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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

नव वर्ष के स्वागत में --एक गीत

 2023

नववर्ष 2023 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ


एक गीत : नए वर्ष के स्वागत में --


हे आशाओं के प्रथम दूत ! नव-वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन


सौभाग्य हमारा है इतना इस संधि-काल के साक्षी हैं

जो बीता जैसा भी बीता, पर स्वर्ण-काल आकांक्षी है

यह भारत भूमि हमारी भगवन! हो जाए कानन-नंदन

नव-वर्ष तुम्हारा............


ले आशाओं की प्रथम किरण,हम करें नए संकल्प वरण

हम प्रगति-मार्ग रखते जाएँ.विश्वास भरे नित नए चरण

भावी पीढ़ी कल्याण हेतु आओ मिल करे मनन -चिंतन

नव-वर्ष तुम्हारा ............


अस्थिर करने को आतुर हैं,कुछ बाह्य शक्तियाँ भारत को

आतंकवाद का भस्मासुर.दे रहा चुनौती ताकत को

विध्वंसी का विध्वंस करें ,हम करे सृजन का सिरजन

नव-वर्ष तुम्हारा..................


लेकर अपनी स्वर्णिम किरणें. लेकर अपना मधुमय बिहान

जन-जग मानस पर छा जाओ, हे! मानव के आशा महान

हम स्वागत क्रम में प्रस्तुत है , ले कर अक्षत-रोली-चंदन

नव-वर्ष तुम्हारा ,....


हम श्वेत कबूतर के पोषक, हम गीत प्रेम का गाते है

हम राम-कृष्ण भगवान्, बुद्ध का चिर संदेश सुनाते हैं

'सर्वे भवन्तु सुखिन:' कल्याण विश्व का संवर्धन

नव-वर्ष तुम्हारा ..........


-आनन्द.पाठक-


ऐसे भी न बीते


ऐसे भी न बीत सके
कभी किसी के साल
रीते रीते नयना हो
और भीगे भीगे गाल

पेड़ों को जब जब बढ़ना हो
और शाखों को चढ़ना हो
पत्ता पत्ता टूट गिरे
होवे न ऐसी  डाल

जीवन का जो झरना हो
उसको कलकल जब बहना हो
राह में रोड़े डाल कोई भी
बदले न उसकी चाल

सफ़र में उमर भर रहना हो
दर्द फिर भी सहना हो
ज़ख़्म कुरेदे नमक छिड़क
पूछे कोई न किसी का हाल

ऋण सांसों का भरना हो
किश्तों में मरकर जीना हो
कैसा होगा वो ऋणानुबंधन
आए जब न फिर भी काल !!

मैं जिन्दगी

३१/१२/२०२२

31 दिसंबर की तारीख

 


31 दिसम्बर  की तारीख में...

एक खास  ही बात है 

यादों की बारात हैं।

जज़्बातों के  एहसास हैं।

बीते कदमों की चाप हैं।

खुशियों के सैलाब हैं।

आँसुओं की गिनती है

 मुस्कानों के विश्वास हैं।


 इसके बढ़ते कदमों पर...

अरमान हैं , जिज्ञासा है।

आशा है, पिपासा है।

उत्साह है  , संकल्प है।


  चलती  यह सखी  एक जनवरी 

 से हाथ मिलाती है

अपने मनोभावों की गठरी

उसी के हाथ सौंप आती है।


दो सखियों के  इस मिलन  की आपको शुभकामनाएँ।😍

पल्लवी गोयल 

चित्र साभार गूगल से

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

एक ग़ज़ल : श्रद्धा हत्याकांड पर----

 मो0 8800927181


एक ग़ज़ल   [ श्रद्धा हत्याकाण्ड पर ------

              ---ख़ला से आती एक आवाज़]




छुपे थे जो दरिंदे दिल में ,जब उसके जगे होंगे,

कटा जब जिस्म होगा तो नहीं आँसू झरे होंगे ।


न माथे पर शिकन उसके, नदामत भी न आँखों में,

कहानी झूठ की होगी, बहाने सौ नए होंगे ।


हवस थी या मुहब्बत थी छलावा था अदावत थी,

भरोसे का किया जो खून, दामन पर लगे होंगे ।


कटारी थी? कुल्हाड़ी थी? कि आरी थी? तुम्हीं जानॊ,

तड़प कर प्यार के रंग-ए-वफा पहले मरे होंगे।


हमारा सर, हमारे हाथ तुमने काट कर सारे,

सजा कर "डीप फ़ीजर" मे करीने से रखे होंगे।


लहू जब पूछता होगा. सिला कैसा दिया तुमने,

कटी कुछ ’बोटियाँ’ तुमने वहीं लाकर धरे होंगे ।


तुम्हारे दौर की यह तर्बियत कैसी? कहो ’आनन’ !

उसे ’पैतीस टुकड़े’ भी बदन के कम लगे होंगे ।



-आनन्द.पाठक- 

शब्दार्थ
ख़ला से = शून्य से
तर्बियत = परवरिश  संस्कार

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

तपिस

 पतीले में आग पर रखा दूध

ले रहा था उबाल पर उबाल

क्षण भर को ओझल होती नज़र

और एक उबाल ...बिखर गया दूध

ह्रदय पटल पर स्मृतियों का उबाल

उठती गिरती बीती यादों की तरंगे

एक स्मृति की कोर में उलझी स्मृति

एक उबाल और बिखर गया हथेली पर

एक उबाल ही था या फूटी कोई ज्वालामुखी

लावा फूट कर फैला था तपिस बढ़ती रही

मुरझाई आँचल के कोने की एक ठंठी फुहार

तपिस अब भी बाकी है और आग पर पड़ा है बिखरे दूध का निशान !!

