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रविवार, 25 फ़रवरी 2024

इक नगीने की तरह नायाब हो तुम


एक नगीने की तरह नायाब हो तुम 

ज़िंदगी एक सहरा, शादाब हो तुम


दिलकश भी तुम दिलनाज़ भी तुम 

हरदिल हो अजीज़,  सरताज हो तुम


एक अरसे से कोई मुलाकात  नहीं 

किस बात पे हमसे नाराज़ हो तुम 


हम तुमसे जुड़े जैसे रूह से' बदन 

परिंदा है हम , परवाज़ हो तुम 


सफ़र से है हम और सफ़र पे है हम

कि अंजाम ही तुम, आगाज़ हो तुम 

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

    जवाब देंहटाएं