बुधवार, 31 मार्च 2021

अनुभूतियाँ 07

 

अनुभूतियाँ :  07

 

1

प्रेम स्नेह जब रिक्त हो गया

प्रणय-दीप यह जलता कब तक?

रात अभी पूरी बाक़ी है

बिन बाती यह चलता कब तक?

 

2

दुष्कर थीं पथरीली राहें-

हठ था कि तुम साथ चलोगी।

कितना तुम को समझाया था,

हर ठोकर पर हाथ मलोगी।

 

3

जीवन पथ का राही हूँ मैं,

एक अकेला कई रूप में ।

आजीवन चलता रहता हूँ,

कभी छांव में ,कभी धूप में।

 

4

बिना बताए चली गई तुम ,

क्या थी ग़लती,सनम हमारी।

इतना तो बतला कर जाती,

कब तक देखूँ राह तुम्हारी ।

 

-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

मैं ज़िंदगी

 मैं 'ज़िंदगी' ...

चलिए .... आज थोड़ी गुफ्तगू करते है .... थोड़ा मुझ से ... थोड़ा सा खुद से .. खुद को रूबरू करते है ... बस आप कहे ... और मैं सुनूं ... चलिए न .. आज.... थोड़ा यूं करते है !! आज कुछ खुद से कुछ ज़िंदगी से ऐसी ही खूबसूरत आरज़ू करते है !!

एक ग़ज़ल होली पर

 


एक ग़ज़ल होली पर

 

 

न उतरे ज़िन्दगी भर जो, लगा दो रंग होली में,

हँसीं दुनिया नज़र आए , पिला दो भंग होली में ।         

 

न उतरी  है न उतरेगी, तुम्हारे प्यार की रंगत,

वही इक रंग सच्चा है, न हो बदरंग  होली में ।--          

 

कहीं ’राधा’ छुपी  फिरती, कहीं हैं गोपियाँ हँसतीं,

चली कान्हा कि जब टोली, करे हुड़दंग होली में ।      

 

’परे हट जा’-कहें राधा-’कन्हैया छोड़ दे रस्ता’

“न कर मुझसे यूँ बरज़ोरी, नहीं कर तंग होली में” ।    

 

गुलालों के उड़ें बादल, जहाँ रंगों की बरसातें,

वहीं अल्हड़ जवानी के फड़कते अंग होली में ।         

 

थिरकती है कहीं गोरी, मचलता है किसी का दिल

बजे डफली मजीरा हैं, बजाते चंग होली में ।             

 

सजा कर अल्पना देखूँ, तुम्हारी राह मैं ’आनन’

चले आओ, मैं नाचूँगी, तुम्हारे संग होली  में ।            

 

-आनन्द,पाठक-

 

रविवार, 21 मार्च 2021

कुछ अनुभूतियाँ ; होली पर

 

[ होली की अग्रिम  शुभकामनाओं के साथ----

 कुछ अनुभूतियाँ   ----[ होली पर ]

 

1

खुशियों के हर रंग भरे हैं,

प्रीत मिला कर रंगोली में,

फ़ागुन आया, सपने आए,

तुम भी आ जाते होली में।

 

2

एक बार में धुल जायेगा,

इन रंगों में क्या रख्खा है,

अगर लगाना है तो लगाना,

प्रीत-प्रेम का रंग सच्चा है।

 

3

राधा करतीं मनुहारें हैं,

देख न कर मुझ से बरजोरी

“छोड़ कलाई मोरी कान्हा ! 

बातों में ना आऊँ तोरी” ।

 

4

होली का मौसम आया है,

फ़गुनह्टा’ आँचल सरकाए।

मादक हुई हवाएँ, प्रियतम !

रह रह कर है मन भटकाए ।

 

5

छोड़ मुझे,जाने दे घर को,

कान्हा ! मार न यूँ पिचकारी।

बड़े जतन से बचा रखी है,

कोरी चुनरिया, कोरी सारी ।

 

-आनन्द.पाठक-

गुरुवार, 18 मार्च 2021

एक गीत ---होली पर

 ---डायरी के पन्नों से-----


"फ़गुनाहट" शुरू हो गई---हवाओं में मादक गन्ध भर गए --डब्बे के रंग होली खेलने के लिए आतुर
हो रहे हैं -- ब्रज में गोप गोपियों की तैयारी -एक दूसरे को रँगने की तैयारी ---
इसी सदर्भ में--------होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ ----

