मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

शाख़ तो शाख़ है ....


फूलों से भरी शाख़ से
टकरा गया था मैं
उस शाख़ ने लहरा के
फूल मुझ पर बरसा दिये
फिर क्यों न होता प्यार मुझे
उस मेहरबान से
फूलों को चुन के मैंने झोली में धर लिया
ख़ुशबू को फूलों की मैंने सांसो में भर लिया
रखा दराज़ में उनको अबतक संभाल के
जो आज भी मेरे साथ हैं हर वक़्त प्यार के
जो नज्म उसने लिखी थी मेरे प्यार में
वो बसती है आज भी मेरे हर ख्याल में

शाख़ तो आखिर शाख़ है
मौसम बदलते ही फिर करेगी श्रृंगार ये
सजेगी संवरेगी फूलों के हार से
फिर मुकद्दर मेरा की मरती है मुझ पे
या किसी और पे बरसायेगी फूल प्यार के

कारवां वक़्त के कभी रुका नहीं करते
हिस्सों से जायदा कभी मिला नहीं करते
अब जो भी हो "इंतज़ार"....
दिल को हम भी.... यूँ भारी नहीं करते
                                                    .....इंतज़ार

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-12-2014) को "6 दिसंबर का महत्व..भूल जाना अच्छा है" (चर्चा-1820) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शास्त्री जी सादर आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिये..... मंगलकामनाएँ

      हटाएं