चन्द माहिया [सावन पे ] : क़िस्त 52
[नोट : मित्रो ! विगत सप्ताह सावन पे चन्द माहिए [क़िस्त 51] प्रस्तुत किया था
उसी क्रम में -दूसरी और आखिरी कड़ी प्रस्तुत कर रहा हूँ--]
:1:
जब प्यार भरे बादल
सावन में बरसे
भींगे तन-मन आँचल
:2:
प्यासी आँखें तरसी
उमड़ी तो बदली
जाने न कहाँ बरसी
:3:
उन पर न गिरे ,बिजली
डरता रहता मन
जब जब चमकी पगली
:4:
इक बूँद की आस रही
बुझ न सकी अबतक
चातक की प्यास वही
:5:
कितने बदलाव जिए
सोच रहा हूँ मैं
कागज की नाव लिए
-आनन्द.पाठक-
[नोट : मित्रो ! विगत सप्ताह सावन पे चन्द माहिए [क़िस्त 51] प्रस्तुत किया था
उसी क्रम में -दूसरी और आखिरी कड़ी प्रस्तुत कर रहा हूँ--]
:1:
जब प्यार भरे बादल
सावन में बरसे
भींगे तन-मन आँचल
:2:
प्यासी आँखें तरसी
उमड़ी तो बदली
जाने न कहाँ बरसी
:3:
उन पर न गिरे ,बिजली
डरता रहता मन
जब जब चमकी पगली
:4:
इक बूँद की आस रही
बुझ न सकी अबतक
चातक की प्यास वही
:5:
कितने बदलाव जिए
सोच रहा हूँ मैं
कागज की नाव लिए
-आनन्द.पाठक-
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (13-08-2018) को "सावन की है तीज" (चर्चा अंक-3062) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति
Aap ka bahut bahut dhanyvaad--saadar
हटाएं