चन्द माहिए ...
1
सौ बुत में नज़र आया
सब में दिखा वो ही
जब दिल में उतर आया
2
जाना है तेरे दर तक
ढूँढ रहा हूँ मैं
इक राह तेरे घर तक
3
पंछी ने कब माना
मन्दिर-मस्जिद का
होता है अलग दाना
4
किस मोड़ पे आज खड़े ?
क़त्ल हुआ इन्सां
मज़हब, मज़हब से लड़े
5
इक दो अंगारों से
समझोगे क्या ग़म
दरिया का, किनारों से?
-आनन्द पाठक-
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी -आप का बहुत बहुत धन्यवाद --सादर
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंजोशी जी --आभार आप का उत्साहवर्धन हेतु--सादर
हटाएंवाह!बहुत खूब👌
जवाब देंहटाएं्धन्यवाद आप का शुभा जी--सादर
हटाएंसुंदर क्षणिकाएं...!!!
जवाब देंहटाएंआभार आप का---यह क्षणिकाएँ नहीं --माहिया है
हटाएंसादर
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBahut, Bahut sundar!!
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