मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

आरक्षण : वरदान या अभिषाप

भारत का संविधान हमें समान रूप से स्वतंत्रता प्रदान करता है और यह भारत सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो इस बात का खयाल रखे कि समाज के सभी तबके को समान अधिकार मिले। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण के जरिये समाज के कमजोर एवं पिछड़े तबके को समान अधिकार देने की कल्पना की थी। संविधान में १० वर्ष पश्चात आरक्षण के समीक्षा की बात कही गयी थी। आज संविधान के लागु होने के तक़रीबन ६५ वर्ष बीत जाने के बाद, आरक्षण ने समाज में समानता की जगह असामनता को बढ़ावा दिया है।

आरक्षण के प्रावधान ने आज भारतीय समाज को तीन ध्रुव में विभाजित कर दिया है। एक ध्रुव वैसे लोगों का है जिन्हें आरक्षण में मिली सुविधा से संतुष्ट हैं (जैसे अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, इन्हें २२.५% आरक्षण उपलब्ध है); दूसरे ध्रुव में वैसे लोग हैं जिन्हें आरक्षण में मिली सुविधा से संतुष्ट नहीं हैं (२७% आरक्षण प्राप्त अन्य पिछड़ी जाति में सम्मिलित लोग); तीसरा ध्रुव ऐसे लोगों का है जिन्हे आरक्षण की कोई सुविधा प्राप्त नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में आरक्षण के समर्थन में हमारे देश में समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने जिस प्रकार इस देश की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया है, इससे तो यही प्रतीत होता है कि जातिगत आरक्षण जिसकी कल्पना समाज में समानता प्रदान करने के लिए किया गया था, आज वही प्रावधान इस समानता के राह में सबसे बड़ा बाधक बन चूका है। आरक्षण हमें आगे बढ़ने की बजाए पीछे धकेल रहा है।

अब समय आ चूका है कि भारतीय समाज इस बात की समीक्षा करे कि क्या सचमुच आरक्षण का फायदा सही मायने में उन लोगों को प्राप्त हुआ है जिनकी कभी कल्पना की गयी थी? संविधान में शुरुआती तौर पर आरक्षण का प्रावधान सिर्फ अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लोगों के उत्थान के लिया किया था। सत्य तो यही है कि ६६ वर्षों के आरक्षण के बाद भी, निचली जाति के अधिकांश लोग ऐसे हैं जिन्हें आरक्षण का फायदा कभी नहीं मिला। उन्हें आज भी अपने मौलिक अधिकार के लिए रोजाना भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यहाँ यह समझने की आवश्यकता है कि आरक्षण का फायदा आरक्षित श्रेणी के उन लोगों को पहुंचा है जो पहले से ही समृद्ध थे या आरक्षण का लाभ उठाकर समृद्ध हो गए हैं। जरा सोचिए, भारतीय प्रशासनिक सेवाएँ (IAS) की परीक्षा उत्तीर्ण कर अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाती के हजारों लोग आज राजपत्रित अधिकारी बने हुए हैं। भला ऐसे उच्च पदस्थ अधिकारीयों को आरक्षण की क्या आवश्यकता है? परंतु सच्चाई यही है कि समाज के ऐसे ही प्रतिष्ठित व्यक्ति वर्ष-दर-वर्ष, पीढ़ी-दर-पीढ़ी आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों ने २७% आरक्षण की घोषणा की थी। पिछड़ापन निर्धारण के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्तर को सूचक बनाया गया। यहाँ भी आरक्षण का फायदा उन्हीं लोगों को मिल रहा है जिनका स्तर पहले से ही अच्छा रहा है।

आज यह आलम है कि आरक्षण का मुद्दा अब एक वोट बैंक में तब्दील कर दिया गया है। राजनितिक पार्टियाँ आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को किसी भी कीमत पर ख़त्म नही होने देना चाहती हैं। हर राजनितिक दल अपने को दलितों, पिछड़े वर्ग, मुस्लिम इत्यादि का मसीहा कहलाने में लगा हुआ है। दलितों का मशीहा कहे जाने वाले रामविलास पासवान, सुश्री मायावती जैसे सरीखे नेताओं ने भी सिवाय अपने राजनितिक लाभ के अलावा दलित समाज के पिछड़ेपन में सुधार लेन का कोई कार्य नहीं किया है। सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से संपन्न नेताओं को आरक्षण क्यों मिलना चाहिए?

कोई राजनितिक दल इस संवेदनशील मुद्दे को उठाकर राजनैतिक नुकसान उठाने की जहमत नही उठाना चाहता। अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख ने आरक्षण की समीक्षा का व्यक्तिगत राय व्यक्त किया था। समूचे देश में राजनितिक दलों ने ऐसा हाय-तौबा मचाया कि प्रधानमंत्री महोदय को घोषणा करनी पड़ी कि आरक्षण को ख़त्म नहीं किया जायेगा। संघ प्रमुख ने समीक्षा की बात की थी, आरक्षण ख़त्म करने की नहीं। आरक्षण ने सरकारी तंत्र को बर्बाद कर ही दिया है, अब पिछड़े वर्ग के राजनेताओं द्वारा हर संभव प्रयास किया जा रहा है कि निजी क्षेत्र में भी आरक्षण को लागु किया जाये और वो दिन दूर नहीं जब निजी क्षेत्र भी समाज के इस कोढ़ से अछूता नहीं रहेगा। अब तो हालात ऐसे हैं कि जो जाती एक बार आरक्षण की सूचि में सम्मिलित हो गए हैं, सामाजिक और आर्थिक उन्नति के बावजूद उस सूचि से किसी भी सूरतेहाल में बाहर नहीं निकलना चाहते हैं।

