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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

चन्द माहिए

 



चन्द माहिए


1

घिर घिर आए बदरा,

बादल बरसा भी,

भीगा न मेरा अँचरा।


2

कुछ सपने दिखला कर,

लूट लिए मुझको,

सपनों के सौदागर।


3

कुछ रंग लगा ऐसा,

बन जाऊँ मैं भी,

कुछ कुछ तेरे जैसा।


4

सब प्यार जताते हैं,

कौन हुआ किसका,

सब अपनी गाते हैं?


5

माजी की यादें हैं,

लगता है जैसे,

कल की ही बातें हैं।


-आनन्द.पाठक-


मंगलवार, 10 जनवरी 2023

एक कविता

 गिद्ध नहीं वो

दॄष्टि मगर है गिद्धों जैसी

और सोच भी उनकी वैसी ।

हमें लूटते कड़ी धूप में 

खद्दरधारी टोपी पहने ।

रंग रंग की कई टोपियाँ

श्वेत-श्याम हैं और गुलाबी

नीली, पीली, लाल ,हरी हैं

’कुरसी’ पर जब नज़र गड़ी है

’जनता’ की कब किसे पड़ी है

ढूँढ रही हैं ज़िन्दा लाशें

पाँच बरस की ”सत्ता’ जी लें



ऊँची ऊँची बातें करना

हर चुनाव में घातें करना

हवा-हवाई महल बनाना

शुष्क नदी में नाव चलाना

झूठे सपने दिखा दिखा कर 

दिल बहलाना, मन भरमाना

संदिग्ध नहीं वो

सोच मगर संदिग्धों जैसी

गिद्ध नहीं वो

दॄष्टि मगर है गिद्धों जैसी ।


-आनन्द.पाठक-