चन्द माहिया : क़िस्त 48
:1:
क्यों दुख से घबराए
धीरज रख मनवा
मौसम है बदल जाए
:2:
तलवारों पर भारी
एक कलम मेरी
और इसकी खुद्दारी
:3:
सुख-दुख जाए आए
सुख ही कहाँ ठहरा
जो दुख ही ठहर जाए
:4:
तेरी नीली आँखें
ख़्वाबों को मेरे
देती रहती साँसें
:5:
आजीवन क्यों क्रन्दन
ख़ुद ही बाँधा है
जब माया का बन्धन
-आनन्द.पाठक-
:1:
क्यों दुख से घबराए
धीरज रख मनवा
मौसम है बदल जाए
:2:
तलवारों पर भारी
एक कलम मेरी
और इसकी खुद्दारी
:3:
सुख-दुख जाए आए
सुख ही कहाँ ठहरा
जो दुख ही ठहर जाए
:4:
तेरी नीली आँखें
ख़्वाबों को मेरे
देती रहती साँसें
:5:
आजीवन क्यों क्रन्दन
ख़ुद ही बाँधा है
जब माया का बन्धन
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-07-2018) को "अतिथि देवो भवः" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
ji -dhanyavaad--saadar
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