तुम्हें खोजते हुए
पहुँच जाना मेरा
हर बार
उस क्षितिज पे
जहाँ कदाचित
आदम हौवा
पहली दफ़े मिले थे ...
अथक प्रयास करना मेरा
हम दोनों के अस्तित्व के
jigsaw puzzle से
ख़यालों के
और रूह के टुकड़े
जो कदाचित
एक दूसरे में
फ़िट बैठने के
लिए बने थे
मगर ये तुम्हारे मेरे
ख़्यालों के टुकड़े
मायावी से है, जो
हर बार बदल लेते है
स्वरूप अपना
किसी वाइरस की तरह ...
बदल लेते है ये
अपना आकार
प्रकार और विचार
और फिर
हम दोनो
फ़िट नहीं बैठ पाते
उस सामाजिक ढर्रे में ...
टूट जाते है
दोनो शैने शैने
और सोचते है
ये वाइरस कौन था ...
वहम या अहम !!
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