$hweta

रंग

 हज़ार टुकड़े

मेरे हुए रिश्तों

की जोड़ में

हर धागा

बिखर गया

रंग ये कैसा

सुर्ख हुआ

इस मोड़ में  !!!

Shweta

रविवार, 4 दिसंबर 2022

एक व्यंग्य व्यथा :_ --शायरी का सर्टिफ़िकेट -

 [ डायरी के पन्नों से-----]

एक व्यंग्य व्यथा :_ --शायरी का सर्टिफ़िकेट --
चाय का एक घूँट जैसे ही मिश्रा जी के हलक के अन्दर गया कि एक शे’र बाहर निकला।
चाय की प्याली नहीं है , ज़िन्दगी का स्वाद है,
मेरे जैसे शायरों को आब-ओ-गिल है, खाद है ।
[आब-ओ-गिल है खाद है = यानी खाद-पानी है ]
मिश्रा जी ने अपनी समझ से शे’र ही पढ़ा था कि पास खड़े एक आदमी ने कहा--
-जी ! आप कौन ?
-जी ! बन्दे को शायर कहते है। शायर फ़लाना मिश्रा ’-मिश्रा जी ने 90 डीग्री कोण पर झुकते हुए कहा।
-मगर आप का नाम-वाम तो कहीं सुना नहीं ?
-भाई जान ! हम फ़कत ’ नाम ’ के शायर नहीं ’सचमुच’ के शायर हैं, काम के शायर हैं,कलाम के शायर हैं, अवाम के शायर हैं ।
-“मगर आप को किसी मंच पर देखा नहीं”
-“ देखेंगे कैसे? जिस मंच पर मैं ’पढ़ता’ हूं वहाँ आप जाते नहीं। और जहाँ आप जाते हैं वहाँ मैं पढ़ता नहीं”
-अच्छा ! आप ’शायरी’ भी करते हैं ? -उसने आश्चर्य से देखा-"हम तो समझे कि आप ’जुमलाबाजी’ करते हैं। आप ’जुमला’ अच्छा कह लेते हैं।
- हाँ जनाब ! जिन्हे शायरी समझने की तमीज नहीं है --वो ’जुमला’ ही समझते हैं ।
फिर दोनो हा--हा--ही -ही- हो- हो करते हुए अपनी अपनी राह लग लिए। एक संभावित दुर्घटना होते होते टल गई । बात आई-गई हो गई
---- ------ ---
मगर मिश्रा जी को बात लग गई। और सीधे ’नीर भरी दुख की बदली’ लिए हुए ’-मेरे यहाँ पधारे और पधारते ही ,झरझरा कर बरस पड़े।बदली फट गई।
’ भई पाठक! अब शायरी करने का ज़माना नहीं रहा, सोचता हूँ शायरी करना छॊड़ दूँ’-अपनी अन्तर्वेदना उड़ेलते हुए फ़फ़क पड़े - लोगों में अब शायरी समझने की तमीज नहीं रही। ख़सूसन मेरी शायरी। आज चचा ग़ालिब होते तो थोड़ा बहुत समझते , मीर साहब ज़रा ज़रा समझते ,अल्लामा साह्ब कोशिश करते तो शायद---तो वह सड़क छाप आदमी मेरा शे’र क्या समझता---
’अगर सौ लाख सर मारे तो शायद ही खुदा समझे:- मैने बीच ही में बात काट दी और बतौर-ए- सलाह कहा --"अरे ! तुम शायरी का सर्टिफ़िकेट रख कर क्यों नहीं चलते पाकेट में ड्राइविंग लाइसेन्स की तरह ?
कितनी बार कहा तुम से कि अपने नाम के आगे शायर लिखा करो वरिष्ठ शायर लिखा करो क़ौमी शायर लिखा करो। बहुत से लोग लिखते हैं आजकल अपने नाम के आगे फ़ेसबुक पर ,ह्वाट्स अप पर--शायर अलाना सिंह, शायर फ़लाना सिंह। कुछ तो ’भूतपूर्व’ शायर भी लिखते हैं अपने नाम के आगे। नहीं लिखोगे तो यही होगा। साथ में दो-चार चेला चापड़ भी ले कर चला करो जो तुम्हारा परिचय भी कराते चलते- और वाह वाह करते सो मुफ़्त में। जब अपना ’कीमती’ शे’र चाय की थड़ी पर, ’गुमटी’ पर सुनाओगे तो यही होगा।भई ! फ़ेसबुक पर कई मंच वाले सर्टिफ़िकेट दे रहे है -शायरी का। अब तो बहुत से मंच वाले ; मोटर ड्राइविंग सीखें 7-दिन में -की तर्ज़ पर ग़ज़ल कहना सीखें 7-दिन में ।
’आन-लाइन’क्लास भी चला रहे हैं ,दोहा कहना सीखें। एक सज्जन तो कविता की पाठशाला, शायरी का मकतब, ग़ज़ल का कोचिंग इन्स्तीच्यूट भी खोले हुए हैं । नियमित क्लास चलती है वहाँ ।डिस्टैन्स लर्निंग कोर्स सेर्टिफ़िकेशन। कुछ कुछ तो अमेरिका से चलाते है.कुछ दुबई से चलाते हैं ,कुछसिंगापुर से चलाते हैं ।कुछ नेशनल लेवेल पर चलाते हैं कुछ इन्टर्नेशनल लेवेल पर चलाते है। कुछ लोकल हैं कुछ ’वोकल’ हैं -वर्क फ़्राम होम- से शायरी करना सीखें ग़ज़ल कहना सीखें । एडमिशन क्यों नहीं ले लेते एकाध मंच पर ? जेब में सर्टिफ़िकेट रहता तो वह आदमी क्या ’चालान’ कर पाता तुम्हारा ? मार न देते एक सर्टिफ़िकेट उसके मुंह पर कि दुबारा ज़ुर्रत न करता। इस सर्टिफ़िकेट के आधार पर ही दुनिया तुम्हें शायर मान लेती।---मै हतोत्साहित मिश्रा जी के हृदय में "का चुप साधि रहेहु बलवाना" शैली में हवा भर रहा था ।
और मिश्रा जी अविलम्ब -’जामवन्त के वचन सुहाए’ शैली में- उठते भए और पता नहीं कहाँ चलते भए।
--- ---- ----
एक महीने बाद-मिश्रा जी पधारते भए।
आँखों में चमक थी - मन में आत्मविश्वास । सीना चौड़ा । गरदन में अकड़ । आते ही आते 15-20 शायरी के प्रमाण-पत्र ,सर्टिफ़िकेट सम्मान-पत्र ,सनद, कुछ पत्रिकाओं के कतरन पटक दिए मेज,कुछ फोटो थी एक हाथ में माइक पकड़े,दूसरा हाथ हवा में लहराते हुए,कही माला पहने हुए.कही ’पट्टा’ पहनते हुए ,कहीं किसी के पुस्तकविमोचन समारोह में 6 हाथ में 2 हाथ और लगाते हुए----। उन तमाम कतरनों पर एक हसरत भरी नज़र फेरते हुए बोले -"लो -देखो !-अब कोई माई का लाल आकर कोई पूछे कि मै कौन?"
“वो पूछते हैं मैं कि मिश्रा कौन हूँ “ ?अयं।
मैं वह तमाम सर्टिफ़िकेट देखने लगा --किसी ने ’ग़ज़ल श्री’ सम्मान दिया.-.किसी ने ग़ज़ल गौरव कहा--किसी ने-" शे’र बहादुर" कहा -किसी ने ग़ज़ल विभूति कहा -किसी ने इन्हें ’अन्तरराष्ट्रीय शायर, बताया, किसी ने ’ अन्तर्राष्ट्रीय़ शायर
एक मंच वाले ने हद कर दी जब इन्हे ’21 वीं सदी का आख़िरी महान शायर ’ का ख़िताब दे दिया था -। दूसरे मंच वाले ने तो कमाल ही कर दिया था। बहुत ही चित्ताकर्षक रंग-बिरंगी ’सर्टिफ़िकेट" बनाया था
उस पर ग़ालिब--मीर--दाग़--मोमिन ---ज़ौक़--फ़िराक़ के चित्र भी चिपकाए थे और अन्त में मिश्रा जी का ’फोटू’।-फ़लाना शायर मिश्रा जी का नाम तो लिखा था, परन्तु ---सम्मान वाली लाइन
खाली ------ छोड़ रखी थी । बिलकुल बियरर चेक की तरह । एक कागज का टुकड़ा भी नत्थी किया था। लिखा था --सयाणॆ ! तेरा अख्खा ग़ज़ल पढ़ेला है, भेजे में घुसेला तो नी मगर दोहा राप्चिक लिखेला है। जो चाहे सम्मान भर ले बीड़ू ! अपुन का पास टैम नहीं।
-शायर से ज़्यादा मंच। जितने भेड़ नहीं, उतने गड़ेर। इन्हीं मंचों की कृपा से अब हर दूसरा व्यक्ति शायर हो गया।
--- ----- ----
-मिश्रा जी ! एक बात कहूँ ? -
- हाँ हाँ कहों मित्रवर नि:संकोच कहो ?क्या?
-कि वह आदमी ग़लत नहीं कह रहा था।
इस से पहले की मिश्रा जी अपनी कोई ’ सुभाषित वाक्य’ मेरे सम्मान में उचारते --मैंने भाग जाना ही उचित समझा।
अस्तु
-आनन्द.पाठक--
[ नोट-- अगर इस व्यंग्य व्यथा से कोई ’मिश्रा जी" आहत हुए तो यही कहना है---
---तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की----

