Laxmirangam: निर्णय ( भाग 2): निर्णय (भाग 2) (भाग 1 से आगे) रजत भी समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपनी भावना संजना ...
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बुधवार, 31 मई 2017
Laxmirangam: निर्णय ( भाग 2)
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मंगलवार, 30 मई 2017
ज्वालादेवी से धर्मशाला (Jwaladevi to Dharamshala)
ज्वालादेवी से धर्मशाला (Jwaladevi to Dharamshala)
कल पूरे दिन के सफर की थकान और बिना खाये पूरे दिन रहने के बाद रात को खाना खाने के बाद जो नींद आयी वो एक ही बार 4:30 बजे मोबाइल में अलार्म बजने के साथ ही खुला। बिस्तर से उठकर जल्दी से मैं नहाने की तैयारी में लग गया। फटाफट नहा-धोकर तैयार हुआ और सारा सामान पैक किया। इतना करते करते 5 :30 बज गए। अब कल की योजना के मुताबिक एक बार फिर माँ ज्वालादेवी के दर्शन के लिए चल दिया। बाहर घुप्प अँधेरा था। इक्का-दुक्का लोग ही मंदिर के रास्ते पर मिल रहे थे। कुछ देर में हम मंदिर पहुँच गए। यहाँ मुश्किल से इस समय 25 -30 लोग ही थी। अभी मंदिर खुलने में कुछ समय था। कुछ देर में आरती आरम्भ हो गयी। आरती समाप्त होते होते मेरे पीछे करीब 300 से 400 लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी।
शनिवार, 27 मई 2017
♥कुछ शब्द♥: छोड़ चली हूँ___|||
♥कुछ शब्द♥: छोड़ चली हूँ___|||: मैं छोड़ चली हूँ अब तुम्हें हृदय में तुम्हारी याद लिए अनुराग के मधुर क्षणों संग वियोग की पीड़ा अथाह लिए कप्पन लिए पैरों में अपने अवशेष प्...
शुक्रवार, 26 मई 2017
Laxmirangam: निर्णय
Laxmirangam: निर्णय: निर्णय ( भाग -1) बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओं के विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत ...
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बुधवार, 24 मई 2017
एक ग़ज़ल : ज़रा हट के---ज़रा बच के---
एक मज़ाहिका ग़ज़ल :---ज़रा हट के ---ज़रा बच के---
मेरे भी ’फ़ेसबुक’ पे कदरदान बहुत हैं
ख़ातून भी ,हसीन मेहरबान बहुत हैं
"रिक्वेस्ट फ़्रेन्डशिप" पे हसीना ने ये कहा-
"लटके हैं पाँव कब्र में ,अरमान बहुत हैं"
’अंकल’ -न प्लीज बोलिए ऎ मेरे जान-ए-जाँ
’अंकल’, जो आजकल के हैं ,शैतान बहुत हैं
टकले से मेरे चाँद पे ’हुस्ना !’ न जाइओ
पिचके भले हो गाल ,मगर शान बहुत है
हर ’चैट रूम’ में सभी हैं जानते मुझे
कमसिन से,नाज़नीन से, पहचान बहुत है
पहलू में मेरे आ के ज़रा बैठिए ,हुज़ूर !
घबराइए नहीं ,मेरा ईमान बहुत है
’बुर्के’ की खींच ’सेल्फ़ी’ थमाते हुए कहा
"इतना ही आप के लिए सामान बहुत है"
’व्हाट्अप’ पे सुबह-शाम ’गुटर-गूँ" को देख कर
टपकाएँ लार शेख जी ,परेशान बहुत हैं
आदत नहीं गई है ’रिटायर’ के बाद भी
’आनन’ पिटेगा तू कभी इमकान बहुत है
बेगम ने जब ’ग़ज़ल’ सुनी ,’बेलन’ उठा लिया
’आनन मियां’-’बेलन’ मे अभी जान बहुत है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
हुस्ना = हसीना
इमकान = संभावना
"गुटर-गूं" = आप सब जानते होंगे नहीं तो किसी ’कबूतर-कबूतरी’ से पूछ लीजियेगा
हा हा हा
मेरे भी ’फ़ेसबुक’ पे कदरदान बहुत हैं
ख़ातून भी ,हसीन मेहरबान बहुत हैं
"रिक्वेस्ट फ़्रेन्डशिप" पे हसीना ने ये कहा-
"लटके हैं पाँव कब्र में ,अरमान बहुत हैं"
’अंकल’ -न प्लीज बोलिए ऎ मेरे जान-ए-जाँ
’अंकल’, जो आजकल के हैं ,शैतान बहुत हैं
टकले से मेरे चाँद पे ’हुस्ना !’ न जाइओ
पिचके भले हो गाल ,मगर शान बहुत है
हर ’चैट रूम’ में सभी हैं जानते मुझे
कमसिन से,नाज़नीन से, पहचान बहुत है
पहलू में मेरे आ के ज़रा बैठिए ,हुज़ूर !
