गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

नए वर्ष पर एक गीत : आशाओं की नई किरण से---

 [ शनै: शनै: हम आ ही गए ,आगत और अनागत के मुख्य द्वार पर,जहाँ जाने वाले वर्ष की

कुछ विस्मरणीय स्मृतियाँ हैं तो आने वाले नववर्ष से कुछ आशाएँ हैं। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है

एक गीत--- 


नए वर्ष पर एक गीत : आशाओं की नई किरण से---


आशाओं की नई किरण से, नए वर्ष का स्वागत -वन्दन ,

नई सुबह का नव अभिनन्दन।


ग्रहण लग गया विगत वर्ष को 

उग्रह अभी नहीं हो पाया  ।

बहुतों ने खोए  हैं परिजन ,

"कोविड’ की थी काली छाया ।


इस विपदा से कब छूटेंगे, खड़ी राह में बन कर अड़चन ।

नई सुबह का नव अभिनन्दन।


देश देश आपस में उलझे

बम्ब,मिसाइल लिए खड़े हैं ।

बैठे हैं शतरंज बिछाए ,

मन में झूठे दम्भ भरे हैं ।


ऐसा कुछ संकल्प करें हम, कट जाए सब भय का बन्धन ।

नई सुबह का नव अभिनन्दन।


धुंध धुआँ सा छाया जग पर

साफ़ नहीं कुछ दिखता आगे ।

छँट जाएँगे काले बादल ,

ज्ञान-ज्योति जब दिल में जागे ।


हम सब को ही एक साथ मिल ,करना होगा युग-परिवर्तन ।

नई सुबह का नव अभिनन्दन।


मानव-पीढ़ी रहेगी ज़िन्दा ,

जब तक ज़िन्दा हैं मानवता ।

सत्य, अहिंसा ,प्रेम, दया का

जब तक दीप रहेगा जलता ।


महकेगा यह विश्व हमारा ,जैसे महके चन्दन का वन ।

नई सुबह का नव अभिनन्दन।


-आनन्द.पाठक--


शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

एक ग़ज़ल : क्या कहूँ मैने किस पे----

 एक ग़ज़ल :


क्या कहूँ मैने किस पे कही  है ग़ज़ल।

सोच जिसकी थी जैसी, सुनी है ग़ज़ल ।


दौर-ए-हाज़िर की हो रोशनी या धुँआ,

सामने आइना  रख गई है  ग़ज़ल   ।


लोग ख़ामोश हैं खिड़कियाँ बन्द कर,

राह-ए-हक़ मे खड़ी थी ,खड़ी है ग़ज़ल


वो तक़ारीर नफ़रत पे करते रहे,

प्यार की लौ जगाती रही है ग़ज़ल।


मीर-ओ-ग़ालिब से चल कर है पहुँची यहाँ,

कब रुकी या  झुकी कब थकी है  ग़ज़ल ।


लौट आओगे तुम भी इसी राह पर,

मेरी तहज़ीब-ए-उलफ़त बनी है ग़ज़ल।


आज ’आनन’ तुम्हारा ये तर्ज़-ए-बयां,

बेज़ुबाँ की ज़ुबाँ बन गई है ग़ज़ल।


-आनन्द.पाठक-


बुधवार, 16 दिसंबर 2020

चन्द् माहिए ---

 चन्द माहिए --


:1:

जब तुम ने नहीं माना,

टूटे रिश्तों को

फिर क्या ढोते जाना!


 :2:

इस दिल ने पुकारा है,

ख़ामोशी तेरी

मुझ को न गवारा है।


 :3:

तुम तोड़ गए सपने,

ऐसा भी होगा

सोचा ही नहीं हमने!


  :4:

जब तुम को छकाना था,

आँख मिचौली में

तुम से छुप जाना था।


5

हर रंग जो सच्चा है,

प्रीत मिला दें तो

सब रंग से अच्छा है।


-आनन्द.पाठक--

सोमवार, 14 दिसंबर 2020

स्रग्धरा छंद "शिव स्तुति"

शम्भो कैलाशवासी, सकल दुखित की, पूर्ण आशा करें वे।
भूतों के नाथ न्यारे, भव-भय-दुख को, शीघ्र सारा हरें वे।।
बाघों की चर्म धारें, कर महँ डमरू, कंठ में नाग साजें।
शाक्षात् हैं रुद्र रूपी, मदन-मद मथे, ध्यान में वे बिराजें।।

गौरा वामे बिठाये, वृषभ चढ़ चलें, आप ऐसे दुलारे।
माथे पे चंद्र सोहे, रजत किरण से, जो धरा को सँवारे।।
भोले के भाल साजे, शुचि सुर-सरिता, पाप की सर्व हारी।
ऐसे न्यारे त्रिनेत्री, विकल हृदय की, पीड़ हारें हमारी।।

काशी के आप वासी, शुभ यह नगरी, मोक्ष की है प्रदायी।
दैत्यों के नाशकारी, त्रिपुर वध किये, घोर जो आततायी।।
देवों की पीड़ हारी, भयद गरल को, कंठ में आप धारे।
देवों के देव हो के, परम पद गहा, सृष्टि में नाथ न्यारे।।

भक्तों के प्राण प्यारे, घट घट बसते, दिव्य आशीष देते।
भोलेबाबा हमारे, सब अनुचर की, क्षेम की नाव खेते।।
कापाली शूलपाणी, असुर लख डरें, भक्त का भीत टारे।
हे शम्भो 'बासु' माथे, वरद कर धरें, आप ही हो सहारे।।

