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मंगलवार, 10 सितंबर 2019

एक व्यंग्य : हिंदी पखवारा और मुख्य अतिथि

14-सितम्बर , हिंदी दिवस के अवसर पर विशेष-----]

एक व्यंग्य : हिंदी पखवारा और मुख्य अतिथि

"अरे भाई मिश्रा जी ! कहाँ भागे जा रहे हो ? " ---आफिस की सीढ़ियों पर मिश्रा जी टकरा गए
’भई पाठक ! तुम में यही बुरी आदत है है । प्रथमग्रासे मच्छिका पात:। तुम्हें मालूम नहीं कि आज से ’हिन्दी पखवारा" शुरू हो रहा है ।
मालूम नहीं कि सरकारी विभाग में हिन्दी पखवारा का क्या महत्व है ? मरने की फ़ुरसत नहीं होती "---मिश्रा जी ने अपना तात्कालिक और सामयिक महत्व बताया।
’अरे ’मार ’कौन रहा है तुम्हें ?-’ बदले में मै ने सहानुभूति जताई ।
इसी बीच मिश्रा जी की हिंदी चेतना जग गई-" मरने" की बात कर रहा हूँ ’डाईंग’--’डाईंग- । ’मारने’ ’बीटिंग’ बीटिंग’ की बात नहीं कर रहा हूँ ।’मरना’ अकर्मक क्रिया है --’मारना’ सकर्मक क्रिया है । मालूम भी है तुम्हें कुछ । मालूम भी कैसे होगा? "फ़ेसबुकिया" हिंदी से फ़ुरसत मिलेगी तब न ।
’अरे जाओ न महराज ,मरो’--मै ने अपना पीछा छुड़ाते हुए ,वहाँ से खिसकना ही उचित समझा।
मेरे पुराने पाठक ,मिश्रा जी से अवश्य परिचित होंगे। जो नए पाठक हैं ,उन्हें मिश्रा जी के बारे में संक्षेप में बता दूँ । मेरा सम्बन्ध मिश्रा जी से वही है जो कभी राजनारायण जी का चौधरी चरण सिंह से था , के0पी0 सक्सेना जी का किसी ’मिर्ज़ा’ से था या अमित शाह जी का मोदी जी से है। मिश्रा जी अतिउत्साह में जब कहीं ’लंका-दहन’ कर के आते हैं तब मुझे ही ’लप्पो-चप्पो’ कर के स्थिति सँभालनी पड़ती है।
मिश्रा ने सही तो कहा । मैं आत्म-चिन्तन में डूब गया । सरकारी विभाग में हिंदी-पखवारा के दौरान हिन्दी -अधिकारी का काम कितना बढ़ जाता है ।कितनी भाग दौड़ करनी पड़ती है ।जाके पैर न फटी विवाई ,सो क्या जाने पीर पराई ।
अब मिश्रा जी ने चिन्तन शुरू कर दिया -आसान काम है क्या एक ’हिंदी-अधिकारी ’ का काम ।बड़े साहब का हिंदी में संबोधन-सन्देश लिखना ,स्वागत-भाषण लिखना, धन्यवाद प्रस्ताव लिखना, हिन्दी की क्या महत्ता है -पर आलेख लिखना । उदघाटन के लिए मुख्य-अतिथि चुनना ,पकड़ना और पकड़ के लाना ।और मुख्य-अतिथि चुनना भी आसान काम है क्या? बड़े-बड़े साहित्यकार तो पहले से ही बुक हो जाते है । शादी के मौसम में बाजा वालों को समय से ’बुक’ न करो तो बजाने वाले भी नहीं मिलते। नखरे ऊपर से।
मुख्य अतिथि पकड़ने-धकड़ने में पिछली बार कितनी परेशानी हुई थी ,।एक ठलुआ निठ्ठल्लुआ साहित्यकार के पास गया था। बैठ कर मख्खी मार रहा था मगर ’किसी हिंदी कविता कहानी ग्रुप का ’फ़ेसबुकिया एड्मिनिस्ट्रेटर’ था । हिंदी-ग्रुप का फ़ेसबुकिया संचालक भी अपने आपको हिंदी का "मूर्धन्य साहित्यकार’ मानता है । और जो उसे नहीं मानता ,वह उसे ’लतिया’ देता है अपने ग्रुप से । वह अपने नाम के आगे ’कवि अलानवी ’ वरिष्ठ लेखक , कथाकार ढेकानवी ..शायर फ़लानवी लिख लेता है । ख़ुद ही मोर पंख लगा लेता है।
ऎसे ही एक महानुभाव के पास .हिंदी-दिवस के लिए निमन्त्रित करने गया ।
"भई मेरे पास तो टैम नहीं है ’मुख्य अतिथि’ बनने का । दसियों जगह से निमन्त्रण आए हैं ।आप ही बताएँ कहाँ कहाँ जाऊँ। आप मेरे ’रेगुलर क्लाईन्ट’ है तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा ।डायरी देख कर बताता हूँ।भाई साहब ने अपनी डायरी देखी,माथे पर कुछ चिन्ता की लकीरें उभारी, कुछ मुँह बनाया,कुछ ओठ बिचकाया ,कभी चश्मा उतरा ,कभी चश्मा चढ़ाया और अन्त में प्रस्फुटित हुए--" मुश्किल है भाई साहब । किसी प्रकार एक-घंटा निकाल सकता हूँ आप के लिए।भई मेरे पास गाड़ी तो नहीं है आप को ही ले जाना पड़ेगा और वापस छोड़ना पड़ेगा। बच्चों के लिए कुछ उपहार होना चाहिए -’पत्रम-पुष्पम’ वाला लिफाफा ज़रा वज़नदार होना चाहिए-----"
"सर ! यह कुछ ज़्यादा नहीं है ? इतना बजट नहीं है ,सर अपना "-मैने अपनी ’दंत -चियारी ’ करते हुए सरकारी असमर्थता जताई ।
" तो आज ही उदघाटन करा लो,फीता कटवा लो । सस्ते में कर दूँगा’---उन्होने हिंदी सेवा का अपना व्यापारिक रूप दिखाया
’सर !’हिंदी दिवस’ आज नहीं है न ,वरना आज ही बजवा लेता मतलब फीता कटवा लेता।
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पितॄ-पक्ष में कौए पूजे जाते हैं । अच्छे-अच्छे पकवान खिलाये जाते है। इस उमीद से कि पुरखे तर जाएंगे ।हिंदी-पखवारा में न जाने क्यों हिन्दी साहित्यकार ही बुलाए जाते हैं।इस उमीद से कि हिंदी तर जायेगी । मान्यता है बस।

