बोलो? कैसी ससुराल?

पकड़ी हैं खटिया औ’ लेती हरिनाम
कहती हैं-’करना है अब चारो धाम’

 हाँ ,मइया की ’मुनिया’ है अच्छी भली
कहना कि मईया  वो पूतो   फली
 देखा था मइया में  सासू’  का रूप
 ’कब बिधिना’ के आगे है किसकी चली !

 जो चाहेंगे भगवन, तो अगले जनम 
मइया से कह देना हमरा परनाम

 अब की जो सावन में जाना हो गाँव
 बचपन मे खेले थे  कागज की नाव
 मन्नत के धागे  जो मिल कर थे बाँधे 
 पड़ती है उस पर क्या पीपल की छाँव ?

सावन के झूले अब आते हैं याद
रहता है  होठों  पर बस तेरा नाम? 

 सुनती हूँ गोरी अँगरेजन सौगात
 ’कोरट’ में शादी कर लाए हो साथ
 चलती हो ’बिल्ली’ ज्यों ’हाथी’ के संग
 मोती की माला ज्यों ’बन्दर’ के हाथ

हट पगली ! काहे को छेड़े है आज
ऐसे भी करता क्या कोई  बदनाम !

कैसी थी मजबूरी ? क्या था आपात?
छोड़ो सब बातें वह , जाने दो, यार !
कितनी हैं बहुएँ औ’ कितने संतान ?
कैसे है ’वो’ जी ? क्या करते हैं प्यार ?

कट जाते होंगे दिन पोतों के संग
बहुएँ क्या खाती हैं  फिर कच्चे आम ?

 जाड़े में ले लेना ’स्वेटर’ औ’ शाल
 खटिया ना धर लेना ,फिरअब की साल
 मिलने से मीठा है मिलने की चाह
 काहे को करते हो मन को बेहाल

सुनती हूँ -करते हो फिर से मदपान
क्या ग़म है तुमको जो  पीते हर शाम

 अपनी इस ’मुनिया’ को तुम जाना भूल
 जैसे   थी वह कोई आकाशी फूल  
 अपना जो समझो तो कर देना माफ़
 कब मिलते दुनिया में नदिया के कूल !

दो दिल जब हँस मिल कर गाते हैं गीत
दुनिया तो करती ही रहती  बदनाम

 धत पगली ! ऐसी क्या होती है रीत
 खोता है कोई क्या  बचपन की प्रीत
 साँसों में घुल जाता जब पहला प्यार
  कब निकला  प्राणों से पहले ,हे  मीत !