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

एक गीत : कौन यह निर्णय करेगा

 एक गीत 

 

कौन यह निर्णय करेगा ?

कौन किसको दे गया है वेदनाएँ ।

 

            कल तलक थे एक दूजे के लिए हम

            अब न वो छाया न वो परछाइयाँ है 

            वक़्त ने कुछ खेल ऐसा कर दिया है

            एक मैं हूँ साथ में तनहाइयाँ हैं ।

कौन सुनता है किसी की,

ढो रहे हैं सब यहाँ अपनी व्यथाएँ

 

            जो तुम्हारी शर्त थी मैने निभाया

            जो कहा तुमने वही मैं गीत गाया

            बादलों के पंख पर संदेश भेंजे-

            आजतक उत्तर मगर कोई न आया ।

क्या कमी पूजन विधा में-

क्यों नहीं स्वीकार मेरी अर्चनाएँ?

 

            साथ रहने की सुखद अनुभूतियाँ थीं

            याचना थी, चाहतें थीं. कल्पना थी

            ज़िंदगी के कुछ सपन थे जग गए थे

            प्रेम में था इक समर्पण, वन्दना थी।

कल तलक था मान्य सब कुछ

आज सारी हो गईं क्यों वर्जनाएँ ?

 

            चाँद से भी रूठती है चाँदनी क्या !

