एक ग़ज़ल
जान-ए-जानाँ से क्या माँगू ?
दर्द-ए-दिल की दवा माँगू
हुस्न उनका क़यामत है
दाइमी की दुआ माँगू
क़ैद हूँ जुर्म-ए-उल्फ़त में
उम्र भर की सज़ा माँगू
ज़िन्दगी भर नहीं उतरे
इश्क़ का वह नशा माँगू
सादगी से मुझे लूटा
वो ही तर्ज-ए-अदा माँगू
आप की बस इनायत हो
आप से और क्या माँगू
हमसफ़र आप सा ’आनन’
साथ मैं आप का माँगू
-आनन्द.पाठक-
दाइमी = स्थायी,मुस्तकिल
जान-ए-जानाँ से क्या माँगू ?
दर्द-ए-दिल की दवा माँगू
हुस्न उनका क़यामत है
दाइमी की दुआ माँगू
क़ैद हूँ जुर्म-ए-उल्फ़त में
उम्र भर की सज़ा माँगू
ज़िन्दगी भर नहीं उतरे
इश्क़ का वह नशा माँगू
सादगी से मुझे लूटा
वो ही तर्ज-ए-अदा माँगू
आप की बस इनायत हो
आप से और क्या माँगू
हमसफ़र आप सा ’आनन’
साथ मैं आप का माँगू
-आनन्द.पाठक-
दाइमी = स्थायी,मुस्तकिल
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंDua'a aap ki
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