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शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

एक गीत : सुख का मौसम दुख का मौसम ---

 -एक गीत-

सुख का मौसम, दुख का मौसम, आँधी-पानी का हो मौसम
मौसम का आना-जाना है , मौसम है मौसम बदलेगा ।

अगर कभी होना फ़ुरसत में ,उसकी आँखों में पढ़ लेना
जिसकी आँखों में सपने थे जिसे ज़माने ने लू्टे हों ,
आँसू जिसके सूख गए हो, आँखें जिसकी सूनी सूनी
और किसी से क्या कहता वह, विधिना ही जिसके रूठें हो।

दर्द अगर हो दिल में गहरा, आहों में पुरज़ोर असर हो
चाहे जितना पत्थर दिल हो, आज नहीं तो कल पिघलेगा ।

दुनिया क्या है ? जादूघर है, रोज़ तमाशा होता रहता
देख रहे हैं जो कुछ हम तुम, जागी आँखों के सपने हैं
रिश्ते सभी छलावा भर हैं, जबतक मतलब साथ रहेंगे
जिसको अपना समझ रहे हो, वो सब कब होते अपने हैं॥

जीवन की आपाधापी में, दौड़ दौड़ कर जो भी जोड़ा
चाहे जितना मुठ्ठी कस लो, जो भी कमाया सब फिसलेगा ।

जैसा सोचा वैसा जीवन, कब मिलता है, कब होता है,
जीवन है तो लगा रहेगा, हँसना, रोना, खोना, पाना।
काल चक्र चलता रहता है. रुकता नहीं कभी यह पल भर
ठोकर खाना, उठ कर चलना, हिम्मत खो कर बैठ न जाना ।

आशा की हो एक किरन भी और अगर हो हिम्मत दिल में
चाहे जितना घना अँधेरा, एक नया सूरज निकलेगा ।


विश्वबन्धु, सोने की चिड़िया, विश्वगुरु सब बातें अच्छी,
रामराज्य की एक कल्पना, जन-गण-मन को हुलसा देती ,
अपना वतन चमन है अपना, हरा भरा है खुशियों वाला
लेकिन नफ़रत की चिंगारी बस्ती बस्ती झुलसा देती ।

जीवन है इक सख्त हक़ीक़त देश अगर है तो हम सब हैं
झूठे सपनों की दुनिया से कबतक अपना दिल बहलेगा ।

-आनन्द.पाठक-

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