इस पथ का राही हूँ ,मालूम है खूब
मर मर के जीना औ’ चलना है काम

किसकी यह पाती है ,जीवन के नाम 
शाम ढले मिलती है  मुझको गुमनाम।

-आनन्द.पाठक--

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

काँवड यात्रा-कुछ दोहे

काँवडिया गाता चले,शिव महिमा के गीत।

आनंदित तन-मन लगे,मन में बसती प्रीत।


काँवडिया चलता चले,लेकर पावन नीर।

काँटे चुभते पाँव में,होता नहीं अधीर।


श्रावण के इस मास में,आओ शिव के द्वार।

औघड़ दानी वे सदा,करें सदा उद्धार।


काँवड़ शिव के नाम की,लेकर चलते लोग।

भक्ति भावना से भरे,करें ध्यान अरु योग।।


काँवड़ काँधे पर सजी,मुख में शिव का नाम।

संगी-साथी मिल चले,पहुँचे शिव के धाम।।


अभिलाषा चौहान 

रविवार, 17 जुलाई 2022

ॐ नमः शिवाय

 ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय


कण कण में शंकर 

मन मन में शंकर 

ब्रह्मांड समस्त है 

शिव  शंकाराय 

ॐ नमः शिवाय


भस्म रमाए

और चर्म चढ़ाए

गंगा जटाओं में

ऐसे समाय

ॐ नमः शिवाय


चंद्र विभूषित

शक्ति सुशोभित

त्रिनेत्र में जल थल 

प्रलय है समाय 

ॐ नमः शिवाय


आंखों में करुणा

और विरक्ति के भाव

 विषय वासना पर 

 विजय है शिवाय 

ॐ नमः शिवाय


है प्रेम के भूखे

भाव के भूखे

धतूरा बेल  

विभूति  चढ़ाय

ॐ नमः शिवाय


सोमनाथाय 

ममलेश्वराय

द्वादश ज्योर्तिलिंग 

स्वरूपाय 

ॐ नमः शिवाय


एक ग़ज़ल : चुभी है बात कोई

 एक ग़ज़ल 


चुभी है बात उसे कौन सी पता भी नहीं ,

कई दिनों से वो करता है अब ज़फ़ा भी नहीं ।


हर एक साँस अमानत में सौंप दी जिसको ,

वही न हो सका मेरा , कोई गिला भी नहीं ।


किसी की बात में आकर ख़फ़ा हुआ होगा,

वो बेनियाज़ नहीं है तो आशना भी नहीं ।


ज़ुनून-ए-शौक़ ने रोका हज़ार बार उसे ,

ख़फ़ा ख़फ़ा सा रहा और वह रुका भी नहीं ।


ख़याल-ए-यार में इक उम्र काट दी मैने ,

कमाल यह है कि उससे कभी मिला भी नहीं ।


तमाम उम्र उसे मैं पुकारता ही रहा ,

सुना ज़रूर मगर उसने कुछ कहा भी नहीं ।


हर एक शख़्स के आगे न सर झुका ’आनन’ 

ज़मीर अपना जगा, हर कोई ख़ुदा भी नहीं ।


-आनन्द.पाठक-

मो0 8800927181


रविवार, 10 जुलाई 2022

कुछ अनुभूतियाँ

 

कुछ अनुभूतियाँ

 

 

01

कल तुमने की नई शरारत,

दिल में अभी हरारत सी है

ख़्वाब हमारे जाग उठे फिर

राहत और शिकायत भी है

 

02

जब तुम को था दिल बहलाना

पहले ही यह बतला देते

लोग बहुत तुम को मिल जाते,

चाँद सितारे भी ला देते ।

 

03

मधुर कल्पना मधुमय सपनें

कर्ज़ तुम्हारा है, भरना है,

जीवन की तपती रेती पर

नंगे पाँव  सफ़र करना है ।

 

04

मत पूछो यह कैसे तुम बिन

विरहा के दिन, कठिन ढले हैं ,

आज मिली तो लगता ऐसे

जनम जनम के बाद मिले हैं ।

 

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

रुचि छंद "कालिका स्तवन"



माँ कालिका, लपलप जीभ को लपा।
दुर्दान्तिका, रिपु-दल की तु रक्तपा।।
माहेश्वरी, खड़ग धरे हुँकारती।
कापालिका, नर-मुँड माल धारती।।

तू मुक्त की, यह महि चंड मुंड से।
विच्छेद के, असुरन माथ रुंड से।।
गूँजाय दी, फिर नभ अट्टहास से।
थर्रा गये, तब त्रयलोक त्रास से।।

तू हस्त में, रुधिर कपाल राखती।
आह्लादिका,असुर-लहू चाखती।।
माते कृपा, कर अवरुद्ध है गिरा 
पापों भरे, जगत-समुद्र से तिरा।।

हो सिंह पे, अब असवार अम्बिका।
संसार का, सब हर भार चण्डिका।।
मातेश्वरी, वरद कृपा अपार दे।
निस्तारिणी, जगजननी तु तार दे।।
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रुचि छंद विधान -

"ताभासजा, व ग" यति चार और नौ।
ओजस्विनी, यह 'रुचि' छंद राच लौ।।

"ताभासजा, व ग" = तगण भगण सगण जगण गुरु
(221  211  112   121   2)
13 वर्ण, 4 चरण, (यति 4-9)
[दो-दो चरण समतुकांत]
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

वर्ष छंद (बाल कविता)

बिल्ली रानी आवत जान।
चूहा भागा ले कर प्रान।।
आगे पाया साँप विशाल।
चूहे का जो काल कराल।।

नन्हा चूहा हिम्मत राख।
जल्दी कूदा ऊपर शाख।।
बेचारे का दारुण भाग।
शाखा पे बैठा इक काग।।

पत्तों का डाली पर झुण्ड।
जा बैठा ले भीतर मुण्ड।।
कौव्वा बोले काँव कठोर।
चूँ चूँ से दे उत्तर जोर।।

ये है गाथा केवल एक।
देती शिक्षा पावन नेक।।
बच्चों हारो हिम्मत नाय।
लाखों चाहे संकट आय।।
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वर्ष छंद विधान -

"माताजा" नौ वर्ण सजाय।
प्यारी छंदा 'वर्ष' लुभाय।।

"माताजा" = मगण तगण जगण

222  221 121 = 9 वर्ण
चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

शनिवार, 2 जुलाई 2022

चन्द माहिए

 चन्द माहिए 


:1:

ये कैसी माया है !

तन तो है अपना,

मन तुझ में समाया है।


 :2:

इस फ़ानी हस्ती पर

दाँव लगाए ज्यों

कागज़ की कश्ती पर


 :3:

ये कैसा रिश्ता है !

ओझल है फिर भी,

दिल रमता रहता है।


:4:

बेचैन बहुत है दिल,

कब तक मैं तड़पूं?

अब तो बस आकर मिल।


:5:

अन्दर की सब बातें 

लाख छुपाओ तुम

कह देती हैं आँखें


-आनन्द.पाठक-