            फूल से कब रूठती है गंध प्यारी !

            कुछ अधूरे स्वप्न है तुमको बुलाते

            मान जाओ, भूल जाओ बात सारी

लौट आओगी कभी तुम

कह रहा मन, हैं अभी संभावनाएँ ।

 

-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 30 नवंबर 2022

 कितनी बार कहा है तुमसे

यूँ न ताका करो छुप छुप कर

मैं पकड़ ही लेती हूँ ये चोरी  तुम्हारी

दूसरे भी समझ जाते हैं और 

मैं हो जाती हूँ अप्रस्तुत।

ठीक है कि एक चाहत सी है

हमारे बीच,  किंतु क्या इसे

इस तरह  प्रकाशित करना चाहिये

अरे प्रेम तो छुपाने की ही चीज़ है

है ना ?



.।

शनिवार, 26 नवंबर 2022

मोहब्बत क्यों हो

 न वक्त

न हालात
न जज़्बात
मेरे काबू में
तू ही कह दे
मुझे तुझसे
मोहब्बत क्यों हो

कोई बेज़ार सा
बेगैरत  कोई अहसास
दिन रात मुझे मथता है
तू ही बता
तुझ से
तेरे इश्क़ से, मुझे
शिकायत क्यों हो

खुदा  ऐसे ही
किसी किरदार की
तकदीर में हिज्र
कहां लिखता है
तेरे इस  वस्ल से
तेरे  उस हिज्र से
मुझको फ़िर
बगावत क्यों हो

तू मुझे छोड़ दे
जिस लम्हा बस
उसी  पल मर जाऊं मैं
हर दफा
मरने के गुनाह में
शामिल
ये कयामत क्यों हो

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

चन्द माहिए

 


चन्द माहिए


1

दिन भर का थका होगा,

कुछ न हुआ हासिल

दुनिया से ख़फ़ा  होगा।


2

अब लौट के है जाना,

एक भरम था जग,

उसको ही सच माना।


3

जब जाना है, बन्दे!

अब तो काट ज़रा,

माया के सब फन्दे।


तुम को न भरोसा है,

कोई है दिल में,

मिलने को रोता है।


5

इक मेरी मायूसी,

उस पर दुनिया की,

दिन भर कानाफ़ूसी।


-आनन्द.पाठक-


बुधवार, 2 नवंबर 2022

हरिगीतिका छंद "भैया दूज"



"भैया दूज"

तिथि दूज शुक्ला मास कार्तिक, मग्न बहनें चाव से।
भाई बहन का पर्व प्यारा, वे मनायें भाव से।
फूली समातीं नहिं बहन सब, पाँव भू पर नहिं पड़ें।
लटकन लगायें घर सजायें, द्वार पर तोरण जड़ें।

कर याद वीरा को बहन सब, नाच गायें झूम के।
स्वादिष्ट भोजन फिर पका के, बाट जोहें घूम के।
करतीं तिलक लेतीं बलैयाँ, अंक में भर लें कभी।
बहनें खिलातीं भ्रात खाते, भेंट फिर देते सभी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

छंद का विधान निम्न लिंक में देखें:-

हरिगीतिका छंद

 

32 मात्रिक छंद "रस और कविता"

मोहित होता जब कोई लख, पग पग में बिखरी सुंदरता।
दाँतों तले दबाता अंगुल, देख देख जग की अद्भुतता।।
जग-ज्वाला से या विचलित हो, वैरागी सा शांति खोजता।
ध्यान भक्ति में ही खो कर या, पूर्ण निष्ठ भगवन को भजता।।

या विरहानल जब तड़पाती, धू धू कर के देह जलाती। 
पूर्ण घृणा वीभत्स भाव की, या फिर मानव हृदय लजाती।।
जग में भरी भयानकता या, रोम रोम भय से कम्पाती।।
ओतप्रोत वात्सल्य भाव से, माँ की ममता जिसे लुभाती।।

अरि की छाती वीर भाव से, छलनी करने भुजा फड़कती।
या पर पीड़ निमज्जित छाती, जिसकी करुणा भरी धड़कती।।
या शोषकता सबलों की लख, रौद्र रूप से नसें कड़कती।
या अटपटी बात या घटना, मन में हास्य फुहार छिड़कती।।

अभियन्ता ज्यों निर्माणों को, परियोजित कर के सँवारता।
बार बार परिरूप देख वह, प्रस्तुतियाँ दे कर निखारता।।
तब वह ईंटा, गारा, लोहा, जोड़ धैर्य से आगे बढ़ता।
और अंत में वास्तुकार सा, नवल भवन सज्जा से गढ़ता।।

भावों को कवि-मन वैसे ही, नया रूप दे दे संजोता।
अलंकार, छंदों, उपमा से, भाव सजा कर शब्द पिरोता।।
एक एक कड़ियों को जोड़े, गहन मनन से फिर दमकाता।
और अंत में भाव मग्न हो, प्रस्तुत कर कर के चमकाता।।

जननी जैसे नवजाता को, लख विभोर मन ही मन होती।
नये नये परिधानों में माँ, सजा उसे पुत्री में खोती।।
वही भावना कवि के मन को, नयी रचित कविता देती है।
तब नव भावों शब्दों से सज, कविता पूर्ण रूप लेती है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
22-05-2016

(अभियन्ता= इंजीनियर;   परियोजित= प्रोजेक्टींग;   परिरूप= डिजाइन;   प्रस्तुती= प्रेजेन्टेशन )

छंद का विधान निम्न लिंक में देखें:-
Nayekavi: 32 मात्रिक छंद "रस और कविता":  

बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

एक ग़ज़ल : चढ़ते दर्या को इक दिन

 


एक ग़ज़ल 


चढ़ते दर्या को इक दिन है जाना उतर,

जान कर भी तू अनजान है बेख़बर


प्यार मे हम हुए मुब्तिला इस तरह ,

बेखुदी मे न मिलती है अपनी खबर ।


यूँ ही साहिल पे आते नहीं खुद बखुद,

डूब कर ही कोई एक लाता  गुहर ।


या ख़ुदा ! यार मेरा सलामत रहे ,

ये बलाएँ कहीं मुड़ न जाएं उधर ।


अब न ताक़त रही, बस है चाहत बची,

आ भी जाओ तुम्हे देख लूँ इक नज़र ।


ये बहारें, फ़ज़ा, ये घटा, ये चमन ,

है बज़ाहिर उसी का कमाल-ए-हुनर ।


उसकॊ देखा नहीं, बस ख़यालात में ,

सबने देखा उसे अपनी अपनी नजर ।


खुल के जीना भी है एक तर्ज-ए-अमल,

आजमाना कभी देखना फिर असर ।


ज़िंदगी से परेशां हो ’आनन’ बहुत ,

क्या कभी तुमने ली ज़िंदगी की खबर ?



-आनन्द.पाठक- 


रविवार, 23 अक्तूबर 2022

कुछ मुक्तक दीपावली पर

 


: दीपावली पर :

:1:

पर्व दीपावली का मनाते चलें

प्यार सबके दिलों में जगाते चलें

ये अँधेरे हैं इतने घने भी नहीं

हौसलों से दि्ये हम जलाते चलें


:2:

आग नफ़रत की अपनी मिटा तो सही

तीरगी अपने दिल की हटा तो सही

इन चराग़ों की जलती हुई रोशनी

राह दुनिया को मिल कर दिखा तो सही


:3:

कर के कितने जतन प्रेम के रंग भर

अल्पनाएँ सजा कर खड़ी द्वार पर

एक सजनी जला कर दिया साध का

राह ’साजन’ की तकती रही रात भर


:4:

प्रीति से, स्नेह से प्राण-बाती जले

दो दिये जल रहे हैं गगन के तले

लिख रहें हैं इबारत नए दौर की

हाथ में हाथ डाले सफ़र पर चले 


:5:

घर के आँगन में पहले जलाना दिये

फिर मुँडेरों पे उनको  सजाना. प्रिये !

राह सबको दिखाते रहें दीप ये-

हर समय रोशनी का ख़जाना लिए ।


-आनन्द पाठक-

शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

एक ग़ज़ल : सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता

 

ग़ज़ल



सुरूर उनका जो मुझ पर चढ़ा नहीं होता ,

ख़ुदा क़सम कि मैं खुद से जुदा नहीं होता ।       1

 

हमारे इश्क़ में शायद कमी रही होगी-

सितमशिआर सनम क्यों खफा नहीं होता ।        2

 

निगाह आप की जाने किधर किधर रहती,

निगाह-ए-शौक़ से क्यों सामना नहीं होता ।        3

 

निशान-ए-पा जो किसी और के रहे होते,

यक़ीन मानिए सर यह झुका नहीं होता ।         4

 

ख़याल आप का दिन रात साथ रहता है,

ख़याल-ओ-ख़्वाब में खुद का पता नहीं होता ।      5

 

नज़र जो आप की मुझसे मिली नहीं होती,

क़रार दिल का मेरा यूँ लुटा नहीं होता ।          6

 

सफ़र हयात का ’आनन’ भला कहाँ कटता,

सफर में साथ जो उनका  मिला नहीं होता ।       7

 

-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

एक गीत : सुख का मौसम दुख का मौसम ---

 -एक गीत-

सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी-पानी का हो मौसम
मौसम का आना-जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा ।

अगर कभी होना फ़ुरसत में ,उसकी आँखों में पढ़ लेना
जिसकी आँखों में सपने थे जिसे ज़माने ने लू्टे हों ,
आँसू जिसके सूख गए हो, आँखें जिसकी सूनी सूनी
और किसी से क्या कहता वह, विधिना ही जिसके रूठें हो।

दर्द अगर हो दिल में गहरा, आहों में पुरज़ोर असर हो
चाहे जितना पत्थर दिल हो, आज नहीं तो कल पिघलेगा ।

दुनिया क्या है ? जादूघर है, रोज़ तमाशा होता रहता
देख रहे हैं जो कुछ हम तुम, जागी आँखों के सपने हैं
रिश्ते सभी छलावा भर हैं, जबतक मतलब साथ रहेंगे
जिसको अपना समझ रहे हो, वो सब कब होते अपने हैं॥

जीवन की आपाधापी में, दौड़ दौड़ कर जो भी जोड़ा
चाहे जितना मुठ्ठी कस लो, जो भी कमाया सब फिसलेगा ।

जैसा सोचा वैसा जीवन, कब मिलता है, कब होता है,
जीवन है तो लगा रहेगा, हँसना, रोना, खोना, पाना।
काल चक्र चलता रहता है. रुकता नहीं कभी यह पल भर
ठोकर खाना, उठ कर चलना, हिम्मत खो कर बैठ न जाना ।

आशा की हो एक किरन भी और अगर हो हिम्मत दिल में
चाहे जितना घना अँधेरा, एक नया सूरज निकलेगा ।