अभी कुछ दिनों पूर्व, हरियाणा राज्य के जाटों ने अपने जाती के लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित कर आरक्षण देने की मांग की। अपने मांग के समर्थन में उन्होंने धरना, सड़क जाम, तोड़-फोड़, मारपीट, सरकारी एवं निजी संपत्तियों को काफी नुकसान पहुँचाया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को पानी की आपूर्ति करने वाली नहर के एक हिस्से को क्षति पहुंचाई गई। स्थिति को सामान्य करने के लिए सेना को बुलानी पड़ी। कई शहरों में कर्फ्यू लगाई गई और बवालियों को देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया गया। सिर्फ रोहतक शहर के अंदर तक़रीबन हजार करोड़ की संपत्ति को क्षति पहुंचाई गई। जो धरना आरक्षण के मांग को लेकर शुरू हुआ वह बाद में गैर-जाट के संपत्तियों को लूटने और नुकसान पहुँचाने में तब्दील हो गया। इन जाट समर्थकों को गैर-जाट के संपत्तियों को लूटने और नुकसान पहुँचाने का अधिकार कैसे मिल गया? अगर किसी ने आरक्षण की मांग का विरोध किया भी तो इसमें गलत क्या था? क्या आरक्षण समाज को बाँटने का कार्य नहीं कर रहा? क्या आरक्षण समाज के दो समुदाय को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा होने के लिए मजबूर नहीं कर रहा?
जाट मुख्यतः पश्छिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान में बसे हुए हैं और न सिर्फ सामाजिक बल्कि आर्थिक स्तर पर भी समृद्ध हैं। केंद्र सरकार की मध्यस्थता के बाद हरियाणा सरकार ने घोषणा कर दी कि जाटों को भी अन्य पिछड़े जाती का आरक्षण दिया जाएगा। नतीजतन अब दूसरे राज्य के जाट भी आरक्षण की मांग उठाने लगे हैं। भला एक ऐसा सुमदाय जो सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न हो, उसे आरक्षण की सुविधा क्यों चाहिए? राजस्थान के गुर्जर जाति के लोग अन्य पिछड़ा जाति से निकलकर अनुसूचित जाति के सूचि में शामिल होना चाहते हैं। गुर्जरों ने पूर्व में दो-तीन बार अपने मांग के समर्थन में सड़क एवं रेल मार्ग को रोका था, परंतु किसी निजी या सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया गया था। सर्वोच्च न्यायलय के दखल-अंदाजी के पश्चात, गुर्जरों को अपना विरोध वापस लेना पड़ा था।हरियाणा के जाटों ने रास्ता दिखा दिया है कि यदि अपनी मांगें मनवानी हो तो तोड़-फोड़, सरकारी एवं निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर सरकारों को मजबूर किया जा सकता है।

भारत की उन्नति में आरक्षण एक बहुत बड़ा बाधा बन गया है। मैं यह नहीं कहता कि सरकार आरक्षण को बिलकुल ख़त्म कर दे। लेकिन आरक्षण की व्यवस्था अगर वैध व्यक्ति को वांछित लाभ से वंचित रखता हो तो उस व्यवस्था पर पुनर्विचार अवश्य होना चाहिए। समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आरक्षण नीति में भी बदलाव की आवश्यकता है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़ा वर्ग, हर आरक्षण आर्थिक पैमाने में मिले ना कि सिर्फ सामाजिक पैमाने पर आधारित हो। अगड़ी जाति कहलाने वालों में भी ऐसे लाखों-करोड़ों लोग हैं जो आर्थिक रूप से इतने पिछड़े हैं कि पढाई की बात बहुत दूर उन्हें दो समय का खाना भी ढंग से नसीब नहीं होता। क्या लाभ नहीं मिलना चाहिए?

देश के सर्वोच्च तकनिकी शिक्षण संस्थानों जैसे IIT, NIT, AIIMS, इत्यादि में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के छात्रों को आरक्षण के बुते दाखिला मिल जाता है। ऐसे छात्रों की नींव कमजोर होने की वजह से अधिकतर छात्र उस माहौल में अपने को अक्षम पाते हैं और पढाई पूरा करने में असफल रहते हैं। आवश्यकता है आरक्षण देने से पहले बुनियादी शिक्षा को मजबूत करने की और आरक्षित श्रेणी के छात्रों को बुनियादी शिक्षा मुफ्त मुहैया करवाने की ताकि आरक्षित श्रेणी से आए हुए छात्र सामान्य वर्ग के मेधावी छात्रों के समकक्ष या उनके आसपास पहुँच सकें। किसी प्रकार ऐसे कमजोर छात्र इंजीनियर या डॉक्टर बन भी जाते हैं, तो समाज को उनका योगदान नहीं मिल पाता है। आरक्षण की सुविधा होने के बावजूद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्ग से कितने ऐसे इंजीनियर, डॉक्टर या वैज्ञानिक निकले हैं जिनकी ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर या विश्व स्तर पर रही है? विचारणीय है।

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

ज़िन्दगी

अमरबेल सी नहीं ज़िन्दगी, खिलती है मुरझाती है

कभी ग़मों से आँख मिलाती, खुशियों संग मुस्काती है

उम्मीदों का ताना बाना, खुद ही बुनती जाती है
ख़ामोशी में दिन कटता है, सपनों संग बतियाती है

दुनिया जैसे रंगमंच हो, अभिनय भी करवाती है
खुद को शाबाशी है देती, खुद पे ही खिसियति है

असमंजस का जाल है बुनती, खुद ही फंसती जाती है
तजुर्बे तब सारे लगा कर, बुजुर्गों सा समझती है

अद्भुत है अविराम ज़िन्दगी, संगीत सी बहती जाती है
रंग बिरंगे कई रूपों से, जीना हमें सिखाती है

अमरबेल सी नहीं ज़िन्दगी, खिलती है मुरझाती है

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

एक ग़ज़ल : इलाही कैसा मंज़र है...



इलाही ! कैसा मंज़र है, हमें दिन रात छलता है
कहीं धरती रही प्यासी ,कहीं  बादल मचलता है

कभी जब सामने उस ने कहीं इक आइना देखा
न जाने देख कर क्यूँ रास्ता अपना  बदलता है

बुलन्दी आसमां की नाप कर भी आ गए ताईर
इधर तू बैठ कर खाली ख़याली  चाल चलता है

हथेली की लकीरों पर तुम्हें इतना भरोसा क्यों ?
तुम्हारे बाजुओं से भी तो इक रस्ता निकलता है

हमारे सामने मयख़ाना भी, बुतख़ाना भी ,ज़ाहिद !
चलो मयख़ाना चलते हैं ,यहाँ क्यूँ हाथ मलता है

जिसे तुम ढूँढते फिरते यहाँ तक आ गये ,जानम
तुम्हारे दिल के अन्दर था ,तुम्हारे साथ चलता है

मुझे हर शख़्स आता है नज़र अपनी तरह ’आनन’
मुहब्बत का दिया जब दिल में सुब्ह-ओ-शाम जलता है

