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सोमवार, 20 जून 2022

बादल बूंदे बारिश और मैं

 सुनो,

आज तुम

मुझसे मिलने

इन बरसती रातों में 

 मत आना !

 

सोचा है मैंने,

आज बारिशें और मैं,

मैं और ये बारिशें,

भीगेंगें देर तक,

एक दूसरे में,

जब तलक,

एक एक बूंद में मैं 

रच बस न जाऊं !

और,

हर बूंद से रग रग,

मैं भीग न जाऊं !



नही चाहिए .. कोई,

हमारे दरमियां!

बस हो तो,

बादल हो, 

 बूंदे हो ,

 नशीली  बारिशें हो,

और हूं,  बस मैं !


7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह , बारिश और मेरे बीच और कोई नहीं चाहिये ..कितना खूबसूरत भाव और सौन्दर्यबोध . प्रकृति का सान्निध्य सबसे आनन्दमय होता है . बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता .

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    उत्तर
    1. हृदय से धन्यवाद ज्ञापन करती हूं.. आपका ये मान बेशकीमती है मेरे लिए ..
      आभार गिरिजा जी

      हटाएं
  2. सृष्टि से एकात्म होने के पथ पर
    कोई भय नहीं एकाकी जीवन से

    _/\_

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिलकुल सही कथन है ... सृष्टि... जल थल वायु अग्नि और व्योम से बनी ये देह, उसी सृष्टि के साथ घुलमिल जाना चाहती है
      आभार आपका

      हटाएं
  3. हमेशा की तरह उत्साह वर्धन करने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद सर
    आप मुझसे बहुत नवीन कवि को ये मंच देकर अभिभूत कर दिया
    आभार सर

    जवाब देंहटाएं