एक ग़ज़ल : ज़िन्दगी ना हुई बावफ़ा आजतक------
ज़िन्दगी ना हुई बावफ़ा आज तक
फिर भी शिकवा न कोई गिला आजतक
एक चेहरा जिसे ढूँढता मैं रहा
उम्र गुज़री ,नहीं वो मिला आजतक
दिल को कितना पढ़ाता मुअल्लिम रहा
इश्क़ से कुछ न आगे पढ़ा आजतक
एक जल्वा नुमाया कभी ’तूर’ पे
बाद उसके कहीं ना दिखा आज तक
आप से क्या घड़ी दो घड़ी मिल लिए
रंज-ओ-ग़म का रहा सिलसिला आजतक
एक निस्बत अज़ल से रही आप से
राज़ क्या है ,नहीं कुछ खुला आजतक
तेरे सजदे में ’आनन’ कमी कुछ तो है
फ़ासिला क्यों नहीं कम हुआ आजतक ?
-आनन्द.पाठक--
08800927181
शब्दार्थ
मुअल्लिम =पढ़ानेवाला ,अध्यापक
नुमाया = दिखा/प्रकट
तूर = एक पहाड़ का नाम जहाँ ख़ुदा
ने हजरत मूसा से कलाम [बात चीत] फ़र्माया था
निस्बत =संबन्ध
अज़ल =अनादि काल से
ज़िन्दगी ना हुई बावफ़ा आज तक
फिर भी शिकवा न कोई गिला आजतक
एक चेहरा जिसे ढूँढता मैं रहा
उम्र गुज़री ,नहीं वो मिला आजतक
दिल को कितना पढ़ाता मुअल्लिम रहा
इश्क़ से कुछ न आगे पढ़ा आजतक
एक जल्वा नुमाया कभी ’तूर’ पे
बाद उसके कहीं ना दिखा आज तक
आप से क्या घड़ी दो घड़ी मिल लिए
रंज-ओ-ग़म का रहा सिलसिला आजतक
एक निस्बत अज़ल से रही आप से
राज़ क्या है ,नहीं कुछ खुला आजतक
तेरे सजदे में ’आनन’ कमी कुछ तो है
फ़ासिला क्यों नहीं कम हुआ आजतक ?
-आनन्द.पाठक--
08800927181
शब्दार्थ
मुअल्लिम =पढ़ानेवाला ,अध्यापक
नुमाया = दिखा/प्रकट
तूर = एक पहाड़ का नाम जहाँ ख़ुदा
ने हजरत मूसा से कलाम [बात चीत] फ़र्माया था
निस्बत =संबन्ध
अज़ल =अनादि काल से
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