-आनन्द.पाठक-
09413395592

शब्दार्थ
मंज़र  = दृश्य
ताईर  = परिन्दा/पक्षी/बाज पक्षी जो अपनी
ऊँची और लम्बी उड़ान के लिए जाना जाता है

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

चन्द माहिया : क़िस्त 29



:1:
दीवार उठाते हो
तनहा जब होते
फिर क्यूँ घबराते हो 

:2:
इतना भी सताना क्या
दम ही निकल जाए
फिर बाद में आना क्या

:3;
ये हुस्न ये रानाई
तड़पेगी यूं ही
गर हो न पज़ीराई

:4:
दुनिया के जो हैं ग़म
इश्क़ में ढल जाए
बदलेगा तब मौसम

;5;
क्या हाल बताना है
तेरे फ़साने में 
मेरा भी फ़साना है 

-आनन्द.पाठक-
09413395592
शब्दार्थ

रानाई = सौन्दर्य
पज़ीराई= प्रशंसा

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

एक ग़ज़ल : कहाँ तक रोकते दिल को.....

एक ग़ैर रवायती ग़म-ए-दौरां की ग़ज़ल......


कहाँ तक रोकता दिल को कि जब होता दिवाना है
ज़माने  से    बगावत   है ,  नया आलम   बसाना है

मशालें   इल्म की  लेकर  चले थे  रोशनी करने
अरे ! क्या हो गया तुमको कि अपना घर जलाना है ?

यूँ जिनके शह पे कल तुमने एलान-ए-जंग कर दी थी
कि उनका एक ही मक़सद ,तुम्हें  मोहरा बनाना है

धुँआ  आँगन से उठता है तो अपना दम भी घुटता है
तुम्हारा शौक़ है या साज़िशों  का ताना-बाना  है

लगा कर आग नफ़रत की सियासी रोटियाँ  सेंको
अभी तक ख़्वाब में खोए ,हमें उनको जगाना  है

-" शहीदों की चिताऒं पर लगेंगे  हर बरस मेले "-
यहाँ की धूल पावन है , तिलक माथे लगाना है

तुम्हारे बाज़ुओं में  दम है कितना ,देख ली ’ आनन’
हमारे बाजुओं  का ज़ोर अब तुमको  दिखाना है 

-आनन्द.पाठक-
094133 95592

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

एक व्यंग्य : वैलेन्टाईन डे......

...

कल वैलेन्टाईन डे है। यानी’ प्रेम-प्रदर्शन ’ दिवस ।

अभी अभी अखबार पढ़ कर उठा ही था कि मिश्रा जी आ गए।

अखबार से ही पता चला कि कल वैलेन्टाईन डे है। बहुत से लेख बहुत सी जानकारियाँ छपी थीं  । वैलेन्टाईन डे क्या होता है ,इसे कैसे मनाना चाहिए ।मनाने से क्या क्या पुण्य मिलेगा। न मनाने से क्या क्या पाप लगेगा । कितना ’परलोक’ बिगड़ेगा कितना परलोक सुधरेगा।अगले जन्म में किस योनि में जन्म लेना पड़ेगा। इस दिन को क्या क्या करना चाहिए ,क्या क्या न करना चाहिए.\.बहुत से ’टिप्स" बहुत सी बातें । वैलेन्टाईन डे पर ये 10 बातें न करें ...ये 10 बातें ज़रूर करें ।अगले साल मिलने का वादा करे न करे इस जन्म में क्या पता उसका बाप मिलने दे या न दे। अगले जन्म में मिलने का वादा ज़रूर करें -इस से -वैलेन्टाईन प्रभावित होती है।

इधर नवयुवक नवयुवतियाँ बड़े जोर शोर से मनाने की तैयारी कर रही हैं  । अभी कल ही सरस्वती मैया की पूजा से फ़ुरसत मिली है । ज्ञान की देवी है सरस्वती मैया। कल ही ज्ञान मिला कि प्रेम से बढ़ कर कोई ज्ञान नहीं --ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। पंडित वही होगा जो ’प्रेम’ करेगा वरना उम्र भर "पंडा’[ पांडा नहीं] बना रहेगा.... वैलेन्टाईन डे की पूजा कराता रहेगा।
नई पीढ़ी ग्रीटींग्स कार्ड की ,गिफ़्ट शाप की दुकानों में घुस गई है ।शापिंग माल भर गये हैं इन नौजवानों से ,नवयुवकों से, नवयुवतियों से । कोई कैण्डी बार खरीद रहा है ,कोई गुलाब खरीद रहा है ,कोई गिफ़्ट खरीद रहा है । खरीद ’रहा है’ -इसलिए कि लड़कियाँ गिफ़्ट नहीं खरीदती ,कल उन्हें गिफ़्ट मिलना है।
 एक लड़की दुकानदार से पूछती है-:भईया ! कोई ऐसा ग्रीटिंग कार्ड है जिस पर लिखा हो--- यू आर माई फ़र्स्ट लव एंड लास्ट वन।
" हाँ है न ! कितना दे दूँ बहन?
"5-दे दो"
;बस ?’-दुकानदार ने कहा -" मगर पहले वाली बहन जी तो 10 ले गई है"
’तो 10 दे दो न’
  सत्य भी है ।कल ’प्रेम प्रदर्शन दिवस’ है तो प्रदर्शन होना चाहिए न । देख तेरे पास 5,तो मेरे पास 10
---   ---
और इधर ,भगवाधारी लोग ,हिन्दू संस्कृति के वाहक , भारतीय सभ्यता के संरक्षक अपनी अपनी तैयारी कर रहे हैं । बैठके कर रहे हैं। यह ’अपसंस्कृति’ है । इसे रोकना हमारा परम कर्तव्य है ।वरना संस्कृति मिट जायेगी। डंडो मे तेल पिलाया जा रहा है।इसी से ’अपसंस्कृति’ रुकेगी। त्वरित न्याय होगा कल -आन स्पाट न्याय’ । भारतीय संविधान  चूक गया इस मामले में  सो हमने जोड दिया। हम कल खुलेआम ये नंगापन न होने देगें। जो वैलेन्टाईन डे मना रहे हैं  वो भटके हुए ,गुमराह लोग है उन्हें हम इसी डंडे से ठीक करेंगे
और पुलिस? पुलिस की अपनी तैयारी है ...जगह जगह ड्यूटी  लगाई जा रही है ...बीच पर..पार्क में ..रेस्टोरेन्ट में ,झील के किनारे ,,,बागों में.... वादियों में ...जहाँ जहाँ संभावना है ..वहाँ वहाँ ,,,किसी की ड्युटी दिल पर नहीं लगाई जा रही है ..इस दिन .दिल से प्रेम का प्रदर्शन नहीं होता ..सो पुलिस का वहाँ क्या काम?
 खुमार बाराबंकी साहब ने यही देख कर यह शे’र पढ़ा होगा...

