शनिवार, 31 जुलाई 2021

चन्द माहिए

 

 

चन्द माहिए

 

 :1:

हर साँस अमानत है,

जितनी भी हासिल,

उनकी ही इनायत है।

 

:2:

सब ज़ेर--नज़र उनकी,

कौन छुपा उन से?

उन को है ख़बर सबकी।

 

 :3:

कब मैने सोचा था.

टूट गया वो भी

तुम पर जो भरोसा था।

 

 :4:

इतना जो मिटाया है,

और मिटा देते

दम लब पर आया है।

 

5

आँखों में शरमाना,

कुछ तो है दिल में,

रह रह कर घबराना।

 

-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 24 जुलाई 2021

एक ग़ज़ल : हमें मालूम है --

 डायरी के पन्नों  से---

एक ग़ज़ल : हमें मालूम है संसद में ---



हमें मालूम है संसद में कल फिर क्या हुआ होगा,

कि हर मुद्दा सियासी ’वोट’ पर  तौला  गया होगा ।


वो,जिनके थे मकाँ वातानुकूलित संग मरमर  के,

हमारी झोपड़ी के  नाम हंगामा   किया  होगा


जहाँ भी बात मर्यादा की या तहजीब की आई,

बहस करते हुए वो गालियाँ  भी दे रहा  होगा


बहस होनी कभी जो थी किसी गम्भीर मुद्दे पर,

वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का  नारा लगा होगा


चलें होंगे कभी चर्चे जो रोटी पर ,ग़रीबी  पर,

दिखा कर आंकड़ों  का खेल, सीना तन गया होगा ।


कभी मण्डल-कमण्डल पर, कभी ’मस्जिद पे, मन्दिर पर

इन्हीं के नाम बरसों से तमाशा हो रहा होगा ।


खड़े है कटघरे में हम , लगे आरोप ’आनन’ पर,

कि शायद भूल से हम ने कहीं सच कह दिया होगा ।


-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 17 जुलाई 2021

चन्द माहिए

 

चन्द माहिए

 :1:

 दो चार क़दम चल कर,

 छोड़ न दोगे तुम,

 सपना बन कर, छल कर?

 

  :2:

 जब तुम ही नहीं हमदम,

 सांसे  भी कब तक

 देगी यह साथ, सनम !

 

 :3:

दुनिया की कहानी में,

शामिल है सुख-दुख,

मेरी भी कहानी में।

 

:4;

विपरीत हुई धारा,

और हवाओं ने

कश्ती को ललकारा।

 

5

कितनी भोली सूरत,

रब ने बनाई हो,

जैसे तेरी मूरत।

 

-आनन्द,पाठक-

रविवार, 11 जुलाई 2021

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल 


रिश्तों की बात कौन निभाता है आजकल 

वह बेग़रज़ न हाथ मिलाता  है आजकल


यह और बात है उसे सुनता न हो कोई

फिर भी वो मन की बात सुनाता है आजकल


कहना तो चाहता था मगर कह नहीं सका

कोई तो दर्द है ,वो छुपाता  है आजकल


लोगों के अब तो तौर-तरीक़े बदल गए

किस दौर की तू बात सुनाता है आजकल 


मौसम चुनाव का अभी आने को है इधर

वह ख़्वाब रोज़-रोज़  दिखाता है आजकल


सच बोल कर भी देख लिया ,क्या उसे मिला ?

वह झूठ की दुकान चलाता है आजकल 


’आनन’ बदल सका न ज़माने के साथ साथ

आदर्श का वो कर्ज़ चुकाता है आजकल ।


-आनन्द पाठक-

शनिवार, 3 जुलाई 2021

चन्द माहिए

 

चन्द माहिए

:1
सदक़ात भुला मेरा,
एक गुनह तुम को
बस याद रहा मेरा।

:2:
इक चेहरा क्या भाया,
हर चेहरे में वो
मख़्सूस नज़र आया।

;3:
हो जाता हूँ पागल,
जब जब साने से
ढलता तेरा आँचल।

4
उल्फ़त की यही ख़ूबी.
पार लगा वो ही
कश्ती जिसकी डूबी ।

5
क्या और तवाफ़ करूँ,
इतना ही समझा,
मन पहले साफ़ करूँ।

-आनन्द.पाठक-

मख़्सूस = प्रमुख, प्रधान.ख़ास तौर से
तवाफ़ = परिक्रमा, प्रदक्षिणा