विश्वबन्धु, सोने की चिड़िया, विश्वगुरु सब बातें अच्छी,
रामराज्य की एक कल्पना, जन-गण-मन को हुलसा देती ,
अपना वतन चमन है अपना, हरा भरा है खुशियों वाला
लेकिन नफ़रत की चिंगारी बस्ती बस्ती झुलसा देती ।

जीवन है इक सख्त हक़ीक़त देश अगर है तो हम सब हैं
झूठे सपनों की दुनिया से कबतक अपना दिल बहलेगा ।

-आनन्द.पाठक-

बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

एक व्यंग्य व्यथा : रावण का पुतला

  एक व्यंग्य व्यथा : रावण का पुतला


डायरी के पन्नों से----
[ नोट : आज रावण वध है। रावण मरता नहीं। रावण व्यक्ति नहीं प्रवृत्ति है और हम प्रवृत्तियाँ नहीं जलाते ,पुतला जलाते हैं। अगर रावणीय प्रवृत्तियाँ
मारनी है तो हमें अपने अन्दर ’रामत्व’ जगाना होगा ।

 ---- आज रावण-वध है ।
40 फुट का पुतला जलाया जायेगा। विगत वर्ष, 30 फुट का पुतला जलाया गया था। इस साल रावण का कद बढ़ गया । पिछ्ले साल से इस साल लूट-पाट, अत्याचार, अपहरण, हत्या की घटनायें बढ़ गई सो ’रावण’ का  कद भी बढ गया है। रावण बलात्कार नहीं करता था क्योंकि वह ’रावण’ था। इसके लिए और लोग हैं आजकल। रामलीला की  तैयारियाँ पूरी हो चुकी है। मैदान में भीड़ इकठ्ठी हो रही है। बाल-बच्चे,  महिलायें , वॄद्ध,  नौजवान सब धीरे धीरे ’राम लीला’ मैदान में आ रहे हैं। रावण-वध देखना है। मंच सजाया रहा है। इस साल का मंच बड़ा बनाया जा रहा है। पिछले साल छोटा पड़ गया था। इस साल वी0आई0पी0 -लोग ज़्यादा आयेंगे। सरकार में कई पार्टियों का योगदान है। सभी पार्टियों के नेताओं को जगह देना है मंच पर । विगत वर्ष ’अमुक’ पार्टी के नेता जी को मंच पर जगह नहीं मिली थी तो बिफ़र गये थे मंच पर ही। धमकी देकर गए थे। ’हिन्दुत्व ’पर, आप का ही एकमात्र ’कापी -राइट’ नही है । हमारा भी है। इसी लिए तो उनका ’हाथ’’ छोड़ कर इधर आये हैं, वरना उधर क्या बुरे थे? इस बार कोई दूसरा नेता न बिदक जाए, तो मंच को बड़ा रखना ज़रूरी है। सबको जगह देनी है। सबको साधना है। सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास बाक़ी बक़वास। पता नहीं यह विश्वास कब तक रहेगा? कब कोई टाँग खींच दे? मंच पर ’सीता-राम-लक्षमण-हनुमान’ के लिए जगह कम पड़ गई। तो क्या हुआ? वो तो सबके दिल में है । उन्हें जगह की क्या ज़रूरत? उन्हें जगह की क्या कमी! हाँ, वी0आई0पी0 लोगो को मंच पर जगह कम न पड़ जाये।

नेता आयेंगे, अधिकारीगण आयेंगे रावण वध देखने। मंच पर वो भी आयेंगे जिन पर ’बलात्कार’ के आरोप हैं।-वो भी आयेंगे जिनपर ’घोटाले’ का आरोप हैं।-वो भी आयेंगे जो ’बाहुबली’ हैं जिन्होने आम जनता का ’बूँद बूँद खून’ चूस कर अपने अपने अपने ’घट’ भरे हैं-।--रावण ने भी भरा था। वो भी आयेंगे जो कई ’लड़कियों’ का अपहरण कर चुके हैं। वो भी आयेंगे जिन पर ’रिश्वत’ का आरोप है। ’भारत तेरे टुकड़े होंगे’ इंशाअल्ला इंशाअल्ला गैंगवाले भी आयेंगे ।कहते है- आरोप से क्या होता है ? सिद्ध भी तो होना चाहिये। आज सब भगवान को माला पहनायेंगे--

मंच के कोने में सिमटे ’राम’ जी सब सुन रहे हैं।-उन्हें ’रावण वध’ करना है।--इधर वाले का नहीं. सामनेवाले का, पुतले का। उधर रावण का पुतला खड़ा किया जा रहा है -भारी है ।ऐसे लोगो के पुतले भारी होते हैं। अपने पापों के कारण भारी होते है। नगर सेठ जी मोटा चन्दा दे कर खड़ा करवा रहे हैं। कमेटी वालों ने येन केन प्रकारेण ’पुतला’ खड़ा कर के सीना चौड़ा किया और चैन की साँस ली। पुतला खड़ा हो गया मैदान में उपस्थित सभी लोगों ने तालिया बजाई। सब की नज़र में आ गया रावण का पुतला --उसका पाप --उसका ’अहंकार’ --उसका ’लोभ--उसका रूप ’। यही तो देखने आए हैं इस मेला में। अपना तो दिखता नहीं। ऐसे पापियों का नाश अवश्य होना चाहिए। वध में अभी विलम्ब है। राम- लक्ष्मण जी अपना तीर धनुष लेकर तैयार हैं --मगर रावण को अभी नहीं मार सकते। भगवान को इन्तज़ार करना पड़ेगा। मुख्य अतिथि महोदय अभी नहीं पहुँचे हैं।
मैदान में लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं। समय काटना है।