कोई मिला नहीं तो थक हार कर उन्हीं महोदय को मोल भाव कर के लाया । पखवारा का अन्तिम दिन था सस्ते में --गाड़ी से ले आने-ले जाने की शर्त पर मान गए ।
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हिंदी पखवारा का आख़िरी दिन । 14-सितम्बर।
सभागार भरा हुआ है । सरकारी अधिकारी मंच पर बैठ गए।माला फूल हार पहना दिए गए। सरस्वती-वंदना हो गई । दीप-प्रज्ज्वलित हो गया । उदघाटन हो गया-। मुख्य अतिथि महोदय माइक पर आए और भाषण शुरु किया।
"-- पहले मैं आप सभी का धन्यवाद ज्ञापन कर दूँ कि आप ने इस पावन अवसर पर इस अकिंचन को याद किया ---आप सब जानते हैं -आज ही के दिन हिंदी हमारी ---गाँधी जी ने कहा था अगर देश को एक सूत्र में कोई पिरो सकता है तो वह है हिंदी---नेहरू जी ने कहा था-----हिन्दी एक भावना है ---जो भरा नहीं है भावों से ,जिसमें बहती रसधार नहीं , वो हृदय नहीं है पत्थर है-- ।हिंदी भारत माँ की बिंदी है------
"बात यहीं से शुरु करते हैं --हिन्दी पखवारा--’ उन्होने पीछे मुड़ कर दीवार पर टँगे हुए बैनर को देखते हुए कहा--" हिंदी-पखवारा। कभी आप ने ध्यान दिया कि यह शब्द कैसे बना? नहीं दिया न ? आज मैं बताता हूँ-- ’पखवारा ’- पक्षवार से बना है ।जैसे ’ईक्ष’ को "ईख’ को बोलते हैं । यानी’क्ष’ को ’ख’ बोलते है । पक्ष यानी 15-दिन का एक पक्ष--कॄष्ण पक्ष--शुक्ल पक्ष। अब तो लोग ’हिंदी-सप्ताह’ को भी लोग हिंदी पखवारा बोलने लग गए। कहीं कहीं कुछ लोग ’हिंदी-पखवाड़ा’ भी बोलते है ।कुछ जगह तो लोग -’ड़’- को -’र’ भी बोलते है जैसे "घोरा सरक पर पराक पराक दौर रहा है ’ ।यह किस प्रदेश की भाषा है यह न पूछियेगा । आप इस चक्कर में न पड़े कि पखवारा है कि पखवाड़ा-है । मगर --बैनर हमेशा वक्ता के पिछवाड़ा ही टँगा रहता है
--तालियाँ बजने लगी । क्या ज्ञान की बात कर रहा है बन्दा ।वाह वाह ।उन्होने अपना भाषण जारी रखा।
"अन्त में । हिंदी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है---मैं पिछली बार जब अमेरिका गया था-तो लोगों का हिंदी प्रेम देख कर मन अभिभूत हो गया --अगर आप कभी ’ऎडीसन’ गए हों --’ऎडीसन’ न्यूजर्सी की एक काउन्टी है -तो आप को लगेगा कि आप फिर भारत में आ गए जैसे कि आप यू0पी0 में हैं बिहार में हैं -- उस से पहले मैं रूस गया था तो वहाँ भी हिंदी बोली जाती है--आवारा हूँ [मैं नहीं] -मेरा जूता है जापानी --मेरा दिल है हिन्दुस्तानी ---हिंदी सुन कर मेरा सर श्रद्धा भाव से झुक गया हिन्दी के अगाध प्रेम के प्रति। जापान की बात तो खैर और है -। एक बार जापान भी गया था ।वहाँ के विश्वविद्यालय में आमन्त्रित था---
