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बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

जग की यह माया

आत्मा अमर
शरीर छोड़कर
घट अंदर
तड़पती रहती
ऊहा पोह मे
इच्छा शक्ति के तले
असीम आस
क्या करे क्या ना करे
नन्ही सी आत्मा
भटकाता रहता
मन बावला
प्रपंच फंसकर
जग ढूंढता
सुख चैन का निंद
जगजाहिर
मन आत्मा की बैर
घुन सा पीसे
पंच तत्व की काया
जग की यह माया

1 टिप्पणी:

  1. सभी मित्रों को गांधी जयन्ती,लालबहादुर शास्त्री-जयन्ती,दुर्गापूजा एवं रामनवमी- पर्व की हार्दिक वधाई ! अच्छा प्रस्तुतीकरण !

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