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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015
परछाईयाँ: मर्जी का मालिक
परछाईयाँ: मर्जी का मालिक: मर्जी का मालिक बहुत अच्छा लगा, मन बहुत बहला. तरह - तरह के सुझाव आए और टिप्पणियाँ आईं. कुछ मजेदार तो कुछ फूहड़. किंतु मन सभी ने बहलाया...
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हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (11-04-2015) को "जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार" {चर्चा - 1944} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'