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है  और हवा चल रही है

तैयारियाँ दोनो तरफ़ से जबर्दस्त हो रही है ...दीयों ने भी तैयारियाँ कर रखी है ,,,,हवायें भी तैयार है कल के लिए ...। फ़ैसला कल होगा
-----
अखबार पढ़ कर उठा ही था कि सुबह ही सुबह मिश्रा जी आ धमके। जो हमारे नियमित पाठक हैं वो मिश्रा जी से परिचित है और जो पाठक अभी अभी इस ’चैनेल’ से जुड़े हैं उनके बता दे कि मेरी हर कथा में वह अयाचित आ धमकते है और अपनी राय देने लगते हैं । अगर आप उनकी राय मान लेते हैं तो रोज़ आते हैं , नहीं मानते हैं तो हफ़्ते दो हफ़्ते में एकाध बार आते हैं ।
अपनी हर राय में प्रेम चोपड़ा का एक डायलाग ज़रूर बोलते है...’ मैं वो बला हूँ जो शीशे से पत्थर तोड़ता हूँ। लगता है कि आज भी कोई न कोई पत्थर तोड़कर ही जायेंगे
आते ही आते उन्होने अपने ’शीशे’ से एक प्रहार किया
" अरे भई ! क्या मुँह लटकाये बैठे हो? कल .वैलेन्टाईन डे है ,कुछ तैय्यारी वैय्यारी की है नहीं"?
’क्या मिश्रा ! अरे अब यह उमर है ...वैलेन्टाईन डे मनाने की? बच्चे बड़े हो गये ,बाल सफ़ेद हो गये ,सर्विस से रिटायर भी हो गया ...अब  "आखिरी वक़्त में क्या खाक मुसलमाँ होंगे?’
’यार तुम्हें मुसलमान होने को कौन कह रहा है? वैलेन्टाईन डे  में बाल नही देखा जाता है  ,गिफ़्ट देखा जाता है गिफ़्ट ..उमर नहीं देखी जाती ..आल इज फ़ेयर इन ’लव’ एंड ’वार’
अखबार पढ कर मन तो था कर रहा था कि हम भी वैलेन्टाईन डे  मनाते ..हम 60 के क्यों हो गये ... हमारी जवानी के दिनों  मनाया जाता तो हम भी  5-10 वैलेन्टाईन बना कर रखते अबतक। अतीत में चला गया मैं...उस ज़माने में कहाँ होता था वैलेन्टाईन डे । पढ़्ने में ही लगा रहा...फिजिक्स...कमेस्ट्री ..मैथ। पढ़ाई खत्म हुई तो पिता जी ने एक ’वैलेन्टाईन ’ ठोंक दी मेरे सर ....35 साल से ’बेलन’ बजा रही है मेरे सर पर। यह मिश्रा बहुत काम का आदमी है कहता है वैलेन्टाईन डे मनाने की कोई उमर नहीं होती....न जाने कहाँ खो गया मैं, ख़यालों में....,
 -" अरे भाई साहब ! कहाँ खो गए ?कल .वैलेन्टाईन डे है ,कुछ तैय्यारी वैय्यारी की है नहीं"?
-यार कभी मनाया नहीं ,मुझे तो कुछ आता नहीं .. कुछ बता तो मनाऊँ
-पहले तो 1 वैलेन्टाईन होना ज़रूरी है । कोई है क्या?
-हें हें हें अरे यार इस टकले सर पे कौन वैलेन्टाईन बनेगी? 1-है तो ज़रूर जो मेरे शे’र पर  फ़ेसबुक पर वाह वाह करती है......’-मैने शर्माते शर्माते यह राज़ बताया
-" अच्छा तो तू उसे फोन मिला और कह कि कल वैलेन्टाईन डे है..........." मिश्रा जी ने अपने ’शीशे’ से दूसरा पत्थर तोड़ना चाहा
-यार मुझे करना क्या होगा ?पहले ये तो बता ’-मैने अपनी दुविधा बताई
-कुछ नहीं, बस बाज़ार से 2-4 ग्रीटिग कार्ड खरीद ले....,2-4  कैंडी बार ..2-4 कैडबरी चाकलेट  बार..2-4 गुलाब के फूल ,अध खिली कली हो तो अच्छा..2-4 पेस्ट्री ..2-4 केक ..2-4 .इश्क़िया शे’र -ओ-शायरी ....2-4...."
-;यार मिश्रा ! तू वैलेन्टाईन डे मनवा रहा है कि सत्यनारायण कथा की ’पूजन सामग्री ’ लिखवा रहा है ।
-भई पाठक जी ! वैलेन्टाईन डे भी किसी ’पूजा’ से कम नही । वो खुश नसीब होते है जिन्हें कोई ’पूजा’ डाइरेक्ट मिल जाती है
और यह 2-4 दो-चार क्या लगा रखा है?-और वैलेन्टाईन डे में ’केक’ का क्या काम ?
-कुछ आईटम रिजर्व में रखना चाहिए। एक न मिली तो दूसरे में काम आयेगा...और जब पुलिस तुम्हे डंडे मारेगी पार्क में  तो वही ’केक’ उसके मुँह पर पोत देना..भागने में  सुविधा रहेगी- मिश्रा जी ने ’केक’ की उपयोगिता बताई
-और गुलाब का फूल ’लाल’ लेना है कि ’सफ़ेद ?
-सफ़ेद गुलाब ??? -मिश्रा जी अचानक चौंक कर बैठ गए -बोले---"यार तू वैलेन्टाईन डे मनाने जा रहा है कि मैय्यत पर फूल चढ़ाने जा रहा है?
-यार मिश्रा ! शे’र-ओ-शायरी में मेरा शे’र चलेगा क्या ?
तू सुना तो मैं बताऊँ-"
मैने अपना एक शे’र बड़े तरन्नुम से बड़ी अदा से  बड़ा झूम झूम कर पढ़ा....