कान्वेन्ट स्कूल के एक बच्चे ने रावण के पुतले को देख कर पूछ बैठा -"मम्मा हू इस दैट अंकल"?
"बेटा ! ही इज ’रावना’ --लाइक योर डैडू । रामा विल किल ’रावना’-थोड़ी देर में
बच्चे को -’डैडू’ वाली बात तो समझ में नहीं आई ,पर ’रामा’ किल ’रावना’ वाली बात समझ में आ गई
उधर "हरहुआ’ अपने काका को बता रहा था--’कक्का ! अब की बार का पुतला न बड़ा जानदार बनाया है। महँगा होगा? काका ने अपने अर्थशास्त्र ज्ञान से बताया--- हाँ रे! बड़े आदमी का पुतला भी मँहगा होता है। हम गरीबन का थोड़े ही है कि एक मुठ्टी घास ले कर फूंक  दिया।
रमनथवा की बीबी कान में अपने मरद से कुछ कह रही थी -"सुनते हो जी! हमें तो आजकल महेन्दरा की नीयत ठीक नहीं लग रही है। बोली-ठोली करता रहता है। हमें तो उसकी नज़र में खोट लग रहा है।-"
’अच्छा! स्साले को ठीक करना पड़ेगा"-रामनाथ ने कहा--"बहुत चर्बी चढ़ गई है स्साले को। बड़ा ’रावण’ बने फिर रहा है। तू उसे छोड़, इधर का रावण देख---"
उधर शर्मा जी ने माथुर साहब से कह रहे हैं -" या या पुतला इज वेरी नाइस --बट इट लैक्स ए ’टाई’
माथुर साहब ने हामी भरी ---यस सर ! हम लोग ’टाई ’ में कितना ’नाइस" लगता है- न ,-बेटर दैन ’रावना’।
  भीड़ बेचैन हो रही है। मुख्य अतिथि महोदय अभी तक पहुँचे नही। मोबाइल से खबर ले रहे हैं। -अरे कितनी भीड़ पहुँची मैदान में? नेता जी के चेला-चापड़ खबर दे रहे हैं। बस सर! आधा घंटा और। पहुँचिए रहें हैं लोग। नेता जी भीड़ से ही जीते हैं।-भीड़ पर ही मरते हैं । रावण को क्या मारना? जल्दी क्या है? रावण तो हर साल मरता है। चुनाव तो इस साल है। राम जी उधर अपना डायलाग’ याद कर रहे हैं –’ हे अधम, अधर्मी रावण ! तू –”
--अब रावण भी बेचैन होने लगा। एक तो मरना और उस पर धूप में खड़ा होने की यह सज़ा’। पता नहीं ये मुख्य अतिथि का बच्चा कब आयेगा। रावण का धैर्य जवाब देने लगा। अन्त में बोल उठा---
"हा! हा! हा! हा! मैं ’रावण’ हूँ।
भीड़ उसकी तरफ़ मुड़ गई ।
यह कौन बोला?--रावण कहाँ है? -यह तो पुतला है। सभी एक दूसरे को आश्चर्य भरी दॄष्टि से देखने लगे।यह पुतला कहां से बोल रहा है?
"हा ! हा! हा! हा!’ -पुतले से पुन: आवाज़ आई-- मैं पुतला नहीं, रावण बोल रहा हूँ! सच का रावण। अरे भीड़ के हिस्सों ! मूढ़ों -----!  
तुम लोग क्या समझते हो कि मैं मर गया हूँ? तुम लोग मुझे मार दोगे? वाल्मीकि से लेकर तुलसीदास तक, राधेश्याम से लेकर मोरारी बापू तक, नन्ह्कू हलवाई तक सभी ने मुझे मारा। क्या मैं मरा? हर साल तुम लोगो ने मुझे मारा। क्या मैं मरा? तुम कहते हो कि मैने ’सीता का अपहरण किया? क्या मेरे मरने  के बाद सीता का अपहरण बन्द हो गया? क्या तुम्हारे ’बाहुबली’ लोग अब सीता का ’अपहरण’ नही करते? उन्हें ’फ़ाइव स्टार’ होटल में नही रखते? कहते हो कि मैने छल किया --क्या तुम लोग छल नहीं करते? मैं ’अहंकारी’ था। क्या तुम लोग सत्ता के नशे में ’अहंकारी’ नहीं हो?
हा हा ! हा! हा! -----मैं मरता नही। ज़िन्दा हो जाता हूँ हर साल -----तुम्हारे अन्दर ---। लोभ बन कर ,,,,हवस बन कर,,,, छल बन कर ...अहंकार बन कर ---ईर्ष्या बन कर--परमाणु बम्ब बन कर --हाईड्रोजन बम्ब बन कर। हर देश में ..हर काल में ज़िन्दा रहा हूँ मैं। हर युद्ध मे, हर मार काट में हर दंगा में, हर फ़ित्ना में, हर फ़साद में --कभी सीरिया में ----कभी लेबनान मे—कभी अफ़गानिस्तान में --। तुम विभीषण’ को पालते हो न, क्यों कि वह तुम्हे ’सूट’ करता है।--तुमने कभी अपने अन्दर झांक कर नही देखा ।-तुम देख  भी नही सकते। -तुम देखना चाहते भी नही । तुम्हे मात्र मुझ पर पत्थर फ़ेकना आता है --क्योंकि पत्थर फ़ेंकना तुम्हे आसान लगता है।--तुम अपने आप पर ’पत्थर नहीं फ़ेंक सकते-।- मुझे जलाना तुम्हे आसान लगता है। -तुम अपने अन्दर का लोभ नहीं जला सकते। -मुझे मारना तुम्हे आसान लगता है।--तुम अपने आप का ’अहंकार नही मार सकते। मेरा अहंकार स्वरूप दिखता है। तुम्हे मेरे नाम से नफ़रत है-।-तुम्हें अपने अन्दर की नफ़रत नहीं दिखती। कोई अपने बेटे का नाम ’रावण’ नही रखना चाहता। सब ’राम’ का ही नाम रखना चाहते हैं।-कई ढोंगी बाबा लोग तो राम के नाम की आड़ में क्या क्या कर्म नहीं करते। --मैने तो वह सब नहीं किया। और नाम गिनाऊँ क्या? -ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में लोग ’राम’ का नाम रखने में 2-बार सोचेंगे। मैने  तो राम के नाम का सहारा नहीं लिया। रावण एक प्रवॄत्ति है--उसे कोई नही मार सकता। अगर मुझे कोई मार सकता है तो तुम्हारे दिल के अन्दर का ’रामत्व’ ही मार सकता है। और तुम सब राम नही हो। अपने अन्दर का ’रामत्व’ जगाऒ ---क्षमा जगाओ----करुणा जगाओ--प्यार जगाओ.. आदर्श जगाओ—मर्यादा जगाओ-- मैं खुद ही मर जाऊँगा --।
’या ही इज टाकिंग समथिंग नाइस’-- शर्मा जी ने कहा
माथुर साहब ने हुंकारी भरी--’ जब मौत सामने दिखाई देती है तो ज्ञान निकलता है सर ।-दैट इज व्हाट एक्ज़ैक्टली ही इज टाकिंग’ !
कथावाचक ने जैसे ही अपने हारमोनियम पर तान छेड़ी-

