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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

शब्द संपदा-कुछ दोहे

गीता

पार्थ उठाओ शस्त्र तुम,करो अधर्म का अंत।
रणभूमि में कृष्ण कहे,गीता ज्ञान अनंत।।

कर्मयोग के ज्ञान का,अनुपम दे संदेश।
गीता जीवन सार है,जिससे कटते क्लेश।।

पतवार

साहस की पतवार हो,संकल्पों को थाम।
पाना अपने लक्ष्य को,करना अपना नाम।।

अक्षर

अक्षर अच्युत अजर हैं, कण-कण में विस्तार।
वही अनादि अनंत हैं,इस जीवन का सार।।

भीषण

भीषण गर्मी जब पड़े, तन-मन लगती आग।
लू बैरी बन कर बहे,व्यर्थ लगे सब राग।‌।

उपवन

उपवन सूने से लगें,पक्षी हो गए मौन।
उजड़े नीड़ों की व्यथा,समझेगा अब कौन।

गंगा-यमुना

गंगा जीवनदायिनी, यमुना तारणहार।
भारत भू पर शोभती,जैसे हीरक हार।।

निर्मल-पावन नीर से, सिंचित करती प्राण।
पतितों का करती सदा, गंगा-यमुना त्राण।।

रोग

सन साँसत में पड़ा,करता काबू रोग।
जाँचों की क्षमता बढ़ी,आयुष का उपयोग।।

नियमों का पालन करो,रहो रोग से मुक्त।
अपने-अपनों के लिए,मार्ग यही उपयुक्त।।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'

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