भारतीय इतिहास में दो घटनाओं का जिक्र ज्यादातर किया जाता है। एक है अयोध्यानरेश राजा दशरथ के पुत्र राम की पैदल यात्रा और दूसरा यदुनंदन भगवान श्रीकृष्ण का मथुरा छोड़कर द्वारिका को नई नगरी बसाना। प्राय: भारतवासी इसे धार्मिक कहानी समझकर बड़े चाव से सुना करते हैं पर भारतीय दर्शन के मर्मज्ञ इसकी व्याख्या राजनीति के उत्तम मानदंड को स्थापित करने के रुप में करते हैं। दशरथ नंदन भगवान राम की अयोध्या से श्रीलंका तक की यात्रा यूं ही नहीं रही। इस यात्रा के जरिए उन्होंने देश के उत्तरी भूभाग से लेकर दक्षिण के बीच एकात्म स्थापित किया। शायद यही कारण है कि आज उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक भगवान राम की पूजा होती है। दूसरा घटनाक्रम श्रीकृष्ण का लें तो मथुरा से द्वारिका जाने के पीछे भी यही कारण है। मथुरा से द्वारिका के बीच श्रीकृष्ण ने जो तादात्म्य स्थापित किया, उसका कोई और विकल्प नहीं हो सकता था। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में यह दोनों घटनाए भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की चुनावी यात्रा पर पूरी तरह से फिट बैठ रही है। इन दोनों घटनाओं का जिक्र करना हमने इस वजह से समीचीन समझा कि इन दिनों राजनीति के एक तबके द्वारा नरेन्द्र मोदी के दो स्थानों से चुनाव लड़ने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और उसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि दो स्थानों पर किसी भय के कारण चुनाव लड़ा जा रहा है। पर ऐसा नहीं है। हिन्दू आस्था में जिन 12 ज्योतिर्लिंगो की कल्पना की गई है। उनमें से एक गुजरात के सोमनाथ और दूसरा उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्वनाथ के रुप में हैं। नरेन्द्र मोदी अकारण वाराणसी और वडोदरा दो स्थानों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इसके पीछे वही परिकल्पना है कि सोमनाथ से लेकर विश्वनाथ के बीच एकात्म स्थापित हो सके। जो हवां मोदी के पक्ष में गुजरात से चली है, उसका असर उत्तर प्रदेश तक दिखाई दे। इसके लिए मोदी का वाराणसी से चुनाव लड़ना बेहद अनिवार्य है। इस चुनाव में मोदी ने सोमनाथ से विश्वनाथ की जय यात्रा को ही अपना चुनावी मूल मंत्र बना रखा है। अब तक आ रहे सर्वेक्षणों से साफ हो गया है कि मध्य और उत्तर भारत में मोदी की हवा चल रही है। इस हवा को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ कई अन्य राज्य स्तर के छोटे दलों ने पूरी कोशिश की, पर उसका कहीं कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से तो कांग्रेस का सफाया होता दिख रहा है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में जयललिता का असर देखने को मिल रहा है। ऐसे में कांग्रेस सशक्त विपक्ष की स्थिति में भी पहुंच पाने की हैसियत में नहीं दिख रही है। अमेरिका के झुकाव और कांग्रेस उम्मीदवारों में मची भगदड़ को देखने से भी साफ हो जा रहा कि मोदी की इस सोमनाथ से विश्वनाथ की जय यात्रा अब रुकने वाली नहीं है।
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