चन्द माहिया : क़िस्त 60
:1:
हूरों की जीनत में
डूबा है ज़ाहिद
कुछ ख़्वाब-ए-जन्नत में
:2:
घिर घिर आए बदरा
बादल बरसा भी
भींगा न मेरा अँचरा
:3:
ग़ैरों की बातों को
मान लिया तूने
सच,झूठी बातों को
:4:
इतना ही फ़साना है
फ़ानी दुनिया मे
जाना और आना है
:5:
तुम कहती, हम सुनते
बीत गए वो दिन
जब साथ सपन बुनते
-आनन्द.पाठक-
:1:
हूरों की जीनत में
डूबा है ज़ाहिद
कुछ ख़्वाब-ए-जन्नत में
:2:
घिर घिर आए बदरा
बादल बरसा भी
भींगा न मेरा अँचरा
:3:
ग़ैरों की बातों को
मान लिया तूने
सच,झूठी बातों को
:4:
इतना ही फ़साना है
फ़ानी दुनिया मे
जाना और आना है
:5:
तुम कहती, हम सुनते
बीत गए वो दिन
जब साथ सपन बुनते
-आनन्द.पाठक-
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -06-2019) को "जग के झंझावातों में" (चर्चा अंक- 3381) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुती.
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
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