"अन्त में --. हमें हिंदी को आगे बढ़ाना है ।आप लोग सरकारी अधिकारी हैं ,कर्मचारी है ।देश के कई भाग से आए होंगे --कोई .तमिल’ से आया होगा --कोई आन्ध्रा से -कोई केरला से -।हिंदी बहुत ही सरल भाषा है । जिन भाइयों को हिंदी नही आती --घबराने की कोई बात नहीं --आप आफ़िस की नोटिंग में कठिन अंगरेजी शब्दों को देवनागरी में लिख दें --बस हो गई हिंदी--
"अन्त में -----
अन्त में --अन्त में कह्ते कहते 1 घन्टे के बाद अन्तियाए और सभा समाप्त हो गई ।हिन्दी दिवस मना ली गई एक सरकारी कार्यालय में ,और मुख्यालय को रिपोर्ट भेज दी गई ।
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बड़े साहब-- ’ मिश्रा ! इस मुए को कहाँ से पकड़ के लाया था। इस से अच्छी हिन्दी तो मैं ही बोल सकता था।
मिश्रा जी -----’सर ! आप विभाग के ’मुख्य महा प्रबन्धक’ हैं ,आप ’मुख्य अतिथि ’कैसे हो सकते थे। यह आदमी निठ्ठला खड़ा था आज के दिन ’लेबर चौक’ पर, सो पकड़ लाया। ’सस्ते’ में ’अच्छा’ भाषण दिया।
’या ,या ’-कह कर बड़े साहब ने अपने घर की राह ली।
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बाद में मालूम हुआ कि वह वक्ता भाई साहब जो ”दसियों निमन्त्रण’ की बात कर रहे थे वो अपना भाव बढ़ाने के लिए कर रहे थे और जो डायरी देख कर बताने की बात कर रहे थे उस में वह रोज नामचा लिखते हैं।वह इदेश-विदेश कहीं नहीं आते-जाते ।साल में एक बार अपने गाँव चले जाते है और उसी को ’विदेश-यात्रा " कह कर उल्लेख करते रहते हैं ।यह रहस्य उनके एक दूसरे प्रतिद्वन्दी हिंदी सेवक भाई ने बताई।
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मुख्य अतिथि महोदय के ’अंगरेजी के कठिन शब्दों को देवनागरी में लिखने वाले ’प्रवचन’ का कितना प्रभाव-- तमिल --कन्नड़ -मलयालाम भाषी भाइयों पर पड़ा होगा ,मालूम नहीं ।मगर मिश्रा जी पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा ।
अगले दिन उन्होने ’हिंदी वर्जन विल फ़ालो" वाले एक अंगेरेजी सर्कुलर का हिन्दी अनुवाद कर अधीनस्थ कार्यालयों को यूँ भेंज दिया
" टू द मैनेजर
प्लीज रेफ़र दिस आफिस लास्ट लेटर डेटेड----
आइ एम डाइरेक्टेड टू स्टेट दैट-------
नान कम्प्लाएन्स आफ़ द इनस्टरक्शन विल भी ट्रीटेड सीवीर्ली--

हिंदी आफ़िसर
फ़लाना आफ़िस

अस्तु
-आनन्द पाठक-



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