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स्त्रग्धरा छंद (लक्षण)

"माराभाना ययाया", त्रय-सत यति दें, वर्ण इक्कीस या में।
बैठा ये सूत्र न्यारा, मधुर रसवती, 'स्त्रग्धरा' छंद राचें।।

"माराभाना ययाया"= मगण, रगण, भगण, नगण, तथा लगातार तीन यगण। (कुल 21 अक्षरी)
222  212  2,11  111  12,2  122  122
त्रय-सत यति दें= सात सात वर्ण पर यति।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

सार छंद "भारत गौरव"

जय भारत जय पावनि गंगे, जय गिरिराज हिमालय;
सकल विश्व के नभ में गूँजे, तेरी पावन जय जय।
तूने अपनी ज्ञान रश्मि से, जग का तिमिर हटाया;
अपनी धर्म भेरी के स्वर से, जन मानस गूँजाया।।

उत्तर में नगराज हिमालय, तेरा मुकुट सजाए;
दक्षिण में पावन रत्नाकर , तेरे चरण धुलाए।
खेतों की हरियाली तुझको, हरित वस्त्र पहनाए;
तेरे उपवन बागों की छवि, जन जन को हर्षाए।।

गंगा यमुना कावेरी की, शोभा बड़ी निराली;
अपनी जलधारा से डाले, खेतों में हरियाली।
तेरी प्यारी दिव्य भूमि है, अनुपम वैभवशाली;
कहीं महीधर कहीं नदी है, कहीं रेत सोनाली।।

महापुरुष अगणित जन्मे थे, इस पावन वसुधा पर;
धीर वीर शरणागतवत्सल, सब थे पर दुख कातर।
दानशीलता न्यायकुशलता, उन सब की थी थाती;
उनकी कृतियों की गुण गाथा, थकै न ये भू गाती।।

तेरी पुण्य धरा पर जन्मे, राम कृष्ण अवतारी;
पा कर के उन रत्नों को थी, धन्य हुई भू सारी।।
आतताइयों का वध करके, मुक्त मही की जिनने;
ऋषि मुनियों के सब कष्टों को, दूर किया था उनने।।

तेरे ऋषि मुनियों ने जग को, अनुपम योग दिया था;
सतत साधना से उन सब ने, जग-कल्याण किया था।
बुद्ध अशोक समान धर्मपति, जन्म लिये इस भू पर;
धर्म-ध्वजा के थे वे वाहक, मानवता के सहचर।।

वीर शिवा राणा प्रताप से, तलवारों के चालक;
मिटे जन्म भू पर हँस कर वे, मातृ धरा के पालक।
भगत सिंह गांधी सुभाष सम, स्वतन्त्रता के रक्षक;
देश स्वतंत्र किये बन कर वे, अंग्रेजों के भक्षक।।

सदियों का संघर्ष फलित जो, इसे सँभालें मिल हम;
ऊँच-नीच के जात-पाँत के, दूर करें सारे तम।
तेरे यश की गाथा गाए, गंगा से कावेरी;
बारंबार नमन हे जगगुरु, पुण्य धरा को तेरी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

गीतिका (अभी तो सूरज उगा है)

प्रधान मंत्री मोदी जी की कविता की पंक्ति से प्रेरणा पा लिखी गीतिका।

(मापनी:- 12222  122)


अभी तो सूरज उगा है,

सवेरा यह कुछ नया है।


प्रखरतर यह भानु होता ,

गगन में बढ़ अब चला है।


अभी तक जो नींद में थे,

जगा उन सब को दिया है।


सभी का विश्वास ले के,

प्रगति पथ पर चल पड़ा है।


तमस की रजनी गयी छँट,

उजाला अब छा गया है।


उड़ानें यह देश लेगा,

सभी दिग में नभ खुला है।


भवन उन्नति-नींव पर अब,

शुरू द्रुत गति से हुआ है।


गया बढ़ उत्साह सब का,

कलेजा रिपु का हिला है।


'नमन' भारत का भरोसा,

सभी क्षेत्रों में बढ़ा है।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

रविवार, 13 दिसंबर 2020

मैं कोरोना... कुछ कहूं .. सुनो ना

 मैं कोरोनो 

कुछ कहूं...

 सुनो ना !!


ठुमक ठुमक 

और लचक मटक 

मैं आऊं !!

छींक खांस कर 

सांस सांस भर 

थूक पीक से 

इधर उधर 

लहराऊं!


दो गज दूरी 

अगर रहे न 

जो तुम सब  में  तो ...

तुम्हारी ओर खिंची

चली  मैं आऊं !!

तुम सब के 

हर अंग अंग  में 

रोम रोम में 

रच बस  जाऊं !

 

तुम बड़े सयाने 

पर  बात न माने 

और फिर 

मास्क न पहनो !

हाथ न धोना  जानो

सैनिटाइजर को  

धता बताओ !!

फिर मैं कहूं - अरे!!

 रुको रुको... मैं आऊं !!


और 

मैं कोरोनो 

एक रोग सलोना

तुम्हारी रग रग में 

समाऊं !!

स्वस्थ जीवन से  

अस्पताल की राह 

की राह तुम्हे मैं 

दिखलाऊं ...


सुध बुध सब 

जीवन की बिसरे ..

साथी परिजन 

सब कौउ छूटे 

इस जीवन से 

तुम्हरा रिश्ता नाता टूटे ...

न्योता दे दो 

कुछ ही दिनों में 

परम ब्रह्म से  तुम्हे 

 मैं ही मिलवाऊं ... 