घबराइए नहीं ,मेरा ईमान बहुत है
’बुर्के’ की खींच ’सेल्फ़ी’ थमाते हुए कहा
"इतना ही आप के लिए सामान बहुत है"
’व्हाट्अप’ पे सुबह-शाम ’गुटर-गूँ" को देख कर
टपकाएँ लार शेख जी ,परेशान बहुत हैं
आदत नहीं गई है ’रिटायर’ के बाद भी
’आनन’ पिटेगा तू कभी इमकान बहुत है
बेगम ने जब ’ग़ज़ल’ सुनी ,’बेलन’ उठा लिया
’आनन मियां’-’बेलन’ मे अभी जान बहुत है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
हुस्ना = हसीना
इमकान = संभावना
"गुटर-गूं" = आप सब जानते होंगे नहीं तो किसी ’कबूतर-कबूतरी’ से पूछ लीजियेगा
हा हा हा
♥कुछ शब्द♥: #बसयूँही
♥कुछ शब्द♥: #बसयूँही: सदियों से वो लिखती आई प्रेम आंधी में तूफान में बाढ़ में सैलाब में लेकिन कभी देख न पाई वक़्त के थपेड़ों ने उस स्याही को कर दिया था फ...
मंगलवार, 23 मई 2017
♥कुछ शब्द♥: युद्ध
♥कुछ शब्द♥: युद्ध: छिड़ चूका है युद्ध भयानक और मैं अबकी इंतजार में हूँ अपनी आत्मा के हार जाने का अपनी इस घुटी हुई परिस्थितियों से उबरने के लिए______ मैंने...
Laxmirangam: पुस्तक प्रकाशन
Laxmirangam: पुस्तक प्रकाशन: पुस्तक प्रकाशन हर रचनाकार , चाहे वह कहानीकार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और , चाह...
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सोमवार, 22 मई 2017
Laxmirangam: पुस्तक प्रकाशन
Laxmirangam: पुस्तक प्रकाशन: पुस्तक प्रकाशन हर रचनाकार , चाहे वह कहानीकार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और , चाह...
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रविवार, 21 मई 2017
चन्द माहिया :; क़िस्त 40
चन्द माहिया : क़िस्त 40
:1:
जीवन की निशानी है
रमता जोगी है
और बहता पानी है
;2:
मथुरा या काशी क्या
मन ही नहीं चमका
घट क्या ,घटवासी क्या
:3:
ख़ुद को देखा होता
मन के दरपन में
क्या सच है ,पता होता
:4:
बेताब न हो , ऎ दिल !
सोज़-ए-जिगर तो जगा
फिर जा कर उन से मिल
:5;
ये इश्क़ इबादत है
दैर-ओ-हरम दिल में
और एक ज़ियारत है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सोज़-ए-जिगर = अन्त: की अग्नि
:1:
जीवन की निशानी है
रमता जोगी है
और बहता पानी है
;2:
मथुरा या काशी क्या
मन ही नहीं चमका
घट क्या ,घटवासी क्या
:3:
ख़ुद को देखा होता
मन के दरपन में
क्या सच है ,पता होता
:4:
बेताब न हो , ऎ दिल !
सोज़-ए-जिगर तो जगा
फिर जा कर उन से मिल
:5;
ये इश्क़ इबादत है
दैर-ओ-हरम दिल में
और एक ज़ियारत है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सोज़-ए-जिगर = अन्त: की अग्नि
शनिवार, 13 मई 2017
एक ग़ज़ल : हौसला है दो हथेली है----
हौसला है ,दो हथेली है , हुनर है
किस लिए ख़ैरात पे तेरी नज़र है
आग दिल में है बदल दे तू ज़माना
तू अभी सोज़-ए-जिगर से बेख़बर है
साजिशें हर मोड़ पर हैं राहजन के
जिस तरफ़ से कारवाँ की रहगुज़र है
डूब कर गहराईयों से जब उबरता
तब उसे होता कहीं हासिल गुहर है
इन्क़लाबी मुठ्ठियाँ हों ,जोश हो तो
फिर न कोई राह-ए-मंज़िल पुरख़तर है
ज़िन्दगी हर वक़्त मुझको आजमाती
एक मैं हूं ,इक मिरा शौक़-ए-नज़र है
लाख शिकवा हो ,शिकायत हो,कि ’आनन’
ज़िन्दगी फिर भी हसीं है ,मोतबर है
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सोज़-ए-जिगर = दिल की आग
राहजन = लुटेरे [इसी से राहजनी बना है]
गुहर = मोती
पुरख़तर = ख़तरों से भरा
शौक़-ए-नज़र =चाहत भरी नज़र
गुरुवार, 11 मई 2017
एक व्यंग्य गीत : मैं तेरे ब्लाग पे आऊँ-----
