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शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

दो मुक्तक

                                 दो  मुक्तक
:1:
बात यूँ ही  निकल गई  होगी
रुख़ की रंगत बदल गई होगी
नाम मेरा जो सुन लिया  होगा
चौंक कर वो सँभल गई होगी

:2;

कौन सा है जो ग़म दिल पे गुज़रा नहीं
बारहा टूट कर भी  हूँ   बिखरा   नहीं
अब किसे है ख़बर क्या है सूद-ओ-ज़ियाँ
इश्क़ का ये नशा है जो  उतरा नहीं

शब्दार्थ
सूद-ओ-जियाँ = लाभ-हानि

आनन्द.पाठक
08800927181

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (22-01-2017) को "क्या हम सब कुछ बांटेंगे" (चर्चा अंक-2583) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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