नुमाइश नहीं है ,अक़ीदत है दिल की
मुहब्बत है मेरी इबादत में शामिल

मिश्रा जो ठठ्ठा मार कर हँसा कि मैं घबरा गया कि कहीं शे’र का ’बहर’ /वज़न तो नही गड़बड़ा गया कहीं तलफ़्फ़ुज़ तो ग़लत तो नहीं हो गया ।
 मिश्रा जी ने रहस्योदघाटन किया कि तुम्हारे ऐसे ही घटिया शे’र से कोई वैलेन्टाईन  नहीं बनी और न बनेगी । और जो बनाने जा रहे हो सुन कर वो भी भाग जायेगी...एक काम करो...तुम शे’र-ओ-शायरी वाला पार्ट मेरे ऊपर छोड दो..... भुलेटन भाई पनवाड़ी के पास इश्क़िया शायरी का काफी स्टाक है,.... सुनाता रहता है ...कल मैं 2-4 शे’र तुम्हें लिखवा दूँगा ...
अच्छा तो मैं चलता हूँ
मिश्रा जी चलने को उद्दत हुए ही थे  कि यकायक ठहर गये..पूछा
-यार भाभी जी नहीं दिख रही है : कहीं गई है क्या :
-हाँ यार ! ज़रा 2-4 दिन के लिए मैके गई है
-मैके? और इस मौसम में? भई मैं तो कहता हूँ कड़ी नज़र रखना उन पर  । कही वो  न .वैलेन्टाईन डे मना लें मैके में~’-  कहते हुए मिश्रा जी वापस चले गये
-अस्तु-

-आनन्द.पाठक
09413395592

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

बेबात की बात : तमसोऽ मा ज्योतिर्गमय.....



आज बसन्त पंचमी है -सरस्वती पूजन का दिन  है ।

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना
या ब्र्ह्माच्युत् शंकर प्रभृतिभि देवै: सदा वन्दिता
सा माम् पातु सरस्वती भगवती  नि:शेष जाड्यापहा

क्षमा करें माँ !

क्षमा इस लिए मां कि उपरोक्त श्लोक के लिए ’गुगलियाना’ पड़ा [यानी ’गूगल’ से लाना पड़ा] छात्रावस्था में यह ’श्लोक’ मुझे कंठस्थ था ,प्राय: काम पड़ता रहता था विशेषत: परीक्षा के समय ..सुबह शाम यह श्लोक रटता रहता था कि हे माँ !सरस्वती बस इस बार मुझे  पास करा दे...अच्छे नम्बर की माँग नहीं करता था ।कभी कभी हनुमान जी को भी स्मरण कर लेता था ,शायद वही उद्धार कर दें । माँ वह आवश्यकता थी ,प्रीति थी सो इस श्लोक को याद रखना और विश्वास करना मेरी मज़बूरी थी । जब पढ़ाई लिखाई खत्म हो गई तो श्लोक का सन्दर्भ भी खत्म हो गया । सो भूल गया था ।इसी लिए ’गुगलियाना’ पड़ा। जब रोजी-रोटी का ,धन कमाने का समय आया तो ’लक्ष्मी-पूजन’ का श्लोक याद रखने लगा ।माँ ! यह स्वार्थ नही था मां ,प्रीति थी ।मेरी ज़रूरत थी। तुलसीदास ने पहले ही कह दिया है

सुर नर मुनि सबकी यह रीती
स्वारथ लाग करहि सब प्रीती

आज मैं फ़ुरसत में हूँ माँ। रिटायरमेन्ट के बाद यह मेरा पहला पूजन है आप का । पेन्सन फ़िक्स होने के बाद ’लक्ष्मी ’ जी फ़िक्स हो गई जो आना था सो आ गईं सोचा कि अब आप का ही  विधिवत पूजन करू। सेवा काल में तो काम चलाऊ -ॐ अपवित्र : पवित्रो वा...सर्वावस्थां गतोऽपि वा...." -- कह कर कुछ माला-फूल चढ़ा कर जल्दी जल्दी पूजा कर के आफ़िस निकल जाता था । आज कोई जल्दी नहीं है । टाईम ही टाईम है...बास की कोई मीटिंग नहींं....कोई झूठा-सच्चा स्टेटमेन्ट नहीं भेजना...कोई प्रेजेन्टेशन नहीं देना...कोई टेन्सन नहीं....आज पूरा श्लोक पढूंगा...याद करूँगा

  हे माँ ! मै ही आप का आदि भक्त हूँ । हर भक्त ऐसा ही कहता है सो मैं कह रहा हूँ।60-साल की उम्र में 55 साल से पूजा अर्चना कर रहा हूँ आप का । हर वर्ष करता हूँ । 55 साल इस लिए कि मेरी पढ़ाई ही जन्म के 5-साल बाद शुरु हुई। गाँव के ही एक स्कूल में पिता जी ने नाम लिखवा दिया तो विद्या आरम्भ ,आप की पूजा आरम्भ।पट्टी दवात दूधिया सम्भाला । लिखता तो कम था .पट्टी पर कालिख लगा कर दवात से रगड़ रगड़ कर चमकाता ज़्यादा था फिर उस पर सूता भिंगो कर लाईन मारता था [पाठकगण "लाईन मारने" का कोई ग़लत अर्थ न निकालें ] यानी लाईन खीचता था कि लेखन सीधा रहे ।फिर   लिखना सीखा ’अब घर चल’ ...अब घर चल ...अब घर चल ।1 साल तक यही लिखता रहा तो मास्साब ने इसका मतलब समझ लिया और सचमुच मुझे घर भेज दिया

फिर पिता जी  शहर चले आये ।और यहाँ बेसिक प्राइमरी पाठशाला मुन्स्पलिटी के स्कूल में नाम लिखा दिया जो घर के बिल्कुल पास में था । अगर पिता जी ज़मीन्दार होते ,[जो कि वह नहीं थे] तो वह स्कूल मेरे घर के आंगन में होता । इस नज़दीकी का फ़ायदा मैने खूब उठाया और हर घंटी के बाद पानी पीने घर ही आ जाया करता था। पिता जी को मुहल्ले वालों ने काफी समझाया कि ’कान्वेन्ट’ स्कूल के बच्चे ’स्मार्ट’ होते हैं ..पिता जी  ’नज़दीकी’ वाले तर्क से सबको पराजित कर दिया करते थे ..शायद उस समय उनकी ’पाकेट’ उतनी गहरी न रही होगी जितना ’कान्वेन्ट’ स्कूल के लिए चाहिए था । अत: मैं ’स्मार्ट’ तो न बन सका माँ ...लढ्ड़ का लढ्ड़ ही रहा और नतीजा आप के सामने है कि आजतक बस ’अल्लम गल्लम बैठ निठ्ठलम :-व्यंग्य लिख रहा हूँ।

