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सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

आओ मिल सब दिया जलाएँ

आओ मिल सब दिया जलाएँ...
अज्ञान का बादल घना है, पापमय मानस बना है।
भ्रश्ट, उच्छृंखल व्यवस्था, देखकर मन अनमना है।।
कर्म का दीपक स्नेह की बाती, जलाकर आओ तम भगाएं
आओ मिल सब दिया जलाएँ...
शत्रु सीना ताने खडा है, रक्षक दुविधा में पडा है।
झूठ शासन कर रहा है, सत्य कोने में खडा है।।
चीरना है यह तमस, कर्तव्य कुछ तो हम निभाएं
आओ मिल सब दिया जलाएँ...
नभ चुनौती दे रहा है, राह ओझल कर रहा है।
तिमिर से आवृत्त निशि में, भयातुर मन डर रहा है।।
उमंग, दृढ, विश्वास, आशा का प्रखर दीपक जलाएं
आओ मिल सब दिया जलाएँ...
                रमेश पाण्डेय

8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभभावना से प्रेरित सुन्दर रचना -तमसो मा ज्योतिर्गमय।

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    उत्तर
    1. वीरेन्द्र जी उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (29-10-2013) "(इन मुखोटों की सच्चाई तुम क्या जानो ..." (मंगलवारीय चर्चा--1413) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. श्री शास्त्री जी चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
  3. सच है अगर सब मिल जाएं तो दिए की रौशनी को कोई बुझा नहीं सकता ...

    जवाब देंहटाएं