सड़क दुर्घटनायें और हमारी बेपरवाही
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर दिन चार सौ से अधिक
लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. निश्चय ही यह एक भयानक सच्चाई है. पर इस
त्रासदी को लेकर हम सब जितने बेपरवाह हैं वह देख कर कभी-कभी आश्चर्य होता है; लगता
है कि सभ्य होने में अभी कई वर्ष और लगेंगे.
अब जो आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जारी किये हैं वह
पढ़ कर तो लगता है कि स्थिती बहुत ही भयावह है. एक समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट के
अनुसार 2016
में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 150785 लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई थी, परन्तु
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या 299091 थी. अर्थात हर दिन 820 लोग, या कहें तो हर
एक घंटे में 34 लोग,
भारत की सड़कों पर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते है.
उससे भी चौकाने वाली बात यह है की पाँच वर्ष से लेकर 29 वर्ष की आयु में बच्चों ओर युवकों की मृत्यु का सबसे कारण
सड़क दुर्घटनायें हैं.
यह तथ्य हैरान करने वाले और डराने वाले हैं. पर लगता
नहीं कि इस देश में किसी को भी इस बात की रत्ती भर भी परवाह या चिंता है.
बीच-बीच में हम लोग, किसी दुर्घटना घटने के बाद,
थोड़ा-बहुत रोना-धोना करके और नेताओं के सामने नारेबाजी करके अपना दायित्व निभा
देते हैं और फिर सड़कों पर चिर-परिचित बेपरवाही से अपनी गाड़ियाँ दौड़ातें हैं. लेकिन
स्थिति में थोड़ा-सा बदलाव लाने का कहीं
कोई गम्भीर प्रयास होता नहीं दिखाई देता.
अब ज़रा भविष्य की कल्पना करते हैं. हर दिन मैं बीसियों
लोगों को ट्रैफिक नियमों का उल्लघंन करते हुए अपने वाहन चलाते हुए देखता हूँ. इन
वाहनों में बच्चे भी सवार होते है. यह बच्चे क्या सीख पाते हैं?
निश्चय ही इन बच्चों की चेतना में यह बात बैठ रही है कि
सड़क पर वाहन चलते समय हमें सिर्फ अपनी और अपनी सुविधा का सोचना चाहिए, दूसरों की
सुविधा या सुरक्षा का कोई अर्थ नहीं है, कि ट्रैफिक नियमों का पालन करना हमारा
दायित्व नहीं है, कि अपनी इच्छानुसार हम इन नियम का पालन कर सकते हैं, कि जीवन कोई
मूल्यवान उपहार नहीं है, बस दो कोड़ी का है-अपना भी और औरों का भी.
भारत की सड़कों पर भविष्य तो अंधाकारमय ही लगता.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-12-2018) को "महज नहीं संयोग" (चर्चा अंक-3183)) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
मुझे लगता है कि यह एक समस्या है जिसके प्रति हम सब पूरी तरह उदासीन हैं, जबकि थोड़ी सी सावधानी हज़ारों लोगों के जीवन की रक्षा कर सकती है. ज़रूरत है बस जागरूक होने की.
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