श्याम स्मृति-२१ .......ईश्वर की आवश्यकता
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आखिर हमें उस ईश्वर की आवश्यकता ही क्या है जो अतनी सुन्दर दुनिया या समाज को त्याग कर मिले| ईश्वर की आवश्यकता उन्हें है जो ईश्वर के अभाव में दुखी हैं| यदि कोई संसार में रहकर, संसार को पाकर, संसार में लिप्त रहकर प्रसन्न है तो उसे ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं है | जो सारा संसार पाकर दुखी नहीं है उसे भी ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं है | सिर्फ समझना यह है कि हैं क्या वे सुखी हैं |
हमें ईश्वर हर स्थान पर, हर पल प्राप्य है परन्तु संसार में सुखपूर्वक उलझे रहने के कारण उसकी आवश्यकता व उपस्थिति अनुभव नहीं करते| नास्तिक कहते हैं कि वे ईश्वर को नहीं मानते अपितु एक स्वचालित व्यवस्था की सत्ता है जो विश्व को चलाती है .....वही तो भक्त जनों का ईश्वर है | और ईश्वर को न मानना भी तो उसके अस्तित्व का मन में होना ही है |
वो कहते हैं कि ईश्वर कहीं नहीं है |
कभी किसी ने कहीं देखा नहीं है
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मैं कहता हूँ ज़र्रे ज़र्रे में है काबिज़-
बस खोजने में ही कमी कहीं है
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भाई बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज मंगलवार (20-08-2013) को राखी मंगल कामना: चर्चा मंच 1343 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'