इस लोक से 

उस लोक की 

सैर  जल्द करवाऊं ...


सुनो ... रुको ...

खैर जो चाहो 

इस जीवन की ...

दो गज दूरी 

हमेशा ही बनाओ

और तुम चेहरे पे अपने 

 सदा मास्क लगाओ 

 और रहो सदा तुम

स्वस्थ सुखी 

ऐसी मैं आस

लगाऊं !!







शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

एक व्यंग्य : मुजरिम हाज़िर हो

  एक व्यंग्य : मुज़रिम हाज़िर हो....


’आनन्द.पाठक पुत्र [स्व0] श्री रमेश चन्द्र पाठक साकिन अमुक परगना अलाना जिला फ़लाना वर्तमान निवासी गुड़गाँव.....हाज़िर हो"- अर्दली ने अदालत के बाहर जोर से आवाज़ लगाई ।
-’अबे ! शार्ट में नहीं बोल सकता  क्या..? पूरे खानदान को लपेटना ज़रूरी था ?-मैने विरोध जताया
’-आप ने 10-रुपया दिया था क्या ? भला मनाइए कि मैने 4-पुरखों तक नहीं लपेटा-
मैने 10-का एक नोट थमाया और बोला-" बेटा आगे से ध्यान रखना’
’ठीक है स्साब ! ’सलाम स्साब !

और मैं अदालत कक्ष में बने कठघरे में जा कर खड़ा हो गया
-आप का कोई वकील ?--जज ने पूछा
-नहीं, मैं ही काफी हूँ। सच को झूठ की क्या ज़रूरत, जज साहब!?
’ठीक है।ठीक है। सरकारी वकील ज़िरह शुरु कर सकते है ।
सरकारी वकील -’हाँ ! तो आप का नाम ?
-आनन्द पाठक-
-पिता का नाम?
-उस अर्दली से पूछ लो जो अभी अभी आवाज़ लगा रहा था’
मै निश्चिन्त था। मेरा 10-रुपए का नोट अर्दली का मुँह नहीं खुलने देगा।
 सरकारी वकील ने कहा-’मैं आप से पूछ रहा हूँ । यह आप की कोई साहित्यिक मंच मंडली नहीं है कि जो चाहे बोल दें। अल्लम गल्लम लिख दे.और सब वाह वाह कर दें ।.यह अदालत है अदालत ।यहाँ कुछ भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं ।
- आप का पेशा ?
-व्यंग्य लिखना-
-मैं आप का पेशा पूछ रहा हूं रोग नहीं’- सरकारी वकील ने कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा
-तो आप डाक्टर हैं क्या ?-
-अच्छा ! तो आप व्यंग्य लिखते हैं?- तो आप व्यंग्य क्यों लिखते है ?
-कि समाज को आईना दिखाना है ।
- समाज को आईना क्यों दिखाना है?समाज से बिना पूछे “आईना दिखाना”- अनधिकॄति ’ट्रेसपासिंग’ अतिक्रमण का केस बनता है। जज साहब नोट किया जाए ।
- इसलिए दिखाता हूँ कि उसको अपना चेहरा नज़र आए-
-तुम्हें मालूम है? समाज अपना विभत्स और कुरूप चेहरा देख कर डर भी सकता है,?.अत: तुम समाज में डर फैला रहे हो ? -इस प्रकार अनावश्यक आतंक फैलाने से तुम्हारे ऊपर ’आतंक’ फ़ैलाने का भी केस बन सकता है-जज साहब नोट किया जाए ।
-नहीं । समाज डरता नहीं है, हँसता है।वो समझता है कि इस आईने में उसका चेहरा नही ,किसी और का चेहरा देख रहा है।
-अच्छा , इस तरह आईना चमकाने से कुछ लोगों की आँखे चौधियाँ भी सकती है । लोग अन्धे भी हो सकते है । .जमीर धुँधला भी सकता है ।जब जमीर अंधा हो जाएगा तब उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देगा,।,न भ्रष्टाचार..न बेईमानी..न भाई ,,न भतीजावाद, न सदाचार,न कदाचार ,न ’सदाचार की तावीज” ’,न अपना कुरूप चेहरा...इस तरह से तुम समाज को नुकसान पहुँचा रहे हो? अन्धों को भी आईना दिखाते हो क्या ?? --सरकारी वकील ने अपना जिरह जारी रखते हुए पूछा ।
-नहीं । अन्धी क़ौम को आईना दिखाने का कोई लाभ नहीं ।
-तो इस का मतलब, तुम ’हानि-लाभ’ देख कर लिखने का व्यापार करते हो ?-जज साहब नोट किया जाए ।यह आदमी  बिना ’लाईसेन्स’ का व्यापार करता है -इस पर "अवैध व्यापार’ का केस बनता है।
-नहीं मैं लिखता हूं~

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना  मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
न हो तो , दुष्यन्त कुमार जी से पूछ लीजिए।
-इस हंगामा फ़ित्ना से सूरत बदली क्या ? -वकील साहब ने पूछा --तुम्हारे लेखन से समाज का भला हुआ क्या ? .लोग पढ़ते है और कहते हैं ’मज़ा आ गया ’....क्या बखिया उधेड़ी है....क्या जम कर धुलाई की है...क्या ’लतियाया है ? पानी पिला दिया .मज़ा आ गया .. बस यही न ? तुम्हारे लिखने से समाज से  भ्रष्टाचार मिट गया क्या...?? समाज सुधर गया.क्या .?? नहीं न ,तो फिर क्यों लिखते हो....?.
मैने कहा -वकील साहब !

दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर
हर हथेली खून से तर और ज़्यादा  बेक़रार

वकील साहब ने लगभग चीखते हुए कहा -’ जज साहब ! यह आदमी ’खून-ख़राबे’ की बात कर रहा है ।नोट किया जाय।
हाँ तो -और कौन कौन से लोग हैं तुम्हारे ’गिरोह’ में जिस से तुम्हें इस प्रकार के ’आतंकी ’कामों में मदद मिलती है ?
-गिरोह नहीं है ,’वर्ग’ कहिए वकील साहब ’वर्ग’। ..प्रेरणा  मिलती है। ,. बहुतेरे हैं । हम अकेले नहीं है ---हरिशंकर परसाई जी है...शरद जोशी जी है ..गोपाल चतुर्वेदी ..लतीफ़ घोंघी.. ...ज्ञान  चतुर्वेदी ...... शौक़त थानवी-- कृशन चन्दर.. फ़्रिंक तौंसवी --किन किन का नाम गिनाउँ..कहाँ तक गिनाऊँ ?...और गिनाऊँ क्या....
-अरे भूतिए ! इन विभूतियों के नाम अपने नाम के साथ क्यों घसीट रहा है ? ये महान विभूतियां है ..सम्मानित विभूतियाँ है ...पुरस्कॄति विभूतियां है ..ये समाज सुधारते है ..ये तुम्हारी जैसी गंदगी नहीं फैलाते.।
-तो क्या हुआ ? दर्द तो एक जैसा है ....प्यास तो एक जैसी है...
- हा हा हा ! ’ प्यास’ एक जैसी है ? अच्छा तो पैसे के मामले में तुम्हारी ’प्यास’ और अदानी -अंबानी माल्या...बियानी की ’ प्यास’ एक जैसी है क्या ???
--आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया ।आप सिर्फ़ काम की ही बातें पूछें । फ़ालतू बातों से अदालत का वक़्त ज़ाया न करे॥--जज साहब ने हिदायत की ।
-अरे वकील स्साब ! यह मुजरिम टटपूंजिया ही सही ।पर है व्यंग्य लेखक वकील स्साब ...व्यंग्य लेखक। -आप बहस में इस से नहीं जीत पायेंगे"--- वादी पक्ष के लोगो ने अलग से नसीहत की ।
आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा फिर ठक ठकाया --जज साहब ने कहा -हो गया ,हो गया । बहस पूरी हो गई।
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जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाया-- ’तमाम गवाहों के बयानात को मद्दे नज़र रखते हुए और मुज़रिम के बयानात को दरकिनार करते हुए अदालत इस नतीज़े पर पहुँची है कि मुज़रिम अपने लेखन से समाज में चेतना फैलाने की कोशिश कर रहा है। इस चेतना से जनता में क्रान्ति के बीज पड़ सकते है ।..जनता आन्दोलन कर सकती है। ,,बगावत कर सकती है अत: ऐसे लेखकों का ’बाहर ’रहना या ’रखना ’ जनहित में उचित नहीं है।समाज के लिए ठीक नहीं है । साथ ही यह अदालत इस लेखक के व्यंग्य लेखन की ’नौसिखुआपन्ती’ और ’ कच्चापना’  के देखते हुए  और सहानुभूतिपूर्वक  विचार करते हुए ताज़िरात-ए-हिन्द की दफ़ा  अलाना..फलाना...चिलाना--ढिकाना और .धारा अमुक अमुक अमुक ......में इसे ’अन्दर’ करती है और 3-महीने की क़ैद-ए-बा मशक्कत  की सज़ा देती है ।
-तुम्हें इस सज़ा के बारे में कुछ कहना है ?- जज साहब ने पूछा ।
"हुज़ूर ..जेल में मुझे कुछ सादे पन्ने मुहैय्या कराने की इज़ाजत दी जाये-मैने  गुज़ारिश की
-मंज़ूर है
-और एक अदद ’कलम’ भी
-नहींईईईईईई........ जज साहब की अचानक चीख निकल गई ...."नहीं ,’कलम’ की इज़ाजत नहीं दी जा सकती ...’कलम’ लेखक का घातक हथियार होता है और जेल में ’घातक हथियार’ रखने की इज़ाजत नही है।
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वादी पक्ष ने तालियाँ बजाई ।.जज साहब की जय हो. ।.एक और आईनादार ’अन्दर ’ गया ।.साहब ने सज़ा नहीं , सज़ा-ए-मौत सुनाई है ।---अगर सच्चा लेखक होगा तो 3-महीने में बिना "क़लम’ के  यूँ ही मर जायेगा वरना तो ये भी कोई ’टाइम-पासू"-लेखक होगा ।
अस्तु

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

एक ग़ज़ल : तुम्हारे हुस्न से --

 एक ग़ज़ल : तुम्हारे हुस्न से ---



तुम्हारे हुस्न से जलतीं हैं ,कुछ हूरें  भी जन्नत  में ,

ये रश्क़-ए-माह-ए-कामिल है,फ़लक जलता अदावत में ।


तेरी उल्फ़त ज़ियादा तो मेरी उलफ़त है क्या कमतर ?

ज़ियादा कम का मसला तो नहीं होता है उल्फ़त में ।


पहाडों से चली नदियाँ बना कर रास्ता अपना ,

तो डरना क्या  ,फ़ना होना है जब राह-ए-मुहब्बत में ।


वही आदत पुरानी है तुम्हारी आज तक ,जानम !