एक गीत : हॊली पर


लगा दो प्रीति का चन्दन प्रिये ! इस बार होली में
महक जाए ये कोरा तन-बदन इस बार होली में

ये बन्धन प्यार का है जो कभी तोड़े से ना टूटे
भले ही प्राण छूटे पर न रंगत प्यार की छूटे
अकेले मन नहीं लगता प्रतीक्षारत खड़ा हूँ मैं
प्रिये ! अब मान भी जाओ हुई मुद्दत तुम्हे रूठे

कि स्वागत में सजा रखे हैं बन्दनवार होली में
जो आ जाओ महक जाए बदन इस बार होली में
सजाई हैं रंगोली इन्द्रधनुषी रंग भर भर कर
मैं सँवरी हूँ तुम्हारी चाहतों को ध्यान में रख कर
कभी ना रंग फ़ीका हो सजी यूँ ही रहूँ हरदम
समय के साथ ना धुल जाए यही लगता हमेशा डर

निवेदन प्रणय का कर लो अगर स्वीकार होली में
महक जाए ये कोरा तन-बदन इस बार होली में

ये फागुन की हवाएं है जो छेड़े प्यार का सरगम
गुलाबी हो गया है मन ,शराबी हो गया मौसम
नशा ऐसा चढ़ा होली का ख़ुद से बेख़बर हूँ मैं
कि अपने रंग में रँग लो मुझे भी ऎ मेरे,हमदम !
मुझे दे दो जो अपने प्यार का उपहार होली में
महक जाए ये कोरा तन-बदन इस बार होली में

-आनन्द,पाठक-

मंगलवार, 16 मार्च 2021

विधाता छंद 'मौक्तिका' (पापा का लाडला)

विधाता छंद
(पदांत 'तुम्हें पापा', समांत 'आऊँगा')

अभी नन्हा खिलौना हूँ , बड़ा प्यारा दुलारा हूँ;
उतारो गोद से ना तुम, मनाऊँगा तुम्हें पापा।।
भरूँ किलकारियाँ प्यारी, करूँ अठखेलियाँ न्यारी;
करूँ कुछ खाश मैं नित ही, रिझाऊँगा तुम्हें पापा।।

इजाजत जो तुम्हारी हो, करूँ मैं पेश शैतानी;
हवा में जोर से उछलूँ, दिखाऊँ एक नादानी।
खुला है आसमाँ फैला, लगाऊँगा छलाँगें मैं;
अभी नटखट बड़ा हूँ मैं, सताऊँगा तुम्हें पापा।।

बलैयाँ खूब मेरी लो, गले से तुम लगा करके;
करूँ शैतानियाँ मोहक, करो तुम प्यार जी भरके।
नहीं कोई खता मेरी, लड़कपन ये सुहाना है;
बड़ा ही हूँ खुरापाती, भिजाऊँगा तुम्हें पापा।।

चलाओ चाल अंगुल से, पढ़ाओ पाठ जीवन का;
बताओ बात मतलब की, सिखाओ मोल यौवन का।
जमाना याद जो रखता, वही शिक्षा मुझे देना;
'नमन' मेरा तुम्हें अर्पण, बढाऊँगा तुम्हें पापा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

सीता छंद 'मौक्तिका' (छाँव)

सीता छंद
(पदांत का लोप, समांत 'अर')

जिंदगी जीने की राहें मुश्किलों से हैं भरी,
चिलचिलाती धूप जैसा जिंदगी का है सफर।।
हैं घने पेड़ों के जैसे इस सफर में रिश्ते सब,
छाँव इनकी जो मिले तो हो सहज जाती डगर।।

पेड़ की छाया में जैसे ठण्ड राही को मिले,
छाँव में रिश्तों के त्यों गम जिंदगी के सब ढ़ले।
कद्र रिश्तों की करें कीमत चुकानी जो पड़े,
कौन रिश्ते की दुआ ही कब दिखा जाए असर।।

भाग्यशाली वे बड़े जिन पर किसी की छाँव है,
मुख में दे कोई निवाला पालने में पाँव है।
पूछिए क्या हाल उनका सर पे जिनके छत नहीं,
मुफलिसी का जिनके ऊपर टूटता हर दिन कहर।।

