ग़ज़ल : बात दिल पे लगा के--
बात दिल पे लगा के बैठे हैं ,
हाय ! वो ख़ार खा के बैठे हैं।
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा रहें हैं इधर
वो उधर मुँह फ़ुला के बैठे है।
ग़ैर को आप का करम हासिल ,
सोज़-ए-दिल हम दबा के बैठे है।
देखते हैं कि क्या असर उन पर ?
हाल-ए-दिल हम सुना के बैठे है।
रुख़ से पर्दा ज़रा हटा उनका,
होश हम तो गँवा के बैठे हैं।
राह-ए-दिल से कभी वो गुज़रेंगे,
हम इधर सर झुका के बैठे हैं।
इश्क़ में होश ही कहाँ ’आनन’,
खुद ही ख़ुद को भुला के बैठे हैं।
-आनन्द,पाठक---
शब्दार्थ
सोज़-ए-दिल = दिल मे प्रेम की आग
= प्रेमाग्नि
उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशानदार गजल
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंnice post ऐसी ही और पोस्ट को पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग पे जरूर आये
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