शहर में आ कर भी समस्या वहीं की वहीं बनी रही ---यानी पास होने के लाले पड़े रहते थे। कक्षा 3- में आया खूब मेहनत की कि इस बार तो पास होना ही है कि इसी बीच चाईना वालों ने युद्ध छेड़ दिया .इस से फ़ायदा यह रहा कि अपने ’फ़ेल’ होने का सारा दोष ’चाइना’ पर मढ़ दिया। लश्टम पश्टम करते इन्टर तक पहुंचा ही था कि इस बार ’पाकिस्तान’ ने युद्ध छेड़ दिया तब मुझे पहली बार आभास हुआ कि हो न हो मेरे फ़ेल होने में विदेशी शक्तियों का ’हाथ’ है।खैर माँ ,आप की कृपा से किसी तरह इन्जीनियर बन गया ..काम बन गया।

मां ! आप ज्ञान कला संगीत की अधिष्टात्री देवी हैं।आप साहित्यकारों की ,बुजुर्गों की इष्ट देवी है ।भगवा धारी  की भी हैं  ,छात्र-छात्राओं की भी है  , युवाओं की भी है ,सभी साथ साथ पूजा में व्यस्त है }2-दिन बाद इसी उत्साह से उन्हें ’वैलेन्टाइन-डे’ भी मनाना है ।तब भगवा धारी साथ साथ नहीं रहेंगे ।आप का ज्ञान उन्हें प्राप्त हो चुका होगा कि ’प्रेम-प्रदर्शन’ -अपसंस्कृति है । तब उनके हाथ में ’संस्कृति’ का डंडा रहेगा -जो ’अपसंस्कृति’ को ठीक करेंगे । इस काम का ठेका आजकल उन्हीं के पास है।

आप ने सबके हाथ में ज्ञान का मशाल दे दिया । लोग ज्ञान की अपनी अपनी व्याख्या से मशाल ले कर चल दिए। सब की अपनी अपनी मशाल ।हिन्दू की मशाल अलग...मुस्लिम की मशाल अलग। ज्ञान के इस रोशनी में चेहरे नज़र आने लगे -कौन हिन्दू है ,कौन मुसलमान है  । हिन्दुओं में भी अलग अलग हाथों में अलग मशालें ।मेरे ज्ञान की मशाल में ज़्यादे रोशनी है । सबूत? सबूत क्या? घर -मकान-बस्तियाँ जला कर दिखा देते है । हाथ कंगन को आरसी क्या ।और कई बार दिखा भी दिया । और इधर, ब्राह्मण महासंघ...राजपूत महासंघ ...तैलीय समाज..वैश्य समाज..वाल्मिकी समाज... इस ज्ञान की मशाल में चेहरे दर चेहरे और साफ़ नज़र आने लगे ..आदमी ही आदमी ......’आदमियत’ अँधेरे में चली गई ..कहीं नज़र नहीं आ रही है.....।हम यहीं तक नहीं रुके। हर महासंघ में एक महासंघ।पहिये के अन्दर पहिया-’ व्हील विद इन व्हील "  ब्राह्मण समाज ही को ले लें ...गौड़ ब्राह्मण ....कान्यकुब्ज़ी ...सरयूपारीय ...पराशर.... यही हाल क्षत्रिय संघ ,वैश्य समाज सब के हाथ में एक एक मशाल .....संघौ शक्ति कलियुगे........."तमसो मा ज्योतिर्गमय-....अभी तक हम अंधेरे में थे ..ज्ञान का प्रकाश मिलता गया  हम अंधेरे से रोशनी की तरफ़ बढ़ते गए...हम बँटते गए

 राजा भोज आप के अनन्य भक्त थे । अपने शासन काल में  भोज शाला  में आप की पूजा विधिवत और बड़े धूम धाम से कराते थे । आजकल उनके भक्त कर रहें है करा रहे है । कल टी0वी0 पर समाचार आ रहा था कि भोजशाला में आप का पूजन अर्चन चलेगा और पास में ही जुमा की नमाज़ भी चलेगी। किसी ज़माने में यह भाई-चारे का प्रतीक रहा होगा ,आप की कृपा से अब हमको ज्ञान प्राप्त हो गया है --दोनो का ज्ञान अलग अलग ..मेरा ज्ञान तेरे ज्ञान से बेहतर ...तेरा ज्ञान मेरे ज्ञान से कमतर.. । ’धार’ मे लोग अपने अपने-अपने ज्ञान को ’धार’ दे रहे हैं -और बीच में पुलिस का डंडा । कहीं दोनो का ज्ञान आपस में मिल न जाय ’वोट’ बैंक का मसला है कुर्सी बचानी है तो इन्हें अलग अलग रखना ही बेहतर है

राजा भोज की बात चली तो ’गंगू तेली’ की बात चली। लोगो ने इस कहावत के अपने अपने ढंग से व्याख्या की कुछ ने ’गांगेय’ और "तैलंग’ का संबन्ध बताया जो कालान्तर में ’गंगू’ बन गया
किसी ने ’गंगू’ तेली के राज्य हित में बलिदान की बात बताई । मगर हमारे ज्ञान भाई [ ज्ञान चतुर्वेदी जी[भोपाल वाले] ने पतली गली से रास्ता निकाल लिया....बताया वर्तमान में कई राजा ’भोज’ है ..भोपाल के राजा ’भोज’ अलग ..लखनऊ के राजा भोज अलग...दिल्ली के राजा भोज अलग..ग्राम पंचायत के राजा भोज अलग ।..और गंगू तेली? गंगू तेली यानी -हम

