भोर भई रवि की किरणें धरती कर आय गईं शरना
लाल सवेर भई उठ जा कन-सा अब देर नहीं करना//
गान करैं चटका चहुँओर सुकाल भई सब धावति हैं
नीड़न मा बचवा बचिगै जिन मां कर याद सतावति हैं
फूलन की कलियॉ निज कोष पसारि सुगंध लुटावति हैं
मानव हों अलि हों सबको निज रूपन मा भरमावति हैं//
देख सुकाल सुमंगल है इनको निज नैनन में भरना
लाल सवेर भई उठ जा कन-सा अब देर नहीं करना//
खेतन और बगीचन पै रजनी निज ऑसु बहाय गई है
पोछन को रवि की किरणें द्युति साथ धरातल झीन नई है
पोशक दोष विनाशक जो अति कोमल-सी अनुभूति भई है
सागर में सुख के उठि के अब चातक मोतिन खोजि लई है//
दॉत गिनै मुख खोलि हरी कर भारत भूमि नहीं डरना
लाल सवेर भई उठ जा कन-सा अब देर नहीं करना//
खेतन मा मजदूर किसान सभी निज काज सँवार रहे हैं
गाय बँधी बछवा बछिया निज भोजन हेतु जुहार रहे हैं
प्राण-अपान-समान-उदान तथा नित व्यान पुकार रहे हैं
जीवन की गति है जहँ लौ सब ईश्वर के उपकार रहे हैं//
आय सुहावन पावन काल इसे निज अंकन में भरना
लाल सवेर भई उठ जा कन-सा अब देर नहीं करना//
रैन गई चकवा चकवी विलगान रहे अब आय मिले हैं
ताप मिटा मन कै सगरौ तन से मन से पुनि जाय खिले हैं
बॉध रहे अनुराग, विराग सभी उर से विसराय किले हैं
साधक योग करैं उठि कै तप से निज हेतु बनाय विले है//
प्राण सजीवनि वायु चली अब तौ सगरौ दुख कै हरना
लाल सवेर भई उठ जा कन-सा अब देर नहीं करना//
यह है जल लो मुख धो करके अभिनंदन सूरज का कर लो
मिटता मन का सब ताप उसे तुम भी अपने उर में भर लो
बल-आयु बढ़े यश भी बढ़ता नित ज्ञान मिलै उर में धर लो
अपमान मिले सनमान मिले सुख की अनुभूति करो उर लो//
जाय पढ़ो गुरु से तुम पाठ प्रणाम करो उनके चरना
लाल सवेर भई उठ जा कन-सा अब देर नहीं करना//
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें