मैं किस्सा हूं सुनो कुछ मैं कहूं
एक प्रीत पुरानी सा मैं जुनूँ
कुछ वादों के, कुछ यादों के
बनूं एक तराने कभी कभी
मैं दिन हूंं, धूप में जलूं बुझूं
मैं हवा हूं , मैं फिर भी न बहूँ
शामों को क्षितिज सिरहाने पे
जडूं चांद सितारे कभी कभी
मैं बादल, धम धम गरजा करूं
मैं बिजली सी पल पल मचला करूं
मैं बूंद हूं , तेरे सिरहाने पे
पायल सी छनकू कभी कभी
मैं फूल सी खुद ही लरजा करूं
शबनम सी खुद ही पिघला करूं
तेरे आंखों से , तेरे होंठो से
मचलूं खुद को मैं कभी कभी
मैं ख्वाहिश हूं दिल में दुबकी रहूं
मैं चाहत हूं नस नस में पलूं
तन्हा ख्वाबों के मौसम में
धड़कन सी धडकूं कभी कभी
मैं इश्क़ हूं मैं हर रंग बनूं
मैं इश्क़ हूं, मैं हर रंग ढलूं
बस धूप धनक के रंगों सी
बिखरूं तुझमें मैं कभी कभी
मैं ख्वाहिश हूं दिल में दुबकी रहूं
जवाब देंहटाएंमैं चाहत हूं नस नस में पलूं
तन्हा ख्वाबों के मौसम में
धड़कन सी धडकूं कभी कभी
मैं इश्क़ हूं मैं हर रंग बनूं
👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
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सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबस धूप धनक के रंगों सी
जवाब देंहटाएंबिखरूं तुझमें मैं कभी कभी---वाह बहुत खूब पंक्तियां हैं।
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ख्याल !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव ।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर... मनभावन सृजन।