इसी सिलसिले में एक पतली गली हम ने भी निकाली । मीडिया वालों नें अपना कैमरा मेरी तरफ़ नहीं किया वरना हिन्दी जगत को इस मुहावरे को एक नया रूप मिल गया होता....
वस्तुत: इस मुहावरे को ---कहाँ राजा "भोज’ कहाँ ;भोजू’ तेली --होना चाहिए था ।”भोजू’  का राजा ’भोज’ के साथ समानता भी बैठ रही है।  इसी बिना पर तो ’भोजू’ तेली भी अपने को राजा भोज समझने लगा होगा और ऐठ कर चलने लगा होगा तो किसी ने तंज़ किया होगा...वैसे ही जैसे कल शाम शुक्ला जी मुझ पर तंज़ किया---कहाँ मुल्कराज आनन्द....और कहाँ आनन्द.पाठक आनन्द....हा हा हा हा हा ।

तो हे माँ सरस्वती ...आज का पूजन यहीं तक ।अगला पूजन अगले बसन्त पंचमी को

सादर/अस्तु

-आनन्द.पाठक-
09413395592


देश-द्रोही देश-भक्त पर भारी

लांस नायक हनमंथप्पा बनाम इशरत जहां 

               मेरा भारत महान!  क्या सचमुच हमारा देश भारत महान है? पिछले कुछ-एक महीनों से हमारे देश में तथाकथित धर्म-निर्पेक्ष बुद्धिजीवी नेताओँ (जिनमें अधिकतर अपने बड़बोलेपन के लिए जाने जाते हैं) ने भारत के चरित्र और सम्मान के चीथड़े उड़ा दिए हैं। कभी इनटॉलेरेंस के नाम पर, कभी गाय के मांस खाने के मुद्दे पर, कभी मुस्लिम समाज से जुड़े आतंकियों पर हुए कार्यवाई के विरोध में, कभी मंदिर के निर्माण के मुद्दे को लेकर और न जाने क्या-क्या। 
            
                 इन सभी बुद्धिजीवी नेता वर्ग के ज्ञान और अज्ञानता को हवा देता हमारे देश के बीसीयों टीवी न्यूज़ चैनल। उन्हें भी क्या दोष दिया जाए, उनकी भी अपनी मज़बूरी है। उन्हें २४ घंटे अपने चैनल पर न्यूज़ दिखाना है और बाकी चैनलों से अपने आप को आगे भी रखना है। अब भला हर रोज़ भावपूर्ण, विवेकशील और विश्लेषक समाचार तो बन नही सकता। सो न्यूज़ चैनल वाले अपनी रोज़ी-रोटी चलाने के लिए हमारे महान भारत के महानतम राजनीतिक पार्टियों से एक प्रवक्ता पकड़ लेते हैं और पैनल चर्चा के नाम पर चालू हो जाता है अपनी-अपनी ज्ञान की व्याख्यान और विश्लेषण कौशलता का फूहड़ प्रदर्शन। इन न्यूज़ चैनलों पर चल रहे चर्चा को सुन रहे हर दूसरे भारतीय के मन में यही विचार आता होगा कि इन नेताओं को किन गधों ने वोट देकर संसद सदस्य चुन लिया। अगर इन नेताओं को विशेषाधिकार प्राप्त नही होता तो हर भारतीय उन्हें उनके गैर-जिम्मेदाराना एवं विवेकहीन वक्तव्य के लिए बीच सड़क पर खड़ाकर सरेआम गोली मार देता। 
          
          इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल, सीताराम येचुरी, अखिलेश प्रताप सिंह, राहुल गांधी, सोनिया  गांधी, इत्यादि जैसे नेता शिखर पर विराजमान हैं और देश का तक़दीर लिखते हैं। इस देश में अगर एक मुस्लिम मर जाता है सभी राजनितिक पार्टियां अपने वैचारिक मतभेद को भुलाकर एकजुट हो जाती हैं और खुल जाता है सरकार के नीतियों और कार्य-कलाप की भर्त्सना का पिटारा। सभी राजनितिक दलों के नज़र के सामने कश्मीर घाटी में पाकिस्तान और ईसिस का झंडा फहराया और लहराया जाता है लेकिन आजतक इन तथाकथित धर्म-निर्पेक्ष बुद्धिजीवी नेताओं ने कभी नहीं कहा कि उन नागरिकों ने देश-विरोधी कार्य किया है और देश में कानून के मुताबिक उनके विरुद्ध करवाई करनी चाहिए।  
            
          राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में कुछ बुद्धिजीवी एकत्रित होते हैं और वहां अफज़ल गुरु (जिसे उच्चतम न्यायालय ने दोषी करार दिया था) को शहीद के रूप में सम्मानित किया जाता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफज़ल गुरु के सजा के विरोध में कुछ वाम-पंथी विचार-धारा से प्रभावित छात्र देश-द्रोही का नारा लगाते हैं, उन्ही छात्र संगठन का एक प्रतिनिधी एक अन्य न्यूज़ चैनल के पैनल चर्चा में सम्मिलित किया जाता है और उनके साथीयों द्वारा की गयी कार्यवाई को सही बताता है। हमारे धर्म-निर्पेक्ष कहे जानेवाले बुद्धिजीवी नेताओं में से किसी ने यह कहने की जहमत नहीं उठाई कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में घटी घटना देश-द्रोह के समतुल्य है। इस घटना पर किसी राजनितिक दल की प्रतिक्रिया नहीं आई कि देश के पाठ्यक्रम का भगवाकरण और विश्वविद्यालय प्रांगण को राजनीतिक लाभ के लिए क्यों उपयोग में लाया जा रहा है। कहते भी कैसे? आखिर एक देश-द्रोही व्यक्ति को सजा देने का विरोध जो हो रहा था और ऊपर से वो व्यक्ति मुस्लिम समुदाय से जुड़ा था। ऐसे में उन विध्यार्थियों के हरकत को गलत बताकर हमारे तथा-कथित धर्म-निर्पेक्ष नेता मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक को खोने का जोखिम कैसे उठा सकते थे ?  
           