गँवाया वक़्त मिलने का ,गिला शिकवा शिकायत में ।


चिराग़ों को मिला करती हवाओं से सदा धमकी ,

नहीं डरते, नहीं बुझते, ये शामिल उनकी आदत में ।


उन्हें भी रोशनी देगी जो थक कर हार कर बैठे ,

मेरा जब ज़िक्र आयेगा ज़माने की हिकायत में ।


जहाँ सर झुक गया ’आनन’ वहीं काबा,वहीं काशी ,

वो खुद ही आएँगे चलकर बड़ी ताक़त मुहब्बत में ।


-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 28 नवंबर 2020

एक गीत : मेरी देहरी को ठुकरा कर जब---

 [डायरी के पन्नों से----]


एक गीत : मेरी देहरी को ....

मेरी देहरी को ठुकरा कर जब जाना है
फिर बोलो वन्दनवार सजा कर क्या होगा ?

आँखों के नेह निमन्त्रण की प्रत्याशा में
आँचल के शीतल छाँवों की अभिलाषा में
हर बार गईं ठुकराई मेरी मनुहारें-
हर बार ज़िन्दगी कटी शर्त की भाषा में

जब अँधियारों की ही केवल सुनवाई हो
फिर ज्योति-पुंज की बात चला कर क्या होगा ?

तुम निष्ठुर हो ,तुम प्रणय समर्पण क्या जानो !
दो अधरों की चिर-प्यास भला तुम क्या जानो !
क्यों लगता मेरा पूजन तुमको आडम्बर ?
हर पत्थर में देवत्व छुपा तुम क्या जानो !

जब पूजा के थाल छोड़ उठ जाना ,प्रियतम !
फिर अक्षत-चन्दन ,दीप जला कर क्या होगा ?

मेरी गीता के श्लोक तुम्हें क्यों व्यर्थ लगे ?
मेरे गीतों के दर्द तुम्हें असमर्थ लगे
जीवन-वेदी माटी की है पत्थर की नहीं
क्यों तुमको ठोकर लगे ,तुम्हें अभिशप्त लगे?

जब हवन-कुण्ड की ज्योति जली बुझ जानी है
फिर ऋचा मन्त्र का पाठ सुना कर क्या होगा !

मेरी देहरी को ठुकरा कर .............

