कृष्ण राधा सम्बन्ध क्या है ?क्या राधा कृष्ण की पत्नी थीं ?परकीया थीं ?
क्या है परकीया भाव ?
परकीया कहते किसे हैं ?पराई नार को ?नहीं।
राधा और कृष्ण एक ही परमपुरुष(परमशक्ति ) के दो पहलू हैं। एक
शक्तिमान(energetic ) हैं।
दूसरा पहलू
दिव्यशक्ति स्वरूप (Divine energy )का है।
अनादिरयं पुरुष : एकमेवास्ति तदेव रूपं द्विधाविधाय
समाराधन तत्परोभूत तस्मात्ताम राधां रसिकानन्दान वेदविदो
वदन्ति।
-(साम रह्स्योपनिषद )
अनादिकाल से एक ही परमपुरुष (सुप्रीम लार्ड )ने अपने स्वरूप को दो में विभक्त किया हुआ है शक्तिमान (एनर्जेटिक )और शक्ति (एनर्जी ).
शक्ति ,शक्तिमान की ही होती है उससे अलग नहीं होती है। आग की शक्ति जलाना है ,जलकर प्रकाश करना है आग और प्रकाश अलग अलग नहीं हैं।
सुप्रीम एनर्जी को योगमाया भी कहा गया है वही राधा है। वेदों के जानकार जिसकी स्तुति करते हैं। जैसे दूध और दूध की सफेदी एक दूसरे से अलग नहीं हैं। अग्नि और प्रकाश एक दूसरे से पृथक नहीं हैं।गतिमान रासरचैया
के साथ राधा हैं जैसे गतिमान पदार्थ के संगत एक तरंग भी होती है। दोनों के दूसरे के संग नत्थी हैं। इसलिए कृष्ण को राधे से अलग करने का सवाल ही कहाँ है.
बेशक रास के वक्त मनबहलाव के लिए दोनों एक दूजे से अलग हो जातें हैं ताकि दिव्यप्रेम का आस्वाद लिया जा सके।रास चलता रहे। दोनों मिलते हैं फिर जुदा होते हैं फिर मिलते हैं। यही रासलीला है। यही परकीया भाव है।
This is love in the paramour sentiment .
ये सगाई दिव्यप्रेम की है। यहाँ "the other woman "नहीं है। कृष्ण ही
राधा हैं।
तुम राधे बनो श्याम।
इस प्रकार यहाँ लौकिक प्रेम विवाह नहीं है दोनों का। दो तो हैं ही नहीं।
लेकिन गर्ग संहिता में एक और अवतार रूप में राधा को कृष्ण की पत्नी दिखाया गया है ब्रह्मा पंडित बनते हैं जो दोनों का विवाह कराते हैं .लेकिन यह भी रास का ही एक और स्वरूप है लौकिक विवाह नहीं है स्त्री पुरुष का। अपार हैं ऐसी कृष्ण लीलाएं हैं सबकी सब दिव्यलीलाएं।
ॐ शान्ति
क्या है परकीया भाव ?
परकीया कहते किसे हैं ?पराई नार को ?नहीं।
राधा और कृष्ण एक ही परमपुरुष(परमशक्ति ) के दो पहलू हैं। एक
शक्तिमान(energetic ) हैं।
दूसरा पहलू
दिव्यशक्ति स्वरूप (Divine energy )का है।
अनादिरयं पुरुष : एकमेवास्ति तदेव रूपं द्विधाविधाय
समाराधन तत्परोभूत तस्मात्ताम राधां रसिकानन्दान वेदविदो
वदन्ति।
-(साम रह्स्योपनिषद )
अनादिकाल से एक ही परमपुरुष (सुप्रीम लार्ड )ने अपने स्वरूप को दो में विभक्त किया हुआ है शक्तिमान (एनर्जेटिक )और शक्ति (एनर्जी ).
शक्ति ,शक्तिमान की ही होती है उससे अलग नहीं होती है। आग की शक्ति जलाना है ,जलकर प्रकाश करना है आग और प्रकाश अलग अलग नहीं हैं।
सुप्रीम एनर्जी को योगमाया भी कहा गया है वही राधा है। वेदों के जानकार जिसकी स्तुति करते हैं। जैसे दूध और दूध की सफेदी एक दूसरे से अलग नहीं हैं। अग्नि और प्रकाश एक दूसरे से पृथक नहीं हैं।गतिमान रासरचैया
के साथ राधा हैं जैसे गतिमान पदार्थ के संगत एक तरंग भी होती है। दोनों के दूसरे के संग नत्थी हैं। इसलिए कृष्ण को राधे से अलग करने का सवाल ही कहाँ है.
बेशक रास के वक्त मनबहलाव के लिए दोनों एक दूजे से अलग हो जातें हैं ताकि दिव्यप्रेम का आस्वाद लिया जा सके।रास चलता रहे। दोनों मिलते हैं फिर जुदा होते हैं फिर मिलते हैं। यही रासलीला है। यही परकीया भाव है।
This is love in the paramour sentiment .
ये सगाई दिव्यप्रेम की है। यहाँ "the other woman "नहीं है। कृष्ण ही
राधा हैं।
तुम राधे बनो श्याम।
इस प्रकार यहाँ लौकिक प्रेम विवाह नहीं है दोनों का। दो तो हैं ही नहीं।
लेकिन गर्ग संहिता में एक और अवतार रूप में राधा को कृष्ण की पत्नी दिखाया गया है ब्रह्मा पंडित बनते हैं जो दोनों का विवाह कराते हैं .लेकिन यह भी रास का ही एक और स्वरूप है लौकिक विवाह नहीं है स्त्री पुरुष का। अपार हैं ऐसी कृष्ण लीलाएं हैं सबकी सब दिव्यलीलाएं।
ॐ शान्ति
beautifully explained
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दरता से राधा-कृष्ण का दर्शन कराने के लिए हार्दिक आभार..
जवाब देंहटाएंवीरेंद्र भाई आपके पोस्ट बड़े ध्यान से पढता हूँ ,बहुत ज्ञान की बातें होती है . आज भी आप दैविक दृष्टि कोण से बहुत बढ़िया विचार प्रस्तुत किया है परन्तु एक प्रश्न मन में उठता है , आखीर कृष्ण और राधा मानव थे और सासारिक रूप से राधा परस्त्री थी ,क्या आज अगर इसको कोई करे ,क्या समाज स्वीकार करेगा ? यदि नहीं तो क्या आराध्य के कृत्य अस्वीकार करना नहीं है ? क्या यह समाज में विरोधाभास नहीं है? क्या ऐसे विरोधाभास को ख़त्म करना नहीं चाहिए ?
जवाब देंहटाएंLatest post हे निराकार!
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आदरणीय काली प्रसाद जी राधा कृष्ण की योगमाया शक्ति का प्रकट रूप है यह लौकिक भोग्या नहीं है पारलौकिक रास लीला है दिव्यमनबहलाव है.कृष्ण का विलास हैं राधा रानी। प्रतिष्ठित हैं नारियां दैवीय विधान में लौकिक में जो है वह वहां नहीं हैं अनादर और तिरस्कार। वहां तो परस्पर उत्तरांग हैं कृष्ण और राधा।
जवाब देंहटाएंउत्तमांग पढ़ें कृपया उत्तरांग को।
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