              इशरत जहां मामले में इन्हीं तथा-कथित धर्मं-निर्पेक्ष नेताओं ने गुजरात पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया था। और अब जब लश्कर-ए-ताइबा के लिए कार्य करने वाला एक अमेरिकी नागरिक अदालत के सामने यह खुलासा करता है कि इशरत जहां भी एक आतंवादी थी और लश्कर-ए-ताइबा के लिए काम कर रही थी तो फिर से हमारे सम्मानीय तथा-कथित धर्म-निर्पेक्ष नेता एकजुट हो गए हैं और अदालत में दिए गए डेविड हेडली के बयान पर ही प्रश्न-चिन्ह खड़ा कर रहे हैं। कल से फिर से सभी न्यूज़ चैनल पर यही बहस छिड़ गई है कि पुलिस को एक आतंकवादी संगठन के लिए कार्य कर रहे आतंकवादी को मुठभेड़ में मारने का अधिकार नहीं है? इन तथाकथित धर्म-निर्पेक्ष बुद्धिजीवी नेताओं के अनुसार पुलिस को उसे जिंदा पकड़ना चाहिए था और देश का कानून उसे सजा देती। कल तो मुझे इन न्यूज़ चैनलों पर चल रही चर्चा और तथाकथित बुद्धिजीवि नेताओं के विचार सुनने के बाद अपने को भारत का नागरिक होने पर बेहद शर्म महसूस हो रहा था। कल प्रथम बार ऐसी अनुभूति हुई कि अगर मौका मिले तो हमें इस देश को छोड़कर किसी अन्य देश की नागरिकता ले लेनी चाहिए जहाँ कम-से-कम वहां के सम्मानीय नेता शिक्षित हैं और अपने देश के हित की बात तो करते हैं । 
             
             देश के सीमा की रक्षा करते हुए सियाचिन ग्लेशियर में हिम-स्खलन की वजह से भारतीय सेना के १० जवानों की मौत हो गई। कुदरत का करिश्मा देखिए उनमें से एक जवान छः दिन बाद ३५ फीट बर्फ के नीचे दबा हुआ जिंदा भी मिला लेकिन दो दिन बाद उसकी भी मौत हो गई। सभी न्यूज़ चैनेल ने लांस-नायक हनमंथप्पा के निधन के खबर को एक-दो मिनट का न्यूज़ क्लिपिंग दिखाकर अपने जिम्मेदारी पूरी कर ली। इसे विवेक-शून्यता कहें या संवेदन-हीनता, इन न्यूज़ चैनलों के पास इस भारतीय सेना के जवान के मौत से ज्यादा महत्वपूर्ण इशरत जहां का मुद्दा था। 
          
           कल किसी न्यूज़ चैनल ने इस मुद्दे पर चर्चा करना उचित नहीं समझा कि भारतीय सैनिक इतने ऊंचाई पर मुश्किल भरे वातावरण में सेवा देते हैं, उनके कार्य को आसान और उनके मुश्किलों को थोड़ा भी कम करने के लिए क्या कदम उठाये जा सकते हैं? सियाचिन में मारे गए इन भारतीय सैनकों को इन न्यूज़ चैनलों की सच्ची श्रद्धांजलि होती अगर कल उन्होंने इशरत जहां की जगह लांस नायक स्वर्गीय हनमंथप्पा पर हमारे तथाकथित धर्म-निर्पेक्ष बुद्धिजीवी नेताओं को आमंत्रित कर पैनेल चर्चा करते। 
           
           कुछ-एक नेताओं ने इस बहादुर जवान के पार्थिव शरीर पर माल्यापर्ण कर अपनी जिम्मेदारी निर्वाह कर ली और कुछ ने ट्वीटर पर अपने घड़ियाली आँसू बहा लिए। उस माँ का क्या हाल होगा जिसने अपने बेटे को खो दिया, उस पत्नी का क्या हाल होगा जिसने अपने पति को खो दिया, उस दो वर्ष के बच्ची का क्या हाल होगा जिसने अभी अपने पिता के गोद में ढंग से खेलना भी नहीं सीखा होगा? यह विचारतुल्य है कि क्या भारतीय समाज का ज़मीर इस कदर मर चूका है कि हमने इशरत जहां, अफजल गुरु जैसे देश-द्रोहीयों को लांस नायक हनमंथप्पा जैसे देश-भक्त पर भारी पड़ने की इजाजत दे दी है? यह भी विचरतुल्य है कि क्या सामाजिक सोच एवं व्यवस्था परिवर्तन का समय नहीं आ गया है? 

रविवार, 7 फ़रवरी 2016

एक ग़ज़ल : पयाम-ए-उल्फ़त मिला तो होगा....



पयाम-ए-उल्फ़त मिला तो होगा , न आने का कुछ बहाना होगा
मेरी अक़ीदत में क्या कमी थी ,सबब ये  तुम को  बताना होगा

जो एक पल की ख़ता हुई थी ,वो ऐसा कोई गुनाह कब थी  ?
नज़र से तुमने गिरा दिया है , तुम्ही  को आ कर उठाना  होगा

ख़ुदा के बदले सनमपरस्ती  , ये कुफ़्र  है या कि बन्दगी  है
जुनून-ए-हक़ में ख़बर न होगी, ज़रूर  कोई   दिवाना  होगा

मेरी मुहब्बत है पाक दामन ,रह-ए-मुक़द्दस में नूर -अफ़्शाँ
तो फिर ये परदा है किस की खातिर ,निकाब रुख़ से हटाना होगा

इधर हैं मन्दिर ,उधर मसाजिद ,कहीं किलीसा  की चार बातें
सभी की राहें जो मुख़्तलिफ़ हैं ,तो कैसे यकसाँ ? बताना होगा

कहीं थे काँटे ,कभी था सहरा ,कहीं पे दरिया , कहीं था तूफ़ाँ
कहाँ कहाँ से नहीं हूँ गुज़रा ,ये राज़ तुम ने न जाना  होगा

रहीन-ए-मिन्नत रहूँगा उस का ,कभी वो गुज़रे अगर इधर से
अज़ल से हूँ मुन्तज़िर मैं ’आनन’, न आयेगा वो, न आना होगा

-आनन्द.पाठक-
09413395592
शब्दार्थ
प्याम-ए-उल्फ़त  = प्रेम सन्देश
अक़ीदत = श्रद्धा /विश्वास
सबब = कारण
कुफ़्र = एक ईश्वर को न मानना,मूर्ति पूजा करने वाला
इसी से लफ़्ज़ से ;काफ़िर; बना
रह-ए-मुक़्द्दस में= पवित्र मार्ग मे
नूर-अफ़्शाँ    = ज्योति/प्रकाश बिखेरती हुई 
किलीसा = चर्च ,गिरिजाघर
मसाजिद      =मस्जिदें [ मसजिद का बहुवचन]
मुख़्तलिफ़ -अलग अलग 
यकसाँ =एक सा .एक समान
अज़ल से = अनादिकाल से
रहीन-ए-मिन्नत=आभारी .ऋणी
मुन्तज़िर = प्रतीक्षारत