-आनन्द पाठक-

बुधवार, 25 नवंबर 2020

एक व्यंग्य- साहित्यिक खोमचा

 एक व्यंग्य :साहित्यिक खोमचा

"यार मिश्रा ! सोच रहा हूँ ,एक खोमचा मैं भी लगा लूँ ’।
’खोsssमचा ?? क्या ?क्या ? क्यों?’-अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी ? -मिश्रा जी अचानक मेरे इस अप्रत्याशित प्रस्ताव से चौंक गए -"पेन्शन बन्द हो गई क्या?’ खोमचा किसका ? दही-भल्ले का?, ’चनाजोर गरम का"?
साहित्य का ,’साहित्यिक खोमचा ’- ।मैने समझाया-"रिटायर होने के बाद खाली बैठा था सोचा टाइम पास हो जायेगा और हिन्दी की कुछ सेवा भी हो जाएगी ।
आम का आम गुठलियों का दा्म भी हो जायेगा । -
-गुठलियों का दाम ?? अच्छा तो हिन्दी की सेवा में भी ’दाम ’? व्यापार ?-मिश्राजी ने कहा-’ वैसे ही कम लोग हैं क्या हिंदी के सेवा करने को ,जो अब तुम चले हो।
ग्राहक कहाँ मिलेंगे ? पानी-पूरी के ,भेल पूरी के तो शायद मिल भी जाय । साहित्यिक ’खोमचे’ के लिए कहाँ मिलेंगे ?
-मिलेंगे मिश्रा ,,खूब मिलेंगे ! फ़ेसबुक,व्हाटसअप पर हर दिन कोई न कोई मंच ,महफ़िल ,ग्रुप बना रहा है । कभी कविता के नाम पर ,कभी ग़ज़ल के नाम पर ,कभी अदब के नाम पर ,कभी साहित्य के नाम पर ।
मेरे उस्ताद ने कहा था बेटा ! तू जहाँ भी खोमचा लगा देगा ,वहीं 2-4-10 ग्राहक मिल जायेंगे। फ़ेसबुक पर ,ह्वाट्स पर,ट्विटर पर ,ब्लाग पर हर दूसरा आदमी ग़ज़ल कह रहा है , शायरी कर रहा है ,दोहा लिख रहा है ,सबको ’चाट’ की तलब है,छपने की ललक है।लिखने की ठनक है। वाह वाह सुनने की ठसक है। मैं भी फ़ेसबुक पर ,’व्हाट्स ’ पर एक मंच बनाऊँगा ।
-तो उससे क्या होगा ?
हिन्दी की सेवा होगी और क्या ? ग्रुप और मंच बनाने में कौन सा पैसा लगता है । मैं ’ऎडमिन’ बन जाऊँगा बैठे बैठाए ।शान-ओ-शौकत ऊपर से । न हर्रे लगे न फिटकरी, रंग बने चोखा ।
-तो उससे क्या होगा ?
हिन्दी की सेवा होगी और क्या ? जिसको चाहे ग्रुप में जोड़ लो --जिसको चाहे ग्रुप से लतिया दो --आत्मसुख मिलता है । जिसको चाहे सम्मनित कर दो , जिसकी
चाहे टाँग खिंचाई कर लो --
-तो उससे क्या होगा ?
हिंदी की सेवा होगी और क्या । जिसको चाहे उसको ’वरिष्ठ कवि’ कह दो --अज़ीमुश्शान शायर कह दो ।उत्साहवर्धन के नाम पर सबके कलाम को वाह वाह करते रहो । उम्दा कलाम । लाजवाब कविता । यह सब करने का समय न मिले तो एक ही झाड़ू से -सबका कलाम उम्दा’- कर दो जैसे पंडित लोग एक ही मन्त्र से -" सर्व देवेभ्यो नम: स्वाहा - कर देते हैं। अपने सदस्यों का सम्मान करूँगा तो ग्रुप का सम्मान होगा। ग्राहक भागेंगे नहीं । उनकी पुस्तकों का विमोचन करवाएँगे -- सहयोग राशि लेकर साझा-संग्रह प्रकाशित करवाएँगे--सम्मान समारोह करवाएँगे- ग़ज़ल सम्राट की उपाधि देंगे--काव्य चेतना शिरोमणि पुरस्कार देंगे---हिंदी सेवा का प्रमाण-पत्र बेंचेंगे -दो-चार पैसे तो बच ही जाएँगे ।
-अच्छा ! तो आप इसी गुठलियों के दाम की बात कर रहे थे ? तो हिंदी की सेवा ?? ऎसे मंचों पर किसी को भाषा की शुद्धता की चिन्ता नहीं ।,वर्तनी का खयाल नहीं--वाक्य विन्यास पर ध्यान नहीं । जो बोल दिया वही हिंदी, जो लिख दिया वही साहित्य । छपने की प्यास है। सभी जल्दी में है ।-मिश्रा जी ने अपनी व्यथा उड़ेली
भई मिश्रा !पहले दाम फिर काम । हिंदी की सेवा तो भारत सरकार कर रही है न पिछले 65-70 साल से । 14-सितम्बर है न इस काम के लिए।हाथी के पाँव में सबका पाँव।
भई पाठक ! एक सलाह दूँ ? हिंदी पर बड़ी कृपा होगी -मिश्रा जी ने कहा
हाँ हाँ !-मैने चहकते हुए कहा-"कहो मित्रवर !कहो ! नि:संकोच कहो !
-तुम तो बस खोपचे में एक खोमचा लगा ही लो । हिंदी सेवा का नही , ’चनाजोर’ गरम का ।गाते हुए बेचोगे तो ज़्यादा बिक्री होगी ज़्यादा फ़ायदा होगा।
चनाजोर गरम बाबू मैं
लाया मजेदार -चना जोर गरम
मेरा चना बना है आला
मैने डाला गरम मसाला
मेरा चना बना चुटकुल्ला
जिसको खाए हाजी मुल्ला--चना जोर गरम ।
इससे पहले कि मैं अपनी "चरण-पादुका " ढूँढता , उससे पहले ही मिश्रा जी नौ दो ग्यारह हो गए ।
-अस्तु-

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

चन्द माहिए

 चन्द माहिए --

:1:
तुम से गर जुड़ना है
मतलब है इस का
बस ख़ुद से बिछुड़ना है
:2:
आने को आ जाऊँ
रोक रहा कोई
कैसे मैं ठुकराऊँ ?
:3:
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत है
जिस के लिए मेरी
दुनिया से अदावत है
:4;
दीदार हुआ जब से
जो भी रहा बाक़ी
ईमान गया तब से
5
जब तू ही मेरे दिल में
ढूँढ रहा हूँ मैं
फिर किस को महफ़िल में ?

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

एक गीत : दीपावली पर

 एक गीत : दीपावली पर-2020


आज दीपावली की है पावन घड़ी

प्रेम का दीप जलता  रहे उम्र भर


दिल में खुशियाँ हैं,उल्लास है,प्यार है

रात भी रोशनी  से नहाई  हुई

और तारे गगन में परेशान हैं

 चाँद -सी कौन है,छत पे आई हुई ?


लौ लगी है तो बुझने न पाए कभी

मैं भी  रख्खूँ नज़र,तुम भी रखना नज़र


दीप महलों में या झोपड़ी में जले

एक सी रोशनी सबको मिलती सदा

एक दीपक जला कर रखो राह में

सब को मिलता रहे रोशनी का पता


हो अँधेरा जहाँ ,दीप रखना वहीं

हर गली मोड़ पर हर नगर हर डगर


द्वेष ,नफ़रत की दिल में लगी आग हो

तो जलाती रहेगी तुम्हे उम्र भर 

यह अँधेरा मिटेगा क्षमा प्यार से -

प्रीति की ज्योति दिल में जला लो अगर


प्रेम,करुणा, दया दिल में ज़िन्दा रहे

और चलता रहे रोशनी का सफ़र


 आज दीपावली की है पावन घड़ी, प्रेम का दीप जलता  रहे उम्र भर


-आनन्द.पाठक-




रविवार, 25 अक्टूबर 2020

एक व्यंग्य व्यथा : रावण का पुतला

 सभी सुधी पाठकों को,मित्रों को ’विजय दशमी" पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ--।