एक व्यंग्य गीत : मैं तेरे ’ब्लाग’ पे आऊँ------
[संभावित आहत जनों से क्षमा याचना सहित]-----
मैं तेरे ’ब्लाग’ पे जाऊँ ,तू मेरे ’ब्लाग’ पे आ
मैं तेरी पीठ खुजाऊँ , तू मेरी पीठ खुजा
तू क्या लिखता रहता है , ये बात ख़ुदा ही जाने
मैने तुमको माना है , दुनिया माने ना माने
तू इक ’अज़ीम शायर’ है ,मैं इक ’सशक्त हस्ताक्षर
यह बात अलग है ,भ्राते ! हमको न कोई पहचाने
मैं तेरी नाक बचाऊँ ,तू मेरी नाक बचा
मैं तेरा नाम सुझाऊँ , तू मेरा नाम सुझा
कभी ’फ़ेसबुक’ पे लिख्खा जो तूने काव्य मसाला
याद आए मुझको तत्क्षण ,’दिनकर जी’-पंत-निराला
पहले भी नहीं समझा था , अब भी न समझ पाता हूँ
पर बिना पढ़े ही ’लाइक’ औ’ ’वाह’ वाह’ कर डाला
तू ’वाह’ वाह’ का प्यासा ,तू मुझको ’दाद’ दिला
मैं तेरी प्यास बुझाऊँ , तू मेरी प्यास बुझा
कुछ खर्चा-पानी का ’जुगाड़’ तू कर ले अगर कहीं से
कुछ ’पेन्शन फंड’ लगा दे या ले ले ’माहज़बीं’ से
हर मोड़ गली नुक्कड़ पे हैं हिन्दी की ’संस्थाएँ ’
तेरा ’सम्मान’ करा दूँ ,तू कह दे , जहाँ वहीं से
तू बिना हुए ’सम्मानित’ -जग से न कहीं उठ जा
मैं तुझ को ’शाल’ उढ़ाऊँ , तू मुझ को ’शाल उढ़ा
कुछ हिन्दी के सेवक हैं जो शिद्दत से लिखते हैं
कुछ ’काँव’ ’काँव’ करते हैं ,कुछ ’फ़ोटू’ में दिखते हैं
कुछ सचमुच ’काव्य रसिक’ हैं कुछ सतत साधनारत हैं
कुछ को ’कचरा’ दिखता है ,कुछ कचरा-सा बिकते हैं
मैं ’कचड़ा’ इधर बिखेरूँ , तू ’कचड़ा’ उधर गिरा
तेरी ’जयकार ’ करूँ मैं - तू मेरी ’जय ’ करा
[आहतजन का संगठित और समवेत स्वर में
’आनन’ के ख़िलाफ़ --उद्गार----]
बड़ ज्ञानी बने है फिरता -’आनन’ शायर का बच्चा
कुछ ’अल्लम-गल्लम’ लिखता- लिखने में अभी है कच्चा
’तुकबन्दी’ इधर उधर से बस ग़ज़ल समझने लगता
अपने को ’मीर’ समझता ,’ग़ालिब’ का लगता चच्चा
इस ’तीसमार’ ’शेख चिल्ली’ की कर दें खाट खड़ी
सब मिल कर ’आनन’ को इस ’ग्रुप’ से दें धकिया
-आनन्द.पाठक-
08800927181
[नोट- माहजबीं--हर शायर की एक ’माहजबीं’ और हर कवि की एक ’चन्द्रमुखी’ होती है -
सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते और मैं ? न मैं शायर हूँ ,न कवि -----हा हा हा ----]
सोमवार, 8 मई 2017
Laxmirangam: एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग
Laxmirangam: एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग: एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग सबसे पहली बात: “ प्रूफ रीडर का काम पुस्तक में परिवर्तन करना नहीं है , केवल सुझाव देने हैं कि पुस्तक...
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चन्द माहिए : क़िस्त 38
चन्द माहिया : क़िस्त 38
:1:
उनका हूँ दीवाना
देख रहें ऐसे
जैसे मैं बेगाना
:2:
कोरी न चुनरिया है
कैसे मैं आऊँ ?
खाली भी गगरिया है
;3:
कुछ भी तो नही लेती
ख़ुशबू ,गुलशन से
फूलों का पता देती
:4:
दुनिया का मेला है
सब तो अपने ही
दिल फिर भी अकेला है
:5:
मुझको अनजाने में
लोग पढ़ेंगे कल
तेरे अफ़साने में
-आनन्द.पाठक-
08800927181
:1:
उनका हूँ दीवाना
देख रहें ऐसे
जैसे मैं बेगाना
:2:
कोरी न चुनरिया है
कैसे मैं आऊँ ?
खाली भी गगरिया है
;3:
कुछ भी तो नही लेती
ख़ुशबू ,गुलशन से
फूलों का पता देती
:4:
दुनिया का मेला है
सब तो अपने ही
दिल फिर भी अकेला है
:5:
मुझको अनजाने में
लोग पढ़ेंगे कल
तेरे अफ़साने में
-आनन्द.पाठक-
08800927181
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