एक ग़ज़ल : हुस्न हर उम्र में जवां देखा---
हुस्न हर उम्र में जवाँ देखा
इश्क़ हर मोड़ पे अयाँ देखा
एक चेहरा जो दिल में उतरा है
वो ही दिखता रहा जहाँ देखा
इश्क़ तो शै नहीं तिजारत की
आप ने क्यों नफ़ा ज़ियाँ देखा ?
और क्या देखना रहा बाक़ी
तेरी आँखों में दो जहाँ देखा
बज़्म में थे सभी ,मगर किसने
दिल का उठता हुआ धुआँ देखा ?
हुस्न वालों की बेरुख़ी देखी
इश्क़ वालों को लामकां देखा
सर ब सजदा हुआ वहीं’आनन’
दूर से उनका आस्ताँ देखा
-आनन्द पाठक-
हुस्न हर उम्र में जवाँ देखा
इश्क़ हर मोड़ पे अयाँ देखा
एक चेहरा जो दिल में उतरा है
वो ही दिखता रहा जहाँ देखा
इश्क़ तो शै नहीं तिजारत की
आप ने क्यों नफ़ा ज़ियाँ देखा ?
और क्या देखना रहा बाक़ी
तेरी आँखों में दो जहाँ देखा
बज़्म में थे सभी ,मगर किसने
दिल का उठता हुआ धुआँ देखा ?
हुस्न वालों की बेरुख़ी देखी
इश्क़ वालों को लामकां देखा
सर ब सजदा हुआ वहीं’आनन’
दूर से उनका आस्ताँ देखा
-आनन्द पाठक-
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22 -06-2019) को "बिकती नहीं तमीज" (चर्चा अंक- 3374) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
hello,
जवाब देंहटाएंYour Site is very nice, and it's very helping us this post is unique and interesting, thank you for sharing this awesome information. and visit our blog site also
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