विजय --’असत्य’ पर ’सत्य ’ की--”पाप’ पर ’पुण्य’ की --’अधर्म ’ पर ’धर्म ’ की "रावणत्व" पर "रामत्व की । परन्तु आज ---?
[ डायरी के पन्नों से---]
एक व्यंग्य व्यथा : ----रावण का पुतला
---- आज रावण-वध है ।
आज 40 फुट का पुतला जलाया जायेगा । विगत वर्ष 30 फुट का जलाया गया था। इस साल रावण का कद बढ़ गया है । पिछ्ले साल से इस साल बलात्कार अत्याचार ,अपहरण ,हत्या की घटनायें बढ़ गई तो ’रावण’ का कद भी बढ गया।रामलीला की तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। मैदान में भीड़ इकठ्ठी हो रही है । बाल बच्चे, महिलायें , वॄद्ध, नौजवान धीरे धीरे आ रहे हैं ।आज रावण वध देखना है । मंच सजाया रहा है । इस साल मंच भी कुछ बड़ा बनाया जा रहा है । इस साल वी0आई0पी0 -लोग ज़्यादा आयेंगे। सरकार में कई पार्टियों का योगदान है अभी - सभी पार्टियों के नेताओं को जगह देना है मंच पर । पिछली साल ’अमुक’ पार्टी के नेता जी बिफ़र गये थे मंच पर ही -धमकी देकर गए थे---’हिन्दुत्व ’ पर ,आप का ही खाली ’कापी -राइट’ नही है है ? --हमारा भी है। इसी लिए तो ’काँग्रेस’ छोड़ कर इधर आये वरना हम उधर क्या बुरे थे? इस बार कोई दूसरा नेता न बिदक जाये -इस लिए मंच को बड़ा रखना ज़रूरी है ।सबको जगह देना है॥सबका साथ -सबका विकास। ’राम-सीता-लक्षमण-हनुमान जी ’ के लिए मंच पर जगह कम पड़ गई -तो क्या हुआ ?-} उन्हें जगह की क्या ज़रूरत ।वो तो सबके दिल में है, परन्तु वी0आई0पी0 लोगो को मंच पर जगह कम न पड़ जाये-सब कई दल के हैं ।
रावण वध देखने नेता आयेंगे,अधिकारी गण आयेंगे। । मंच पर वो भी आयेंगे जिन पर ’बलात्कार’ का आरोप है ।वो भी आयेंगे जिनपर ’घोटाला’ का आरोप है।वो भी आयेंगे जो ’बाहुबली’ है जिन्होने आम जनता के ’ खून’ का बूँद बूँद इकट्ठा कर अपना अपना ’घट’ भरा है । रावण ने भी भरा था। वो भी आयेंगे जो कई ’लड़कियों’ का अपहरण कर चुके है -वो भी आयेंगे जिन पर ’रिश्वत’ का आरोप है ।’भारत तेरे टुकड़े होंगे’’ टुकड़े होंगे’- वाले भी आयेंगे ।कहते है_ आरोप से क्या होता है ? सिद्ध भी तो होना चाहिये। सब भगवान को माला पहनायेंगे। मंच के कोने में सिमटे ’भगवान’ जी सब सुन रहे हैं। उन्हे ’रावण वध’ करना है --इधर वाले का नहीं --सामनेवाले का --पुतले का।
उधर रावण का पुतला खड़ा किया जा रहा है -भारी है । अपने पापों से भारी हो गया है ।सेठ जी बड़ा चन्दा दे कर खड़ा करवा रहे है। कमेटी वालों ने येन केन प्रकारेण ’पुतला’ खड़ा कर के सीना चौड़ा किया और चैन की साँस ली । पुतला खड़ा हो गया मैदान में उपस्थित सभी लोगों ने तालियाँ बजाई । सब की नज़र में आ गया रावण का पुतला --उसका पाप --उसका ’अहंकार’ --उसका ’लोभ--उसका रूप ’ । यही तो देखने आए हैं इस मेला में। ऐसे पापियों का नाश अवश्य होना चाहिए। वध में अभी विलम्ब है। राम- लक्ष्मण जी अपना तीर धनुष लेकर पहुँच चुके हैं मगर रावण को अभी नहीं मार सकते ।भगवान को इन्तज़ार करना पड़ेगा। मुख्य अतिथि महोदय अभी नहीं पहुँचे हैं।
क्या करें तब तक। मैदान में लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं --समय काटना है।
कान्वेन्ट के एक बच्चे ने रावण के पुतले को देख कर अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर किया-"मम्मा हू इस दैट अंकल"?
"बेटा ! ही इस ’रावना’ --लाइक योर डैडू । रामा विल किल ’रावना’-थोड़ी देर में
बच्चे को -’डैडू’ वाली बात तो समझ में नहीं आई ,पर ’रामा’ किल ’रावना’ वाली समझ में आ गई
उधर "हरहुआ’ अपने काका को बता रहा था --’काका ! ई अब की बार का पुतला न बड़ा जानदार बनाया है। महँगा होगा?
काका ने अपने अर्थ शास्त्र का ज्ञान बताया--- हाँ ! रे ! बड़े आदमी का पुतला भी मँहगा होता है । हम गरीबन का थोड़े ही है कि एक मुठ्टी घास लिया और फूंक दिया ---
रमनथवा की बीबी अपने मरद ने कान में कुछ कहती है -"सुनते हो जी ! हमें तो आजकल महेन्दरा की नीयत ठीक नहीं लगती---बोली-ठोली करता रहता है ।--हमें तो उसकी नज़र में खोट नज़र आ रहा है-।--"