छाँव देने जो तुम्हें हर रोज झेले धूप को,
खुद तो काले पड़ तुम्हारे पर निखारे रूप को।
उनके उपकारों को जीवन में 'नमन' तुम नित करो,
उनकी खातिर कुछ भी करने की नहीं छोड़ो कसर।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

सोमवार, 15 मार्च 2021

बता तेरी ख्वाहिश का

 


बस खर्च बता तू ख्वाहिश का 

तेरी गुल्लक भी बन जाऊं मैं


सपनों के कारोबारी में 

तेरा नफ़ा ही बन जाऊं  मैं 


तेरे सुख दुख के बहीखाते से

हर  दुख को ही हर जाऊं मैं 


खुशियों के सिक्के चंद बनूं

तुझ पे जी  भर लुट जाऊं मैं  


हर हुक्म की बस तामील करूं 

 जिन्न   जादुई बन जाऊं मैं 


मैं मोह  और मायाजाल मैं ही

तेरा मोक्ष भी बन जाऊं मैं 


तू खर्च बता तेरी ख्वाहिश का

एटीएम भी बन जाऊं मैं ..


रविवार, 14 मार्च 2021

कौन मेरा - मेरा क्या तू लागे

 शब्दों के बदन नहीं होते

और

नही होती रूह मगर ये फिर भी ज़िंदा रहते है हमारे ज़ेहन में....

जैसे ... कुछ हादसे गुज़र जाने पे भी नही गुज़रा करते...
बस वैसे ही मैं भी तुम पे गुज़रा हुआ ऐसा ही एक हादसा हूं...
मैं गुज़र जाऊंगी और
एक दिन
शायद तुम भी...
मगर
मेरे शब्द ... मेरी कविताएं... मेरे गीत... किस्से है तुम्हारे...
वे यहीं रहेंगे -हमेशा
हमेशा के लिए !!!

सोमवार, 8 मार्च 2021

रणचंडी तू बनके दिखा

सम्हल द्रोपदी शस्त्र उठ अब

कोई कृष्ण न आएगा

रणचंडी तू बनकर दिखा अब।

वार न खाली जाएगा।


अबला समझ के तुझको सबने

निशदिन बहुत सताया है।

बेटी के शत्रु बन बैठे सब,

बेटों पे दिल आया है

उठो द्रोपदी शस्त्र....।।


किसका मुंह देखे तू बैठी,

कोई ना अब आएगा।

स्वयं करेगी अपनी रक्षा,

मान तभी बच पाएगा

उठो द्रोपदी शस्त्र...।।


धर्म-नीति की बातें झूठी

लुटता तेरा मान यहाँ

डर-डर कर जीने वालों की

बढ़ती देखी शान कहाँ

उठो द्रोपदी शस्त्र.....।।


अभिलाषा चौहान






शनिवार, 6 मार्च 2021

अनुभूतियाँ 05

 अनुभूतियाँ 05


1

सच ही कहा था तुम ने उस दिन, 

" जा तो रही हूँ  सजल नयन से"

छन्द छन्द में उभरूँगी मैं,  

गीत लिखोगे कभी लगन से। "


2

सुख-दुख का ताना-बाना है,

जीवन है रंगीन  चदरिया ।

नयनो के जल से धोता हूँ,

हँसी खुशी यह कटे उमरिया।


3

बरसों से सच समझ रहे थे ,

लेकिन वह था भरम हमारा।

भला किया जो तोड़ गई तुम

आभारी दिल, करम तुम्हारा ।


4

दीप भले हो और किसी का

ज्योति प्रीत की आती तो है।

पीड़ा मेरी चुपके चुपके ,

किरनों से बतियाती तो है 


-आनन्द.पाठक-


बुधवार, 3 मार्च 2021

चन्द माहिए

 चन्द माहिए 


:1:

 यह दिल  ख़ामोश रहा

कह न सका कुछ भी

इसका अफ़सोस रहा


  ;2:

  ये कैसी रवायत है ?

  जाने क्यों तुम को

  मुझ से ही शिकायत है ?


  :3:

 तुम ने ही बनाया है 

 ख़ाक से जब मुझ को 

फिर ऐब क्यों  आया है ?


  :4:

 सच है, इनकार नहीं

 ’तूर’ पे आए ,वो

 लेकिन दीदार नहीं 


5

मुझको अनजाने में

लोग पढ़ेंगे कल

तेरे अफ़साने में


-आनन्द.पाठक-