ग़ज़ल
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हाथ जब ये बढ़ा तो बढ़ा रह गया ,
जिंदगी भर दुआ मांगता रह गया
सर झुका ये सदा प्रेम से गर कभी
आँख के सामने बस खुदा रह गया
राज़ की बात इक़ दिन बताता तुम्हें
राज़ दिल में छिपा का छिपा रह गया
जिंदगी में कमाया बहुत था मगर
आख़िरी दौर में आज क्या रहा गया
रूठ जाओ अगर तो मना लूं तुम्हें
मान जाना तुम्हारी अदा रह गया
संजय कुमार गिरि
स्वरचित रचना सर्वाधिकार @कोपी राईट
31.8.2017
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हाथ जब ये बढ़ा तो बढ़ा रह गया ,
जिंदगी भर दुआ मांगता रह गया
सर झुका ये सदा प्रेम से गर कभी
आँख के सामने बस खुदा रह गया
राज़ की बात इक़ दिन बताता तुम्हें
राज़ दिल में छिपा का छिपा रह गया
जिंदगी में कमाया बहुत था मगर
आख़िरी दौर में आज क्या रहा गया
रूठ जाओ अगर तो मना लूं तुम्हें
मान जाना तुम्हारी अदा रह गया
संजय कुमार गिरि
स्वरचित रचना सर्वाधिकार @कोपी राईट
31.8.2017
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