’अच्छा ! स्साले को ठीक करना पड़ेगा"-रामनाथ ने बोला--"बहुत चर्बी चढ़ गई है ।उसे छोड़ , तू इधर का रावण देख---"
उधर शर्मा जी ने माथुर साहब से कहा -" या पुतला इस वेरी नाइस ! --बट इट लैक्स ए ’टाई’
माथुर साहब ने हामी भरी ---यस सर ! हम लोग ’टाई ’ में कितना ’नाइस" लगता है न--बेटर दैन ’रावना’
भीड़ बेचैन हो रही थी । मुख्य अतिथि महोदय अभी तक पहुँचे नही ।मोबाईल से खबर ले रहे हैं --अरे कितनी भीड़ पहुँची है मैदान में अभी ?---नेता जी के चेला-चापड़ खबर दे रहे हैं कि बस सर आधा घंटा और ।पहुँचिए रहें हैं लोग । नेता जी तो भीड़ से ही जीते हैं ---रावण को क्या मारना ...?जल्दी क्या है ?---रावण तो हर साल मरता है । चुनाव तो इस साल है। राम जी उधर अपना डायलाग’ याद कर रहे हैं।
--अब रावण भी बेचैन होने लगा। एक तो मरना और उस पर खड़ा होने की सज़ा ।पता नहीं ये मुख्य अतिथि का बच्चा कब आयेगा उसका धैर्य अब जवाब देने लगा ।
अन्त में बोल उठा---"हा ! हा ! हा! हा! मैं ’रावण’ हूं
भीड़ उस की तरफ़ मुड़ गई । ये कौन बोला ?--रावण कहां है ?--ये तो पुतला है । सभी एक दूसरे को आश्चर्य भरी दॄष्टि से देखने लगे- ये पुतला कहाँ से बोल रहा है?
"हा ! हा! हा! हा!’ -पुतले से पुन: आवाज़ आई-- मैं पुतला नहीं ,रावण बोल रहा हूँ ,! अरे भीड़ के हिस्सों ! मूढ़ों ! तुम लोग क्या समझते हो कि तुम लोग मुझे मार दोगे? वाल्मीकि से लेकर तुलसी तक सभी ने मुझे मारा । क्या मैं मरा? हर साल तुम ने मुझे मारा । क्या मैं मरा? तुम कहते हो कि मैने ’सीता का अपहरण किया ? क्या मेरे मरने के बाद सीता का अपहरण बन्द हो गया । क्या तुम्हारे ’बाहुबली’ लोग अब सीता का ’अपहरण’ नही करते?--उन्हें ’फ़ाइव स्टार’ होटेल में क़ैद कर नहीं रखते? मैने छल किया --क्या तुम लोग छल नहीं करते ?
हा हा ! हा! हा! ------मैं मरता नही अपितु ज़िन्दा हो जाता हूँ हर साल -----तुम्हारे अन्दर --- लोभ बन कर ,,,,हवस बन कर,,,, , छल बन कर ...अहंकार बन कर ---ईर्ष्या बन कर--परमाणु बम्ब बन कर --हाईड्रोजन बम्ब बन कर ।हर देश में ..हर काल में मैं ज़िन्दा रहा हूँ मैं । कभी---- हर युद्ध में -- हर मार काट में --कभी सीरिया में ----कभी लेबनान मे--- । तुम विभीषण’ को पालते हो क्यों कि वह तुम्हे ’सूट’ करता है ----तुमने कभी अपने अन्दर झांक कर नही देखा ---तुम झाँक भी नहीं सकते --देख भी नही सकते -तुम देखना चाहते भी नही -तुम्हे मात्र मुझ पर पत्थर फ़ेकना आता है --क्यों कि तुम्हे यह आसान लगता है --तुम अपने आप पर ’पत्थर नहीं फ़ेंक सकते----- - मुझे जलाना तुम्हे आसान लगता है -तुम अपने अन्दर का लोभ नहीं जला सकते -मुझे मारना तुम्हे आसान लगता है ---तुम अपने आप का ’अहंकार नही मार सकते । - मेरा अहंकार स्वरूप दिखता है ---।तुम्हें मेरे नाम से नफ़रत है---कोई अपने बेटे का नाम ’रावण’ नही रखना चाहता ----सब ’राम’ का ही नाम रखना चाहते हैं परन्तु ’राम के नाम की आड़ में क्या खेल नहीं चलता---ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में लोग ’राम’ का नाम भी रखने में 2-बार सोचेंगे । मैने तो राम के नाम का सहारा नहीं लिया -। रावण एक प्रवॄत्ति है--उसे कोई नही मार सकता--अगर कोई मार सकता है बस--तुम्हारे दिल के अन्दर का ’रामत्व’ ही मुझे मार सकता है --और तुम राम नही ----अपने अन्दर ’रामत्व’ जगाऒ ---क्षमा जगाओ----करुणा जगाओ--प्यार जगाओ -- मैं खुद ही मर जाऊँगा----
’या ही इज टाकिंग समथिंग नाइस’-- शर्मा जी ने कहा
माथुर साहब ने हुंकारी भरी--’ जब मौत सामने दिखाई देती है तो ज्ञान निकलता है सर --दैट इज व्हाट एक्ज़ैक्टली ही इज टाकिंग’ सर !
--- माइक से उद्घोषणा हुई --- भाइयो और बहनो ! आप के प्यारे दुलारे चहेते मुख्य अतिथि महोदय अब हमारे बीच पधार चुके है ---जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिए। थोड़ी देर में ’रावण वध’ का आयोजन किया जायेगा
सब ने अपने अपने हाथ में पत्थर उठा लिए।
अस्तु

-आनन्द.पाठक-