चन्द माहिए
:1:
क्यों ख़्वाब-ए-जन्नत में
डूबा है, ज़ाहिद!
हूरों की जीनत में?
:2:
ये हुस्न की रानाई,
नाज़, अदा फिर क्या
गर हो न पज़ीराई !
:3:
ग़ैरों की बातों को,
मान लिया सच क्यों,
सब झूठी बातों को?
:4:
इतना ही फ़साना है,
फ़ानी दुनिया में,
बस आना-जाना है।,
:5:
तुम कहती, हम सुनते
बीत गए वो दिन,
सपने बुनते बुनते ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
रानाई = सुन्दरता
पजीराई= स्वागत
फ़ानी दुनिया = नश्वर संसार
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