ग़ज़ल : मिलेगा जब भी वो हमसे---
मिलेगा जब भी वो हम से, बस अपनी ही सुनायेगा
मसाइल जो हमारे हैं , हवा में वो उड़ाएगा
अभी तो उड़ रहा है आस्माँ में ,उड़ने दे उस को
कटेगी डॊर उस की तो ,कहाँ पर और जायेगा ?
सफ़र में हो गया तनहा ,तुम्हारे साथ चल कर जो
वो यादों के चरागों को जलायेगा ,बुझायेगा
कहाँ तक खींच कर लाई ,तुझे यह ज़िन्दगी प्यारे
अगर तू लौटना चाहे , नहीं तू लौट पायेगा
इस आँगन का शजर है बस इसी उम्मीद में ज़िन्दा
परिन्दा जो गया है छोड़ , वापस लौट आयेगा
वो रिश्तों की लगाता बोलियाँ बाज़ार में जा कर
जिसे करनी तिजारत है वो रिश्ते क्या निभायेगा
अरे ! क्या सोचता रहता यहाँ पर बैठ कर ’आनन’
गये हैं लोग सब कुछ छोड़ ,तू भी छोड़ जायेगा
-आनन्द.पाठक-
मिलेगा जब भी वो हम से, बस अपनी ही सुनायेगा
मसाइल जो हमारे हैं , हवा में वो उड़ाएगा
अभी तो उड़ रहा है आस्माँ में ,उड़ने दे उस को
कटेगी डॊर उस की तो ,कहाँ पर और जायेगा ?
सफ़र में हो गया तनहा ,तुम्हारे साथ चल कर जो
वो यादों के चरागों को जलायेगा ,बुझायेगा
कहाँ तक खींच कर लाई ,तुझे यह ज़िन्दगी प्यारे
अगर तू लौटना चाहे , नहीं तू लौट पायेगा
इस आँगन का शजर है बस इसी उम्मीद में ज़िन्दा
परिन्दा जो गया है छोड़ , वापस लौट आयेगा
वो रिश्तों की लगाता बोलियाँ बाज़ार में जा कर
जिसे करनी तिजारत है वो रिश्ते क्या निभायेगा
अरे ! क्या सोचता रहता यहाँ पर बैठ कर ’आनन’
गये हैं लोग सब कुछ छोड़ ,तू भी छोड़ जायेगा
-आनन्द.पाठक-
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