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शनिवार, 19 अक्टूबर 2013

गजल : देश की तस्वीर धुंधली हो गई

गजल :  देश की तस्वीर धुंधली हो गई 

                                 -डॉ. वागीश मेहता नन्द लाल ,

                                  भाव सहचर्य(सहचर )वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )


          देश की तस्वीर धुंधली हो गई ,


          वोट का चेहरा खिला ,उजला गया। 


                       (१) 

         मंद बुद्धि मेमना हुंकार ऐसी मारता ,

         हौसला भी 'सिंह 'का ,गश खा गया। 

                      (२) 

         'मौन ' जब मोहने  लगा वक्ताओं को ,

         गूंगा खुद दर्पण हुआ हरषा गया। 

                      (३ )
          
          दाल चावल मुफ्त में मिलने लगे ,

          दोस्तों मौसम चुनावी आ गया। 

                      (४ )
           देखते ही देखते बम धर गया ,
            
           सेकुलर कम्युनल मुद्दा छा गया। 

                     (5)

           मौन मोहन जब से वक्ता हो गया ,

           गूंगा खुद दर्पण हुआ इतरा गया। 

          प्रस्तुति :वीरुभाई 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (20-10-2013)
    शेष : चर्चा मंचःअंक-1404 में "मयंक का कोना"
    पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (20-10-2013)
    शेष : चर्चा मंचःअंक-1404 में "मयंक का कोना"
    पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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