--’रावन रथी ,विरथ रघुबीरा—

-उसी समय मुख्य अतिथि महोदय अपने मर्सीडीज़ "रथ’ से पधारते भए।
माईक से घोषणा हुई --- भाइयो और बहनो ! आप के दुलारे और हम सब के प्यारे मुख्य अतिथि महोदय अब  हमारे बीच पधार चुके है ---जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिए।
थोड़ी देर में ’रावण वध’ का आयोजन किया जायेगा
सब ने अपने अपने हाथ में पत्थर  उठा  लिए।
अस्तु
-आनन्द.पाठक-

रविवार, 2 अक्तूबर 2022

चन्द माहिए

 चन्द माहिए


:1:

क्यों ख़्वाब-ए-जन्नत में 

डूबा है, ज़ाहिद!

हूरों की जीनत में?


:2:

ये हुस्न की रानाई,

नाज़, अदा फिर क्या

गर हो न पज़ीराई !


:3:

ग़ैरों की बातों को,

मान लिया सच क्यों,

सब झूठी बातों को?


:4:

इतना ही फ़साना है, 

फ़ानी दुनिया में, 

बस आना-जाना है।,


:5:

तुम कहती, हम सुनते

बीत गए वो दिन,

सपने बुनते बुनते ।


-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ

रानाई = सुन्दरता

पजीराई= स्वागत

फ़ानी दुनिया = नश्वर संसार


मंगलवार, 27 सितंबर 2022

तेरे कितने रूप गोपाल , श्याम पदावली --डॉ श्याम गुप्त की नवीन पुस्तक---ebook---

 मेरी नवीन पुस्तक---ebook--







तेरे कितने रूप गोपाल , श्याम पदावली --
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तेरे कितने रूप गोपाल ( श्याम पद सुषमा –श्याम पदावली )
प्रकाशन---सुषमा प्रकाशन, आशियाना, लखनऊ
सर्वाधिकार---लेखकाधीन
प्रथम संस्करण-----२६ सितम्बर २०२२ ई.--प्रथम नवरात्र
मूल्य----१००.रु
रचयिता –
डॉ. श्याम गुप्त –एमबीबीएस, एम् एस(सर्जरी )
हिन्दी साहित्यविभूषण, साहित्याचार्य
सुश्यानिदी, के-३४८,
आशियाना, लखनऊ (उ.प्र) भारत -२२६०१२
साज सज्जा व मुखपृष्ठ --- श्रीमती सुषमा गुप्ता
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Tere Kitane Roop Gopal –( lyrics by Dr,Shyam Gupt )
Sushyanidi, K-348, Ashiyana , lucknow (UP) INDIA -226012
Published By--- Sushma prakashan, Ashiyana, Lucknow

एक ग़ज़ल :हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर--

  एक ग़ज़ल 


हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर ,

पूछता कौन है अब कि सच है किधर?


इस क़लम को ख़ुदा इतनी तौफीक़ दे,

हक़ पे लड़ती रहे बेधड़क उम्र भर ।


बात ज़ुल्मात से जिनको लड़ने की थी,

बेच कर आ गए वो नसीब-ए-सहर।


जो कहूँ मैं, वो कह,जो सुनाऊँ वो सुन,

या क़लम बेच दे, या ज़ुबाँ  बन्द कर ।


उँगलियाँ ग़ैर पर तुम उठाते तो हो -

अपने अन्दर न देखा कभी झाँक कर ।


तेरी ग़ैरत है ज़िन्दा तो ज़िन्दा है तू ,

ज़र्ब आने न दे अपनी दस्तार पर।


एक उम्मीद बाक़ी है ’आनन’ अभी,

तेरे नग़्मों  का होगा कभी तो असर ।



-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ -

ज़ुल्मात से = अँधेरों से 

सहर        = सुबह 

दस्तार पर = पगड़ी पर, इज्जत पर