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रविवार, 3 नवंबर 2019

एक ग़ज़ल : दुश्मनी कब तक निभाओगे---

एक ग़ज़ल : दुश्मनी कब तक-----

दुश्मनी कब तक निभाओगे कहाँ तक  ?
आग में खुद को जलाओगे  कहाँ  तक  ?

है किसे फ़ुरसत  तुम्हारा ग़म सुने जो
रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक ?

नफ़रतों की आग से तुम खेलते हो
पैरहन अपना बचाओगे  कहाँ  तक ?

रोशनी से रोशनी का सिलसिला है
इन चरागों को बुझाओगे कहाँ  तक ?

ताब-ए-उलफ़त से पिघल जाते हैं पत्थर
अहल-ए-दुनिया को बताओगे कहाँ  तक ?

झूठ की तलवार से क्या खौफ़ खाना
राह-ए-हक़ हूँ ,आजमाओगे  कहाँ तक ?

सब गए हैं ,छोड़ कर जाओगे तुम भी
महल अपना ले के जाओगे कहाँ  तक ?

जाग कर भी सो रहे हैं लोग , कस्दन
तुम उन्हें ’आनन’ जगाओगे कहाँ  तक ?

-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ
पैरहन = लिबास ,वस्त्र
ताब-ए-उलफ़त से = प्रेम की तपिश से
अहल-ए-दुनिया को = दुनिया के लोगों को
राह-ए-हक़ हूँ    = सत्य के मार्ग पर हूँ
क़सदन            = जानबूझ कर

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-11-2019) को   "रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक"  (चर्चा अंक- 3510)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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